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अदरक शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के स्ट्रिंगावेरा से हुई है, जिसका अर्थ होता है, एक ऐसा सींग या बारहा सिंगा के जैसा शरीर, अदरक मुख्य रूप से उष्ण क्षेत्र की फसल है, संभवत: इसकी उत्पत्ति दक्षिणी और पूर्व एशिया में भारत या चीन में हुई है |
भारत की अन्य भाषाओं
में अदरक को विभिन्न नामो से जाना जाता है :-
अदरक का प्रयोग प्रचीन काल से ही मसाले, ताजी सब्जी और औषधी के रूप मे चला आ रहा है, अब अदरक का प्रयोग सजावटी पौधों के रूप में भी उपयोग किया जाने लगा है, अदरक के कन्द विभिन्न रंग के होते हैं, जमाइका की अदरक का रंग हल्का गुलाबी और अफ्रीकन की अदरक हल्की हरी होती है।
अदरक का वानस्पतिक नाम जिनजिबेर ओफिसिनेल है, जो जनजीबेरेसी परिवार से सम्बंध रखती है, अदरक की करीब १५० प्रजातियाँ उष्ण एवं उप उष्ण एशिया और पूर्व एशिया तक पाई जाती हैं, जिनजीबेरेसी परिवार का महत्व इसलिए अधिक है, क्योंकि इसको मसाल परिवार भी कहा जाता है, जिसमें अदरक के अलावा इस परिवार में अन्य मसाले और फसले है, जैसे- हल्दी, इलायची, बड़ी इलायची आदि बड़ी महत्वपूर्ण मसाला फसलें सम्मिलित है, इसी परिवार की कुछ जगंली प्रजातियाँ भी पाई जाती है, जिनको अलपाइना अमोनम में रखा गया है।
वितरण
भारत में अदरक की खेती का क्षेत्रफल १३६ हजार हेक्टर है, जो उत्पादित अन्य मसालों में प्रमुख हैं, अदरक भारत को विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का एक प्रमुख स्त्रोत हैं, भारत विश्व में उत्पादित अदरक का आधा भाग पूरा करता हैं, भारत में अदरक की खेती मुख्यत: केरल, उडीसा, आसाम, उत्तरप्रदेश, पश्चिमी बंगाल, आंध्रप्रदेश, हिमाचलप्रदेश, मध्यप्रदेश तथा उत्तराँचल प्रदेशों में मुख्य व्यवसायिक फसल के रूप में की जाती है, केरल देश में अदरक उत्पादन में प्रथम स्थान पर हैं।
उपयोगिता
अदरक का प्रयोग मसाले, औषधिया तथा सौन्दर्य सामग्री के रूप में हमारे दैनिक जीवन में वैदिक काल से चला आ रहा हैं, खुशबू पैदा करने के लिये आचारो, चाय के अलावा कई व्यजंनो में अदरक का प्रयोग किया जाता हैं, सर्दियों में खाँसी जुकाम आदि में प्रयोग किया जाता हैं, अदरक का सोंठ कें रूप में इस्तेमाल किया जाता हैं, अदरक का तेल, चूर्ण तथा एग्लिओरजिन भी औषधियो में उपयोग किया जाता हैं |
अदरक का प्रयोग
औषधियों के रूप में :-
सर्दी-जुकाम, खाँसी, खून की कमी, पथरी, लीवर वृद्धि, पीलिया, पेट के रोग, वाबासीर, अमाशय तथा वायु रोगीयों के लिये दवाओ के बनाने में प्रयोग की जाती हैं।
अदरक का प्रयोग
मसाले के रूप में :-
चटनी, जैली, सब्जियो, शर्बत, लडडू, चाट आदि में कच्ची तथा सूखी अदरक का उपयोग किया जाता हैं।
अदरक का प्रयोग
सौंदर्य प्रसाधन के रूप में :-
अदरक का तेल, पेस्ट, पाउडर तथा क्रीम को बनाने में किया जाता हैं।
उत्पादन
तकनीक
जलवायु
