गेंदा फूल की खेती कैसे करे | genda phool ki kheti kaise kare

गेंदा फूल की खेती कैसे करे

भारत में गेंदा एक बहुत ही महत्वपूर्ण फूल माना जाता है, देश में इसका प्रयोग मंन्दिरों में, शादी-विवाह में व अन्य कई अवसरों पर किया जाता है, गेंदे के फूल के अर्क का प्रयोग जलने, कटने और त्वचा में जलन से बचाव के लिए किया जाता है, गेंदा के फूल में विटामिन सी भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो कि एंटीऑक्सीडेंट है इसलिए गेंदा के फूल से बने अर्क का सेवन ह्रदय रोग, कैंसर तथा स्ट्रोक को रोकने में सहायक होता है, कुछ स्थानों पर गेंदे के फूल का तेल निकालकर उसका प्रयोग इत्र एवं अन्य खुशबूदार उत्पाद बनाने में भी किया जा रहा है, तेल के लिए विशेष रूप से छोटे फूल वाली किस्मों का प्रयोग किया जाता है, पूरे वर्ष गेंदा के पुष्पों की उपलब्धता होने के वाबजूद भी इसकी मांग बाजार में बनी रहती है, लम्बें समय तक फूल खिलने तथा आसानी से उगाये जाने के कारण गेंदा भारत के साथ-साथ पूरे विश्व में प्रचलित है, भारत में गेंदा को 66.13 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में उगाया जा रहा है, जिससे कि 603.18 हजार मिलियन टन उत्पादन प्राप्त होता है।

 

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भूमि 

गेंदा की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है, लेकिन इसके अच्छे उत्पादन के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमद भूमि अच्छी मानी जाती है, जिसका पी.एच. मान 7 से 7.5 होना चाहिए। 

जलवायु 

गेंदा के अच्छे उत्पादन के लिए शीतोष्ण और समशीतोष्ण जलवायु अच्छी मानी जाती है, अधिक गर्मी एवं अधिक सर्दी पौधों के लिए अच्छी नहीं मानी जाती है, इसके उत्पादन के लिए तापमान 15 से 30 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। 

नर्सरी के लिए भूमि तैयार करना 

नर्सरी के लिए ऊँचे स्थान का चयन करना चाहिए, जिसमें समुचित जल निकास हो और नर्सरी का स्थान छाया रहित होना चाहिए, जिस जगह पर नर्सरी लगानी हो वहां की मिट्टी को समतल किया जाता है, उसके बाद 7 मीटर लम्बी, 1 मीटर चौड़ी और 15 से 20 सेमी. ऊंची क्यारियों को आवश्यकतानुसार बना लिया जाता है और फिर बीज की बुवाई की जाती है। 

प्रजातियाँ 

गेंदे की प्रजाति दो प्रकार की होती है :-

  • फ्रेंच प्रजाति :- बोलेरो, रेडहेड, गोल्डमजैम, बटर, डस्टीलाल, फ्लेमिंगफायर, फ्लेम, ऑरेंजफ्लेम, सनक्रिस्ट आदि प्रमुख हैं। 
  • अफ्रीकन प्रजाति :- पूसानारंगी गेंदा, पूसाबसंती गेंदा, गोल्डनकॉयन, स्टारगोल्ड, गोल्डन एज, डयूस स्पन गोल्ड, हैप्पीनेस, स्पेस एज, मूनशॉटस्माइल आदि प्रमुख हैं। 

पौध तैयार करने का समय 

पूरे वर्ष गेंदा का उत्पादन प्राप्त करने के लिए पौध को निम्न समय पर तैयार करना चाहिए :- 

  • ग्रीष्म ऋतु :- मई-जून में फूल प्राप्त करने के लिए बीज को फरवरी-माह में नर्सरी में बोना चाहिए। 
  • शरद ऋतु :- नवम्बर-दिसम्बर में फूल प्राप्त करने के लिए बीज को अगस्त माह में नर्सरी में बोना चाहिए। 
  • बसंत ऋतु :- अगस्त-सितम्बर में फूल प्राप्त करने के लिए बीज को मई माह में नर्सरी में बोना चाहिए। 

बीज की मात्रा 

एक हैक्टेयर क्षेत्र की पौध तैयार करने के लिये 800 ग्राम से 1 किलो ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। 

पौध की रोपाई 

जब पौध लगभग 30 से 35 दिन की या 4 से 5 पत्तियों की हो जाये, तब उसकी रोपाई कर देनी चाहिए, पौधों की रोपाई हमेशा शाम के समय करनी चाहिए, रोपाई के बाद पौधों के चारों ओर से मिट्टी को हाथ से दबा देना चाहिए, रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करना चाहिए। 

