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खजूर एक बहुत ही लाभदायक फल है, इसके पौधे की उत्पत्ति के बारें में अभी तक कोई ख़ास जानकारी किसी को भी मालूम नही है, इसको पृथ्वी का सबसे पुराना वृक्ष भी माना जाता है, खजूर का इस्तेमाल खाने में किया जाता है, इस पर लगने वाले फलों से कई तरह की चीजें बनाई जाती है, जिनमें चटनी, आचार, जैम, जूस और बेकरी उत्पाद जैसी चीजें शामिल हैं।
khajur ki kheti |
इसके फलों को सुखाकर छुहारे बनाए जाते हैं, जिनका इस्तेमाल भी खाने में किया जाता है, इसके सूखे हुए फल से पिंडखजूर बनाए जाते हैं, खजूर के फल में कई ऐसे गुण मौजूद हैं, जिस कारण इसको खाने से मनुष्य को कैंसर, ब्लड प्रेशर, दिल, पेट, हड्डियों से संबंधित बीमारी काफी कम होती है।
खजूर का पौधा 15 से 25 मीटर की ऊंचाई तक पाया जाता है, इसकी खेती के लिए बारिश की आवश्यकता नही होती है, खजूर की खेती के लिए शुष्क जलवायु की आवश्यकता ज्यादा होती है, इसके पौधों को विकास करने के लिए प्रकाश की ज्यादा जरूरत होती है, भारत में इसकी खेती के लिए राजस्थान, गुजरात, तमिलनाडु और केरल की जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है, दुनिया भर में ईरान इसका सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
खजूर की खेती के लिए उचित जल निकास वाली रेतीली भूमि की जरूरत होती है, जिस भूमि में दो से तीन मीटर तक कठोर पथरीली भूमि होती है, वहां इसकी खेती नही की जा सकती है, इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 7 से 8 के बीच होना चाहिए।
खजूर की खेती के लिए शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है, इसके पौधे को बारिश की आवश्यकता नही होती है, इस कारण इसकी खेती मरुस्थलीय भागों में ज्यादा की जाती है, इसके पौधे को विकास करने के लिए तेज़ धूप की आवश्यकता होती है, सर्दियों के मौसम में रात के समय रहने वाली तेज़ सर्दी या पाला इसके पौधे के लिए नुकसानदायक होती है, इसके पौधों को अधिक बारिश और सर्दी पड़ने वाली जगहों पर नही उगाया जा सकता।
इसके पौधे को शुरुआत में विकास करने के लिए 30 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है, लेकिन जब पौधे पर फल बन रहे होते हैं, तब इसके फलों को पकने के लिए 45 के आसपास तापमान की जरूरत होती है।
खजूर की काफी सारी किस्में मौजूद हैं, जिन्हें उनकी पैदावार और वातावरण के आधार पर उगाया जाता है, इन सभी किस्मों को नर और मादा प्रजाति में विभक्त किया गया है, इसकी खेती के लिए मादा पौधों के साथ नर पौधों को भी उगाना चाहिए।
मादा प्रजाति के पौधे फल देने का काम करते हैं।
खजूर की बरही किस्म को अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है, इसका पौधा लम्बाई में अधिक तेज़ी से बढ़ता है, इस किस्म के पौधों पर फल देरी से पकते हैं, इसके पौधों पर लगने वाले फल अंडाकार और पीले रंग के होते हैं, इस किस्म के एक पौधे से लगभग 70 से 100 किलो तक फल प्राप्त किये जा सकते हैं।
खजूर की इस किस्म के पौधे सामान्य रूप से विकास करते हैं, जबकि इस किस्म के पौधे पर लगने वाले फल बहुत जल्द पकते हैं, इस किस्म के एक पौधे से लगभग 60 किलो तक फल प्राप्त होते हैं, जिनका रंग पकने पर लाल दिखाई देता है और ये स्वाद में बहुत मीठा होता है।