अदरक की खेती गर्म और आर्द्रता वाले स्थानों में की जाती है, मध्यम वर्षा बुवाई के समय अदरक की गाँठों के जमाने के लिये आवश्यक होती है, इसके बाद थोडा ज्यादा वर्षा पौधों को वृद्धि के लिये तथा इसकी खुदाई के एक माह पूर्व सूखे मौसम की आवश्यकता होती हैं, अगेती बुवाई या रोपण अदरक की सफल खेती के लिये अति आवश्यक हैं, १५०० से १८०० मि.मी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती अच्छी उपज के साथ की जा सकती हैं, परन्तु उचित जल निकास रहित स्थानों पर खेती को भारी नुकसान होता हैं, औसत तापमान २५ डिग्री सेन्टीग्रेड, गर्मीयों में ३५ डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान वाले स्थानो पर इसकी खेती बागों में अन्तरवर्तीय फसल के रूप मे की जा सकती हैं।
अदरक की खेती बलुई दोमट जिसमें अधिक मात्रा में जीवांश या कार्बनिक पदार्थ की मात्रा हो वो भूमि सबसे ज्यादा उपयुक्त रहती है, मृदा का पी.एच. मान ५ से ६ या ६.५ अच्छे जल निकास वाली भूमि सबसे अच्छी अदरक की अधिक उपज के लिए रहती हैं, एक ही भूमि पर बार-बार फसल लेने से भूमि जनित रोग एवं कीटों में वृद्धि होती हैं, इसलिए फसल चक्र अपनाना चाहिये, उचित जल निकास ना होने से कन्दों का विकास अच्छे से नही होता है।
अदरक के कन्दों का चयन बीज हेतु ६ से ८ माह की अवधि वाली फसल में पौधों को चिन्हित करके काट लेना चाहिये, अच्छे प्रकन्द के २.५ से ५ सेमी. लम्बे कन्द जिनका वजन २० से २५ गर्म तथा जिनमें कम से कम तीन गाँठे हो प्रवर्धन हेतु कर लेना चाहिये, बीज उपचार मैंकोजेव फफूँदी से करने के बाद ही प्रवर्धन हेतु उपयोग करना चाहिये, अदरक २० से २५ कुंटल प्रकन्द है, बीज दर उपयुक्त रहता हैं तथा पौधों की संख्या १४०००० है, पर्याप्त मानी जाती हैं, मैदानी भागो में १५ से १८ कुंटल है, बीजों की मात्रा का चुनाव किया जा सकता हैं, क्योंकि अदरक की लागत का ४० से ४६ भाग बीज में लग जाता है, इसलिए बीज की मात्रा का चुनाव, प्रजाति, क्षेत्र एवं प्रकन्दों के आकार के अनुसार ही करना चाहिये।
अदरक की बुवाई दक्षिण भारत में मानसून फसल के रूप में अप्रैल से मई में की जाती है, जो दिसम्बर में परिपक्क होती है, जबकि मध्य एवं उत्तर भारत में अदरक एक शुष्क क्षेत्र फसल है, जो अप्रैल से जून माह तक बुवाई योग्य समय हैं, सबसे उपयुक्त समय १५ मई से ३० मई हैं, १५ जून के बाद बुवाई करने पर कंद सड़ने लगते हैं और अंकुरण पर प्रभाव बुरा पड़ता हैं, केरल में अप्रैल के प्रथम समूह पर वुवाई करने पर उपज २००% तक अधिक पाई जाती हैं, वही सिचाई क्षेत्रों में बुवाई का सबसे अधिक उपज फरवरी के मध्य बोने से प्राप्त हुई पायी गयी है तथा कन्दों के जमाने में ८०% की वृद्धि आँकी गयी है, पहाड़ी क्षेत्रो में १५ मार्च के आस-पास बुवाई की जाने वाली अदरक में सबसे अच्छा उत्पादन प्राप्त हुआ है |
प्रकन्दों को ४० सेमी. के अन्तराल पर बोना चाहिये, मेड़ या कूड़ विधि से बुवाई करनी चाहिये, प्रकन्दों को ५ सेमी. की गहराई पर बोना चाहिये, बाद में अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या मिट्टी से ढक देना चाहिये, यदि रोपण करना है तो कतार से कतार ३० सेमी. और पौध से पौध रोपण २० सेमी. पर करे, अदरक की रोपाई १५*१५, २०*४० या २५*३० सेमी. पर भी कर सकते हैं, भूमि की दशा या जल वायु के प्रकार के अनुसार समतल कच्ची क्यारी, मेड-नाली आदि विधि से अदरक की वुवाई या रोपण किया जाता है।
