अरबी की खेती कैसे करे | arbi ki kheti kaise kare

अरबी की खेती कैसे करे

अरबी जिसे घुइयाँ भी कहते है, को मुख्यतः कंद के रुप में उपयोग के लिए उगाया जाता है, अरबी के पत्तियों तथा कन्दों में एक प्रकार का उददीपनकारी पदार्थ होता है, जिसके कारण इसे खाते वक्त मुंह और गले में खुजलाहट उत्पन्न होती है, उन्नत तथा विकसित किस्मों में यह तत्व नाम मात्र पाया जाता हैं, अरबी का कंद कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन का अच्छा स्त्रोत है, इसके कंदो में स्टार्च की मात्रा आलू तथा शकरकंद से अधिक होती है, इसकी पत्तियों में विटामिन ए, खनिज लवण जैसे फास्फोरस, कैल्शियम व आयरन और बीटा कैरोटिन पाया जाता है |

 

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इसके प्रति १०० ग्राम में ११२ किलो कैलोरी ऊर्जा, २६.४६ ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, ४३ मिली ग्राम कैल्शियम, ५९१ मिली ग्राम पोटेशियम पाया जाता है, इसकी नर्म पत्तियों से साग तथा पकोड़े बनाये जाते है, कन्दों को साबुत उबालकर छिलकर उतारने के बाद तेल या घी में भून कर स्वादिष्ट व्यंजन के रुप में प्रयोग किया जाता है, हरी पत्तियों को बेसन और मसाले के साथ रोल के रुप में भाप से पका कर खाया जाता है, पत्तियों के डंठल को टुकड़ों में काट तथा सुखा कर सब्जी के रुप में प्रयोग किया जाता है | 

अरबी अजीर्ण के रोगियों के लिये फायदेमंद है और इसका आटा बच्चों के लिए गुणकारी है, इन सब महत्व को ध्यान में रखकर किसान बन्धुओं को इसकी खेती का परम्परागत तरीका छोड़ कर वैज्ञानिक तकनीक से करनी चाहिए, ताकि इसकी खेती से अधिकतम उपज प्राप्त की जा सके, इस लेख में अरबी की खेती वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें का विस्तृत उल्लेख किया गया है | 

अरबी के लिए उपयुक्त जलवायु

अरबी की फसल को गर्म तथा नम जलवायु और २१ से २७ डिग्री सेल्सियस तापक्रम की आवश्यकता होती हैं, अधिक गर्म व अधिक सूखा मौसम इसकी पैदावार पर विपरित प्रभाव डालता हैं, जहाँ पाले की समस्या होती हैं, वहाँ यह फसल अच्छी पैदावार नहीं देती हैं, जिन स्थानों पर औसत वार्षिक वर्षा ८०० से १००० मिलीमीटर तथा समान रूप से वितरित होती हैं, वहाँ इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती हैं, छायादार स्थान में भी पैदावार अच्छी होती हैं, इसलिए फलदार वृक्षों के साथ अन्तवर्तीय फसलों के रूप में भी ली जा सकती है | 

भूमि और तैयारी

अरबी की अच्छी फसल लेने के लिए बलुई दोमट आदर्श भूमि हैं, दोमट और चिकनी दोमट में भी उत्तम जल निकास के साथ इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती हैं, इसकी खेती के लिए ५.५ से ७.० पी.एच. मान वाली भूमि उपयुक्त होती हैं, रोपण हेतु खेत तैयार करने के लिए एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल एवं दो जुताई कल्टीवेटर से करके पाटा चलाकर मिट्टी को भुरीभुरी बना लेना चाहिए | 

अरबी की उन्नत किस्में

इंदिरा अरबी १ 

इस किस्म के पत्ते मध्यम आकार और हरे रंग के होते हैं, तने का रंग ऊपर-नीचे बैंगनी तथा बीच में हरा होता हैं, इस किस्म में ९ से १० मुख्य पुत्री धनकंद पाये जाते है, इसके कंद स्वादिष्ट खाने योग्य होते हैं और पकाने पर शीघ्र पकते हैं, यह किस्म २१० से २२० दिन में खुदाई योग्य हो जाती हैं, इसकी औसत पैदावार २२ से ३३ टन प्रति हेक्टेयर हैं | 

श्रीरश्मि  

इसका पौधा लम्बा, सीधा और पत्तियाँ झुकी हुई, हरे रंग की बैंगनी किनरा लिये होती है, तना का ऊपरी भाग हरा, मध्य तथा निचला भाग बैंगनी हरा होता हैं, इसका मात्र कंद बडा और बेलनाकार होता हैं, पुत्री धनकंद मध्यम आकार के व नुकीले होते हैं, इस किस्म के कंद कंदिकाएँ, पत्तियां और पर्णवृन्त सभी खुजलाहट रहित होते हैं तथा उबालने पर शीघ्र पकते हैं, यह किस्म २०० से २०१ दिन में खुदाई के लिये तैयार हो जाती हैं और इससे औसत १५ से २० टन प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त होती हैं | 

