अरंडी की खेती कैसे करे | arandi ki kheti kaise kare

अरंडी की खेती कैसे करे

अरंडी वानस्पतिक तेल प्रदान करने वाली खरीफ की एक मुख्य व्यवसायिक फसल है, अरंडी के तेल का उपयोग साबुन, रंग, वार्निश, कपड़ा रंगाई उद्योग, हाइड्रोलिक ब्रेक तेल, प्लास्टिक, चमड़ा उद्योग में होता है, अरण्डी की पत्तियां रेशम के कीटों को पालने व हरी खाद बनाने में काम आती हैं, खली खाद के रूप में काम आती है, अरंडी की खेती सिंचित और असिंचित दोनो ही स्थितियों में की जाती है, इसकी जड़ें गहरी जाती हैं, जिससे फसल में सूखा सहन करने की क्षमता बढ़ जाती है | 

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अरंडी की खेती के लिए जलवायु

अरंडी की खेती विभिन्न प्रकार के जलवायु में की जा सकती है, इसकी बुवाई खरीफ व कटाई रबी मौसम में होती है, इसलिए फसल पर पाले का प्रभाव भी पड़ता है, यह सूखा सहन कर सकती है, परन्तु जल भराव के प्रति संवेदनशील है, अरण्डी फसल को २० से २७ डिग्री सेन्टिग्रेड तापमान और कम आद्रता की आवश्यकता होती है, पौधे की वृद्धि तथा बीज पकने के समय उच्च ताप और फूल आने पर अपेक्षाकृत कम तापमान की आवश्यकता पड़ती है | 

अरंडी की खेती के लिए उपयुक्त भूमि

अरंडी अच्छे जल निकास वाली लगभग सभी भूमियों में उगायी जा सकती है, परन्तु बलुई दोमट से दोमट भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त है, इसकी खेती ऊसर एवं क्षारीय भूमि में सफलतापूर्वक नहीं की जा सकती है, अच्छे फसल उत्पादन के लिये भूमि का पी.एच. मान ५ से ६ के बीच होना चाहिये | 

मिश्रित फसल पद्धति

अरंडी की खेती को आमतौर पर मिश्रित फसल के रूप में उगाया जाता है, खरीफ की फसल को सोयाबीन, उड़द, मूँग, लोबिया, गुआरफली और अरहर के साथ तथा रबी में चना, मटर, आलू, सूर्यमुखी के साथ बोया जाता है, उक्त फसलों के साथ अरंडी की अन्तर्वर्तीय खेती करना लाभदायक पाया गया है, अरंडी की शुद्ध फसल के बाद सिंचित क्षेत्रों में गेंहू, चना, अलसी आदि की फसलें की जा सकती हैं, मिश्रित फसल के लिए अरंडी का ५ से ७ किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज उपयुक्त रहता है | 

अरंडी की उन्नत किस्में

  • संकुल किस्में - ज्योति, अरूणा, क्रान्ति, काल्पी-६, टी-३, पंजाब अरंडी नं-१ आदि | 
  • संकर किस्में - जी.सी.एच-४, जी.सी.एच-५, डी.सी.एच-३२, जी.एयू.सी.एच-१, जी.सी.एच-६, डी.सी.एच- १७७, डी.सी.एच-५१९ आदि | 

अरंडी के खेत की तैयारी

अरंडी का पौधा मजबूत होता है और जड़ें गहराई तक जाती हैं, इसलिए गहरी जुताई फसल के लिए लाभदायक है, एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें तथा दो- तीन जुताई कल्टीवेटर या हैरो से आवश्यकतानुसार करें और पाटा लगाकर खेत को समतल करें, वर्षा होने पर खेत में उपयुक्त नमी की अवस्था में जुताई करें, ताकि खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाए और खरपतवार आदि नष्ट हो जाएं | 