समतल विधि
हल्की एवं ढालू भूमि में समतल विधि द्वारा रोपण या वुवाई की जाती हैं, खेती में जल निकास के लिये कुदाली या देशी हल से ५ से ६ सेमी. गहरी नाली बनाई जाती है, जो जल के निकास में सहायक होती हैं, इन नालियों में कन्दों को १५ से २० सेमी. की दूरी पर रोपण किया जाता हैं तथा रोपण के दो माह बाद पौधो पर मिट्टी चढ़ाकर मेडनाली विधि बनाना लाभदायक रहता हैं।
ऊँची क्यारी विधि
इस विधि में १*३ मी. आकार की क्यारीयों को जमीन से २० सेमी. ऊची बनाकर प्रत्येक क्यारी में ५० सेमी. चौड़ी नाली जल निकास के लिये बनाई जाती हैं, बरसात के बाद यही नाली सिंचाई के काम में आती हैं, इन उथली क्यारियों में २० से ३० सेमी. की दूरी पर ५ से ६ सेमी. गहराई पर कन्दों की बुवाई करते हैं, भारी भूमि के लिये यह विधि अच्छी है।
मेड़ नाली विधि
इस विधि का प्रयोग सभी प्रकार की भूमियों में की जा सकती हैं, तैयार खेत में ४० से ६० सेमी. की दूरी पर मेड़ नाली का निर्माण हल या फावडे से काट के किया जा सकता हैं, बीज की गहराई ५ से ६ सेमी. रखी जाती हैं।
रोपण हेतु नर्सरी तैयार करना
यदि पानी की उपलब्धता नही या कम है, तो अदरक की नर्सरी तैयार करते हैं, पौधशाला में एक माह अंकुरण के लिये रखा जाता, अदरक की नर्सरी तैयार करने हेतु उपस्थित बीजो या कन्दों को गोबर की सड़ी खाद और रेत के मिश्रण से तैयार बीज शैया पर फैलाकर उसी मिश्रण से ढक देना चाहिए तथा सुबह-शाम पानी का छिड़काव करते रहना चाहिये, कन्दों के अंकुरित होने एवं जड़ो से जमाव शुरू होने पर उसे मुख्य खेत में मानसून की बारिश के साथ रोपण कर देना चाहिये।
बीज उपचार
प्रकन्द बीजों को खेत में बुवाई, रोपण एवं भण्डारण के समय उपचारित करना आवश्यक हैं, बीज उपचारित करने के लिये मैंकोजेब, मैटालैक्जिल या कार्बोन्डाजिम की ३ ग्राम मात्रा को प्रति लीटर के पानी के हिसाब से घोल बनाकर कन्दों को ३० मिनट तक डूबो कर रखना चाहिये, साथ ही स्ट्रप्टोसाइकिलन प्लान्टो माइसिन भी ५ ग्राम की मात्रा २० लीटर पानी के हिसाब से मिला लेते है, जिससे जीवाणु जनित रोगों की रोकथाम की जा सके, पानी की मात्रा घोल में उपचारित करते समय कम होने पर उसी अनुपात में मिलाते जाये और फिर से दवा की मात्रा भी, चार बार के उपचार करने के बाद फिर से नया घोल बनाये, उपचारित करने के बाद बीज कों थोडी देर के बाद बोना चाहिए |
छाया का प्रभाव
अदरक को हल्की छाया देने से खुला में बोई गयी अदरक से २५ प्रतिशत अधिक उपज प्राप्त होती है तथा कन्दों की गुणवत्ता में भी उचित वृद्धि पायी गयी हैं |
फसल प्रणाली
अदरक की फसल को रोग एवं कीटों में कमी लाने एवं मृदा के पोषक तत्वो के बीच सन्तुलन रखने हेतु, अदरक को सिंचित भूमि में पान, हल्दी, प्याज, लहसुन, मिर्च अन्य सब्जियों, गन्ना, मक्का और मूँगफली के साथ फसल को उगाया जा सकता है।