खजूर की ये एक अगेती किस्म है, जो जुलाई महीने में पककर तैयार हो जाती है, इस किस्म के पौधों पर लगने वाले फल लम्बाई वाले होते हैं, जिनका रंग हल्का नारंगी और छिलके का रंग पीला होता है, इस किस्म के एक पौधे से लगभग 100 किलो तक फल प्राप्त किये जा सकते हैं।
खजूर की ये एक देरी से पकने वाली किस्म है, जिसके एक पौधे से 100 किलो तक फल प्राप्त होते हैं, इस किस्म के पौधों पर लगने वाले फलों का रंग सुनहरी पीला और स्वाद मीठा होता है, ये फल अन्य किस्मों से मुलायम होते हैं।
इस किस्म के पौधे बौने आकार के होते हैं, जिन पर लगने वाले फल पिंडखजूर बनाने के लिए सबसे उपयोगी होते हैं, इस किस्म के एक पौधे से एक बार में 60 किलो तक फल प्राप्त होते हैं।
खजूर की ये एक देरी से पकने वाली किस्म है, जिसे मोरको में सबसे ज्यादा उगाया जाता है, इस किस्म के फलों का रंग पीला नारंगी होता है, इस किस्म के फल देरी से पककर तैयार होते हैं, जो पकने के बाद बहुत मीठे लगते हैं, इस किस्म के फल पिंडखजूर बनाने के लिए उपयोगी होते हैं, इसके एक पौधे से एक बार में 75 से 100 किलो तक फल प्राप्त किये जा सकते हैं।
नर प्रजाति के पौधों पर फल नही लगते, इसके पौधों पर सिर्फ फूल खिलते है।
इस किस्म के पौधे पर 10 से 15 फूल खिलते हैं और प्रत्येक फूल से लगभग 15 से 20 ग्राम तक परागकण प्राप्त होते हैं, लेकिन इसके परागकण लगभग 10 दिन की देरी से बनते हैं।
ये भी एक नर किस्म का पौधा है, जिस पर लगभग 5 फूल आते हैं और प्रत्येक फूल में लगभग 6 परागकण पाए जाते हैं।
खजूर की खेती के लिए मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए, इसके लिए खेत की शुरुआत में गहरी जुताई कर मिट्टी को अलट-पलट कर दें, उसके बाद खेत में कल्टीवेटर चलाकर दो तिरछी जुताई कर दें और खेत में पाटा चला दें, ताकि मिट्टी समतल हो जाये।
खेत के समतल हो जाने के बाद खेत में एक मीटर व्यास वाले एक मीटर गहरे गड्डे तैयार कर लें, उसके बाद इन गड्डों में पुरानी गोबर खाद को मिट्टी में मिलाकर भर दें, इसके अलावा खाद में फोरेट या कैप्टान की उचित मात्रा को भी मिला दें, उसके बाद गड्डों की सिंचाई कर दें, इन गड्डों को पौधे के लगाने से एक महीने पहले तैयार किया जाता है।
खजूर के पौधों की रोपाई बीज और पौध दोनों रूप में की जा सकती है, बीज से इसके पौधे तैयार करने में काफी समय लग जाता है और फल लगने में भी देरी होती है, इस कारण किसी सरकारी मान्यता प्राप्त नर्सरी से इसके पौधे खरीदकर लगाने से जल्द पैदावार मिलती है, इसके अलावा सरकार की तरफ से 70 प्रतिशत अनुदान भी मिलता है, खजूर के पौधों को खेत में लगाने के लिए प्रत्येक गड्डों के बीच 6 से 8 मीटर की दूरी होनी चाहिए, गड्डों के बीच में एक और गड्डा बनाकर उस गड्डे में इसके पौधों की रोपाई की जाती है।
इसके पौधों को खेत में लगाने का सबसे उपयुक्त टाइम अगस्त का महीना होता है, इस दौरान इसके पौधों की रोपाई कर देनी चाहिए, एक एकड़ में इसके लगभग 70 पौधे लगाए जा सकते हैं।
खजूर के पौधे को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नही होती है, गर्मियों के टाइम में इसके पौधों की 15 से 20 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए और सर्दियों के टाइम में महीने में एक बार सिंचाई करना काफी होता है, जब पौधे पर फल बन रहे हो तब पौधे के पास नमी बनाए रखने के लिए आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए।