खाद और उर्वरक

खाद और उर्वरक का प्रयोग मिटटी जाँच के आधार पर ही करना चाहिये, ताकि आवश्यक उर्वरक की मात्रा ही दी जाये और अनावश्यक लागत से बचा जा सके, असिंचित अरंडी की फसल में ४० किलोग्राम नत्रजन और २० किलोग्राम फास्फोरस प्रति हैक्टेयर प्रयोग करें, आधा नत्रजन और पूरा फास्फोरस बुवाई के समय गहरा ऊर कर दें एवं शेष बची आधी नत्रजन को खड़ी फसल में ३० दिन की अवस्था पर वर्षा होने पर दें, वहीं अरंडी की सिंचित फसल के लिये ८० किलोग्राम नत्रजन और ४० किलोग्राम फास्फोरस प्रति हैक्टेयर प्रयोग करें | 

आधा नत्रजन तथा पूरा फास्फोरस खेत की तैयारी के समय बुवाई से पूर्व भूमि में सीड़ ड्रिल से गहरा ऊर कर दें, शेष बची ४० किलोग्राम नत्रजन को दो बराबर भागों में बांट कर बुवाई के ३५ से ९० दिन बाद खड़ी फसल में छिड़क कर दें, अरंडी एक तिलहन फसल है, जिसका उत्पादन और तेल की मात्रा बढ़ाने के लिये बुवाई से पूर्व २० किलोग्राम सल्फर प्रति हैक्टेयर को जिप्सम २०० से २५० किलोग्राम प्रति हैक्टेयर के द्वारा देना लाभदायक रहता है | 

बीज मात्रा

सदैव प्रमाणित और उपचारित बीज काम में लेना चाहिये, बीज की मात्रा, बीज के आकार, बोने की विधि, भूमि में उपलब्ध नमी तथा फसल की अवधि कम या अधिक समय में पकने वाली पर निर्भर करती है, अरंडी का प्रति हैक्टेयर १२ से १५ किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है, यदि बीज को हाथ से एक-एक कर बोया जाता है, तो ६ से ८ किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर चाहिए | 

बीज उपचार

यदि बीज उपचारित नहीं है, तो बुवाई से पूर्व बीज को उपचारित अवश्य करें, भूमिगत कीड़ों और बीमारियों से उगते बीज को बचाने के लिये, बीजों को कार्बेन्डाजिम २ ग्राम प्रति किलोग्राम के हिसाब से उपचारित कर बुवाई करें | 

बुवाई का समय

बुवाई का उचित समय जुलाई के द्वितीय सप्ताह से अगस्त के प्रथम सप्ताह तक बुवाई कर सकते है, यानि की समय पर मानसून आने पर खरीफ की सभी फसलों की बुवाई करने के बाद अरंडी का खेत तैयार कर आराम से अच्छे तरीके से बुवाई करें, ताकि अंकुरण अच्छा हो व फसल की बढ़वार भी ठीक हो | 

बुवाई की विधि

अरंडी की बुवाई हल, सीड़ ड्रिल या हाथ से बो कर की जाती है, सिंचित फसल के लिये लाइन से लाइन की दूरी ९० से १२० सेन्टीमीटर और पौधे से पौधे की बीच ६० सेन्टीमीटर दूरी रखते है, जबकि असिंचित फसल के लिये लाइन और पौधों की दूरी ६०*४५ सेन्टीमीटर रखते हैं | 

जल प्रबन्ध

बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिये, अरंडी खरीफ में उगायी जाने वाली फसल है, जहाँ समय-समय पर वर्षा होती रहती है, अरण्डी की जड़ें, अधिक गहराई से भी नमी का शोषण कर लेती हैं, वर्षा काल में बुवाई के ४५ से ६० दिनों तक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, अगर पहले पानी दे देते हैं, तो जड़े ऊपर रह जाती हैं व गहराई में नहीं जा पाती है, इसलिए पहला पानी आवश्यक हो तभी दें, ताकि जड़ों का अच्छा विकास हो सके, इसके बाद आवश्यकतानुसार १८ से २० दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करते रहें | 