वर्षा अधिक सिंचित वातावरण में ३ से ४ साल में एकबार आलू, रतालू, मिर्च, धनिया के साथ या अकेले ही फसल चक्र में आ सकती हैं, अदरक की फसल को पुराने बागों में अन्तरवर्तीय फसल के रूप में उगा सकते हैं, मक्का या उर्द के साथ अन्तरावर्ती फसल लेने में मक्का ५ से ६ किग्रा / एकड़, उर्द १० से १५ किग्रा /एकड़ बीज की आवश्यकता होती हैं, मक्का और उर्द अदरक की फसल को छाया प्रदान करती हैं तथा मक्का ६ से ७ कुंटल / एकड़ और उर्द २ कुंटल / एकड़।
पलवार
अदरक की फसल में पलवार विछाना बहुत ही लाभदायक होता हैं, रोपण के समय इससे भूमि का तापक्रम एवं नमी का सामंजस्य बना रहता है, जिससे अंकुरण अच्छा होता है, खरपतवार भी नही निकलते और वर्षा होने पर भूमि का क्षरण भी नही हो पाता है, रोपण के तुरन्त बाद हरी पत्तियाँ या लम्बी घास पलवार के लिये ढाक, आम, शीशम, केला या गन्ने के ट्रेस का भी उपयोग किया जा सकता हैं, १० से १२ टन या सूखी पत्तियाँ ५ से ६ टन बिछाना चाहिये।
दुबारा इसकी आधी मात्रा को रोपण के ४० दिन और ९० दिन के बाद बिछाते हैं, पलवार बिछाने के लिए उपलब्धतानुसार गोबर की सड़ी खाद एवं पत्तियाँ, धान का पूरा प्रयोग किया जा सकता हैं, काली पाॅलीथीन को भी खेत में बिछा कर पलवार का काम किया जा सकता हैं, निदाई, गुडाई और मिट्टी चढाने का भी उपज पर अच्छा असंर पडाता हैं, ये सारे कार्य एक साथ करने चाहिये।
निदाई, गुडाई तथा मिट्टी चढ़ाना
पलवार के कारण खेत में खरपतवार नही उगते, अगर उगे हो तो उन्हें निकाल देना चाहिये, दो बार निदाई ४ से ५ माह बाद करनी चाहिये, साथ ही मिट्टी भी चढाना चाहिए, जब पौधे २० से २५ सेमी. ऊंचे हो जाये, तो उनकी जड़ो पर मिट्टी चढाना आवश्यक होता हैं, इससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है तथा प्रकंद का आकार बड़ा होता है एवं भूमि में वायु आगमन अच्छा होता हैं, अदरक के कंद बनने लगते है, तो जड़ों के पास कुछ कल्ले निकलते हैं, इन्हे खुरपी से काट देना चाहिए, ऐसा करने से कंद बड़े आकार के हो पाते हैं।
पोषक तत्व प्रबन्धन
अदरक एक लम्बी अवधि की फसल हैं, जिसे अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण के बाद करना चाहिए, खेत तैयार करते समय २५० से ३०० कुन्टल हेक्टेयर के हिसाब से सड़ी हुई गोबर या कम्पोस्ट की खाद खेत में सामान्य रूप से फैलाकर मिला देना चाहिए, प्रकन्द रोपण के समय २० कुन्टल / है, तो उस पर से नीम की खली डालने से प्रकन्द गल एवं सूत्रि कृमि या भूमि शक्ति रोगों की समस्याँ कम हो जाती हैं।
रासायनीक उर्वरकों की मात्रा को २० कम कर देना चाहिए, यदि गोबर की खाद या कम्पोस्ट डाला गया है, तो संन्तुष्ट उर्वरको की मात्रा ७५ किग्रा. नत्रजन, किग्रा. कम्पोस्टस और ५० किग्रा. पोटाश है, इन उर्वरकों को विघटित मात्रा में डालना चाहिए, प्रत्येक बार उर्वरक डालने के बाद उसके ऊपर मिट्टी में ६ किग्रा. जिंक है, ३० किग्रा. जिंक सल्फेट डालने से उपज अच्छी प्राप्त होती हैं।
खुदाई