इसके पौधे को खाद की जरूरत सामान्य रूप से होती है, इसके पौधे को शुरुआत में 25 से 30 किलो पुरानी गोबर की खाद हर साल लगातार 5 साल तक देनी चाहिए, इसके बाद जब पौधे पर फल बनने लगे तब इस मात्रा को बढ़ा देना चाहिए, इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप में यूरिया की चार किलो मात्रा को साल में दो बार प्रति एकड़ के हिसाब से देना चाहिए।
इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए उनकी उचित समय पर नीलाई-गुड़ाई करते रहना चाहिए, साल में इसके पौधों की 5 से 6 गुड़ाई कर देनी चाहिए, इससे पौधा अच्छे से विकास करता है और फल भी अच्छे से लगते हैं, इसके अलावा पौधों को लगाने के बाद पौधों के बीच में शेष बची जमीन की जुताई टाइम पर कर दें, इससे जमीन में उगने वाली खरपतवार नष्ट हो जायेगी।
खजूर का पौधा एक बार लगाने के 5 से 6 साल बाद पैदावार देना शुरू करता है, इस दौरान किसान भाई कम सिंचाई वाली मसाले और औषधीय फसलों को उगाकर अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं, जिससे उन्हें किसी तरह की आर्थिक परेशानियों का सामना नही करना पड़ेगा।
खजूर के पौधे में काफी कम ही रोग दिखाई देते हैं, लेकिन कुछ कारक होते हैं जो इसकी पैदावार को प्रभावित करते हैं।
दीमक का रोग पौधों की जड़ों पर प्रभाव डालता है, दीमक के लगने पर धीरे धीरे पूरा पौधा नष्ट हो जाता है, इस रोग के लगने पर पौधों की जड़ों में क्लोरपाइरीफास की उचित मात्रा को पानी में मिलाकर पौधों की जड़ों में डालना चाहिए।
पक्षियों का आक्रमण पौधों पर फल लगने के दौरान देखने को मिलता है, फल लगने के दौरान पक्षी फलों को काटकर ज्यादा नुकसान पहुँचाते हैं, जिससे पैदावार कम होती हैं, इसके बचाव के लिए पौधों पर जाल लगा देना चाहिए।
खजूर के पौधे पर सफ़ेद और लाल किट रोग का प्रभाव पौधे की पत्तियों पर अधिक देखने को मिलता है, जिनकी वजह से पैदावार पर भी फर्क पड़ता है, पौधे पर जब इन किट का प्रभाव ज्यादा दिखाई दे, तो पौधों पर इमीडाक्लोप्रिड या एक्टामिप्रिड की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए।
खजूर का पौधा खेत में लगाने के लगभग 3 साल बाद पैदावार देना शुरू करता है, इस दौरान इसकी तुड़ाई तीन चरणों में की जाती है, पहले चरण में इसके फलों की तुड़ाई तब करें जब फल ताज़े और पके हुए हों और दूसरे चरण में इनकी तुड़ाई फलों के नर्म पड़ने पर की जाती है, जबकि तीसरे और आखरी चरण इनकी की तुड़ाई फलों के सुख जाने के बाद मानसून के मौसम से पहले की जाती है, जिनका इस्तेमाल छुहारा के रूप में किया जाता है, जबकि पहले दो चरणों के फलों का इस्तेमाल पिंडखजूर बनाने में किया जाता है, दूसरे चरण में प्राप्त होने वाले खजूर को धोकर और सुखाकर भी छुहारे बनाए जा सकते हैं।
खजूर की खेती से कम खर्च पर अधिक कमाई की जा सकती है, इसके एक पौधे से पांच साल बाद औसतन 70 से 100 किलो तक खजूर प्राप्त होते हैं, जबकि एक एकड़ में लगभग 70 पौधे लगाए जा सकते हैं, जिनसे एक बार में 5000 किलो से ज्यादा खजूर प्राप्त होते हैं, जिनका बाज़ार में थोक भाव 25 से 40 रूपये प्रति किलो तक पाया जाता हैं, जिससे किसान भाई पांच साल बाद एक बार में लगभग दो लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते है।
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