अरंडी में बूंद-बूंद विधि द्वारा सिंचाई करने के लिये खेत में ड्रिपर पाइप की मुख्य लाइन के दोनों तरफ १२० सेंटीमीटर की दूरी पर छेद कर ५० से ५० मीटर लम्बी ड्रिपर लाइनें खेत में डाल दी जाती हैं, ड्रिपर लाइनों के अन्दर ६० सेंटीमीटर की दूरी पर ड्रिपर लगाते हैं और उन्ही ड्रिपर के पास अरंडी के बीज की बुवाई करते है या अरण्डी के बीजों की सीड़ ड्रिल से बुवाई कर देते हैं और बीज बुवाई वाली लाइन पर ड्रिपर पाइप रख देते हैं, इसके बाद बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति से ३ दिन के अन्तराल पर पानी देते हैं | 

ड्रिप लाइनें १६ मिलीमीटर व्यास की तथा १.२५ किलोग्राम प्रति सेंटीमीटर का दबाव रखकर ४ लीटर पानी प्रति ड्रिपर प्रति घण्टा की सप्लाई दें, इस तरीके से अगस्त माह में ०.५ घण्टा, सितम्बर व अक्टुबर में १.५ घण्टा, नवम्बर, दिसम्बर और जनवरी में ०.५ से ०.७५ घण्टा व फरवरी, मार्च में १.५ से २ घण्टा सिंचाई करें, बूंद-बूंद सिंचाई विधि में पानी की बचत ३५ प्रतिशत व उत्पादन में भी सार्थक वृद्धि होती है, साथ ही खरपतवार, कीट और रोगों का प्रकोप भी कम होता है | 

खरपतवार नियंत्रण

अरंडी की फसल में प्रारम्भिक अवस्था में खरपतवार का प्रभाव अधिक होता है, जब तक पौधे ६० सेंटीमीटर के न हो जाएं तथा पौधे अपने बीच की दूरी ढ़क न लें, तब तक समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिये, लाइनों में बुवाई की गई फसलों में ट्रेक्टर द्वारा भी गुड़ाई की जा सकती है, जो सस्ती और अच्छी रहती है, अरंडी की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिये १ किलोग्राम पेंडीमेथालिन प्रति हैक्टेयर को ६०० लीटर पानी में घोलकर बुवाई के दूसरे या तीसरे दिन छिड़काव करें, इसके ४० दिन बाद एक निराई-गुड़ाई अवश्य करें | 

पौध संरक्षण

  • पत्ती धब्बा एवं झुलसा रोग - इस रोग के नियंत्रण के लिये २ किलोग्राम मैन्कोजेब का पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें | 
  • उखटा रोग - उखटा रोग की रोकथाम के लिये ट्राइकोडर्मा विरिडि १० ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से बीजोपचार तथा २.५ किलोग्राम ट्राइकोडर्मा को नम गोबर की खाद के साथ बुवाई पूर्व देना लाभदायक होता है |
  • सेमीलूपर और बिहार हेयरी केटरपीलर - इस कीट का प्रकोप सितम्बर से नवम्बर के बीच होता है, कीट नियंत्रण के लिये १ लीटर क्यूनालफॉस २५  ई.सी, ७०० से ९०० पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर फसल पर छिड़काव करें |
  • जैसिड - जैसिड नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफॉस ३६ एस.एल. १ लीटर प्रति हैक्टयर का छिड़काव करें |
  • पाले से बचाव - पाला पड़ने की संभावना हो तो पहले १ लीटर गंधक के तेजाब को १००० लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें, पाले से प्रभावित फसल में सिंचाई करें और उसमें १० किलोग्राम अतिरिक्त नत्रजन प्रति हैक्टेयर यूरिया के रुप में खड़ी फसल में यूरिया का छिड़काव करें |

कटाई और पैदावार

जब अरंडी के सिकरे हल्के पीले या भूरे हो जाएं तब कटाई करें, सिकरों के पूरा पकने तक का इन्तजार नहीं करें, अन्यथा उत्पाद के चटकने से पैदावार में हानि होगी, अरण्डी में पहली तुडाई लगभग ९० से ११० दिन बाद और बाद में हर माह आवश्यकतानुसार तुड़ाई करते हैं, उपरोक्त अच्छी कृषि तकनीक अपनाकर असिंचित अवस्था मे १५ से २३ क्विंटल और सिंचित अवस्था में ३० से ३५ क्विंटल प्रति हैक्टेयर पैदावार प्राप्त की जा सकती है |

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