अदरक की खुदाई लगभग ८ से ९ महीने रोपण के बाद कर लेना चाहिये, जब पत्तियाँ धीरे-धीरे पीली होकर सूखने लगे, खुदाई से देरी करने पर प्रकन्दों की गुणवत्ता और भण्डारण क्षमता में गिरावट आ जाती है तथा भण्डारण के समय प्रकन्दों का अंकुरण होने लगता हैं, खुदाई कुदाली या फावडे की सहायता से की जा सकती है, बहुत शुष्क और नमी वाले वातावरण में खुदाई करने पर उपज को क्षति पहुॅचती है, जिससे ऐसे समय में खुदाई नहीं करना चाहिए।
खुदाई करने के बाद प्रकन्दों से पत्तीयो, मिट्टी तथा अदरक में लगी मिट्टी को साफ कर देना चाहिये, यदि अदरक का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाना है, तो खुदाई रोपण के ६ महीने के अन्दर खुदाई किया जाना चाहिए, प्रकन्दों को पानी से धुलकर एक दिन तक धूप में सूखा लेना चाहिये, सूखी अदरक के प्रयोग हेतु ८ महीने बाद खोदी गई है, ६ से ७ घन्टे तक पानी में डुबोकर रखें इसके बाद नारियल के रेशे या मुलायम ब्रश आदि से रगड़कर साफ कर लेना चाहिये।
धुलाई के बाद अदरक को सोडियम हाइड्रोक्लोरोइड के १०० पी.पी.एम. के घोल में १० मिनट के लिये डुबोना चाहिए, जिससे सूक्ष्म जीवों के आक्रमण से बचाव के साथ-साथ भण्डारण क्षमता भी बढ़ती है, अधिक देर तक धूप ताजी अदरक कम रेशे वाली को १७० से १८० दिन बाद खुदाई करके नमकीन अदरक तैयार की जा सकती है, मुलायम अदरक को धुलाई के बाद ३० प्रतिशत नमक के घोल जिसमें १% सिट्रीक अम्ल में डुबो कर तैयार किया जाता हैं, जिसे १४ दिनों के बाद प्रयोग और भण्डारण के योग हो जाती है।
भण्डारण
ताजा उत्पाद बनाने और उसका भण्डारण करने के लिये, जब अदरक कडी, कम कडवाहट और कम रेशे वाली हो, ये अवस्था परिपक्व होने के पहले आती है, सूखे मसाले और तेल के लिए अदरक को पूण परिपक्व होने पर खुदाई करना चाहिए, अगर परिपक्व अवस्था के बाद कन्दो को भूमि में पडा रहने दे, तो उसमें तेल की मात्रा और तिखापन कम हो जायेगा तथा रेशो की अधिकता हो जायेगी, तेल एवं सौठं बनाने के लिये १५० से १७० दिन के बाद भूमि से खोद लेना चाहिये।
अदरक की परिपक्वता का समय भूमि की प्रकार एवं प्रजातियो पर निर्भर करता है, गर्मीयों में ताजा प्रयोग हेतु ५ महिने में, भण्डारण हेतु ५ से ७ महिने में सूखे तेल प्रयोग हेतु ८ से ९ महिने में बुवाई के बाद खोद लेना चहिये, बीज उपयोग हेतु जब तक ऊपरी भाग पत्तीयो सहित पूरा न सूख जाये, तब तक भूमि से नही खोदना चाहिये, क्योकि सूखी हुई पत्तियाँ एक तरह से पलवार का काम करती है अथवा भूमि से निकाल कर कवक नाशी एवं कीट नाशीयों से उपचारित करके छाया में सूखा कर, एक गडडे में दवा कर ऊपर से बालू से ढक देना चाहिये।
उपज
ताजा हरे अदरक के रूप में १०० से १५० कुंटल उपज प्राप्त हो जाती है, जो सूखाने के बाद २० से २५ कुंटल तक आ जाती हैं, उन्नत किस्मो के प्रयोग एवं अच्छे प्रबंधन द्वारा औसत उपज ३०० कुंटल तक प्राप्त की जा सकती है, इसके लिये अदरक को खेत में ३ से ४ सप्ताह तक अधिक छोड़ना पडता है, जिससे कन्दों की ऊपरी परत पक जाती है और मोटी भी हो जाती हैं।
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