रोपाई की दूरी 

रोपाई की दूरी प्रजाति के ऊपर निर्भर करती है, सामान्यतः गेंदा के पौधे से पौधे की दूरी 30 से 35 सेमी. मीटर और लाइन से लाइन की दूरी 45 सेमी. मीटर रखते हैं। 

खाद एवं उर्वरक 

गेंदा का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए खेत की जुताई से 10 से 15 दिन पहले 150 से 200 कुंटल अच्छी सड़ी गोबर की खाद को खेत में डाल देना चाहिए और 160 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फॉस्फोरस, 80 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है, नाइट्रोजन की आधी तथा फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के पहले आखिरी जुताई के समय भूमि में मिला देनी चाहिए, शेष बची नाइट्रोजन की मात्रा लगभग एक महिने के बाद खड़ी फसल में छिड़काव कर दी जाती है।

सिंचाई 

खेत में नमी को ध्यान में रखते हुये सिंचाई करनी चाहिए, गर्मी के दिनों में 6 से 7 दिन के अंतराल से तथा सर्दियों में 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। 

खरपतवार नियंत्रण 

गेंदा की फसल को खरपतवार से मुक्त रखने के लिए, समय-समय पर हैडहो और खुरपी की सहायता से खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए। 

शीर्षकर्तन 

गेंदा की फसल में यह बहुत महत्वपूर्ण कार्य होता है, जब गेंदे की फसल लगभग 45 दिन की हो जाए, तो पौधे की शीर्ष कलिका को 2-3 सेमी. काटकर निकाल देना चाहिए, जिससे कि पौधे में अधिक कलियों का विकास हो सके और इससे गेंदा के अधिक फूल प्राप्त होते हैं। 

फूलों की तुड़ाई 

फूलों की तुड़ाई अच्छी तरह से खिलने के बाद करना चाहिए, फूल तोड़ने का सबसे अच्छा वक्त सुबह या शाम का होता है, फूलों को तोड़ने से पहले खेत में हल्की सिंचाई करनी चाहिए, जिससे फूलों का ताज़ापन बना रहे, फूलों को तोड़ने के लिए अंगूठे एवं उंगली का प्रयोग इस प्रकार करना चाहिए, कि पौधों को क्षति न पहुंचे। 

उपज 

अफ्रीकन गेंदा से 18 से 20 टन तथा फ्रेंच गेंदा से 10 से 12 टन प्रति हैक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है। 

प्रमुख रोग एवं कीट नियंत्रण

प्रमुख रोग :-

आर्द्र पतन :- 

यह रोग मुख्य रूप से नर्सरी में लगता है, इस रोग से प्रभावित नर्सरी में बीज का अंकुरण कम होता है और पौधे के तने गलने लगते हैं, अधिक गर्म तथा नमी युक्त भूमि में यह रोग तेजी से फैलता है। 

नियंत्रण :-

  • इसके नियंत्रण के लिए बुवाई से पहले बीज को कैप्टान नामक दवा से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। 
  • रोग ग्रस्त पौधों को नर्सरी से उखाड़ कर फेंक देना चाहिए। 

पाउड्रीमिल्ड्यू :- 

यह एक कवक जनित रोग है, इस रोग से ग्रस्त पौधे की पत्तियां सफेद रंग की दिखाई देती है और बाद में पत्तियों पर छोटे-छोटे धब्बे दिखाई देते हैं तथा बाद में पूरा पौधा सफेद पाउडर से ढ़क जाता है। 

नियंत्रण :-

  • इसके नियंत्रण के लिए सल्फेक्स नामक दवा को 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जाता है। 
  • रोग ग्रस्त पौधे को खेत से उखाड़ कर मिट्टी में दबा देना चाहिए।

प्रमुख कीट :-

रेड स्पाइडरमाइट :- 

यह गेंदा का बहुत ही हानिकारक कीट है, इस कीट का प्रकोप फूल आने के समय अधिक होता है, यह कीट गेंदा की पत्तियों एवं तने के कोमल भाग से रस चूसता है। 

नियंत्रण :-

इसके नियंत्रण के लिए 0.2 प्रतिशत मैलाथियान नामक दवा का घोल बनाकर छिड़काव करें। 

स्लग :- 

यह कीट गेंदा की पत्तियों को खा कर नुकसान पहुंचाता है। 

नियंत्रण :-

इसके नियंत्रण के लिये 15 प्रतिशत मे टेल्डीहाइड नामक कीटनाशी धूल का प्रयोग करना चाहिए। 

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