पंचमुखी  

इस किस्म में सामान्यतः पॉच मुख्य पुत्री कंदिकाये पायी जाती हैं, कंदिकायें खाने योग्य होती है और पकने पर शीघ्र पक जाती हैं, रोपण के १८० से २०० दिन बाद इसके कंद खुदाई योग्य हो जाते हैं, इस किस्म से १८ से २५ टन प्रति हेक्टेयर औसत कंद पैदावार प्राप्त होती हैं | 

व्हाइट गौरेइया 

अरबी की यह किस्म रोपण के १८० से १९० दिन में खुदाई योग्य हो जाती हैं, इसके मात्र पुत्री कंद व पत्तियां खाने योग्य होती हैं, इसकी पत्तियां डंठल और कंद खुजलाहट मुक्त होते हैं, उबालने या पकाने पर कंद शीघ्र पकते है, इस किस्म की औसत पैदावार १७ से १९ टन प्रति हेक्टेयर हैं | 

नरेन्द्र अरबी  

इस किस्म के पत्ते मध्यम आकार के तथा हरे रंग के होते हैं, पर्णवृन्त का ऊपरी, मध्य और निचला भाग हरा होता हैं, यह १७० से १८० दिनों में तैयार हो जाती हैं, इसकी औसत पैदावार १२ से १५ टन प्रति हेक्टेयर हैं, इस किस्म की पत्तियां, पर्णवृन्त एवं कंद सभी पकाकर खाने योग्य होते हैं | 

श्री पल्लवी  

यह किस्म २१० दिन में तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार १६ से १८ टन प्रति हेक्टेयर है | 

श्रीकिरण 

यह किस्म १९० दिन में तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार १७ से १८ टन प्रति हेक्टेयर है | 

सतमुखी  

यह किस्म २०० दिन में तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार १५ से २० टन प्रति हेक्टेयर है | 

आजाद अरबी 

यह किस्म १३५ दिन में तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार २८ से ३० टन प्रति हेक्टेयर है | 

मुक्ताकेशी  

यह किस्म १६० दिन में तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार २० टन प्रति हेक्टेयर है | 

बिलासपुर अरूम 

यह किस्म १९० दिन में तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार ३० टन प्रति हेक्टेयर है | 

बीज की बुवाई

  • रोपण का समय :- अरबी का रोपण जून से जुलाई खरीफ की फसल में किया जाता हैं, उत्तरी भारत में इसे फरवरी से मार्च में भी लगाया जाता हैं | 
  • बीज की मात्रा :- बीज दर किस्म और कंद के आकार तथा वजन पर निर्भर करती हैं, सामान्य रूप से १ हेक्टेयर में रोपण हेतु १५ से २० क्विटल कंद बीज की आवश्यकता होती हैं, इसके मात्र पुत्री कंदों २० से २५ ग्राम दोनों को रोपण सामग्री हेतु प्रयुक्त किया जाता हैं | 
  • बीज उपचार :- कंदों को रिडोमिल एम.जेड.- ७२ की 5 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम कंद की दर से उपचारित करना चाहिए, कंदों को बुआई पूर्व फफूंदनाशक के घोल में १० से १५ मिनट डुबाकर रखना चाहिए | 

कंद रोपण विधियाँ

  • मेड़नाली विधि :- इस विधि में तैयार खेत में ६० सेंटीमीटर की दूरी पर मेड़ व नाली का निर्माण किया जाता हैं तथा १० सेंटीमीटर ऊँची मेड पर ४५ सेंटीमीटर की दूरी पर प्रत्येक कंद बीज को ५ सेंटीमीटर की गहराई में रोपा जाता हैं | 
  • ऊँची समतल क्यारी मेड़नाली विधि :- इस विधि में खेत में ८ से १० सेंटीमीटर ऊँची समतल क्यारियाँ बनाते हैं, जिसके चारो तरफ जल निकास नाली ५० सेंटीमीटर की होती हैं, इन क्यारियों पर लाईन की दूरी ६० सेंटीमीटर की रखते हुए ४५ सेंटीमीटर के अंतराल पर बीजों का रोपण ५ सेंटीमीटर की गहराई पर किया जाता है, इस विधि में रोपण के दो माह बाद निंदाई-गुड़ाई के साथ उर्वरक की बची मात्रा देने के बाद पौधों पर मिट्टी चढाकर बेड को मेडनाली में परिवर्तित करते हैं, यह विधि अरबी की खरीफ फसल के लिये उपयुक्त हैं | 
  • नालीमेड विधि :- इस विधि में अरबी का रोपण ८ से १० सेंटीमीटर गहरी नालियों में ६० से ६५ सेंटीमीटर के अंतराल पर करना चाहिए, रोपण से पूर्व नालियों में आधार खाद और उर्वरक देना चाहिए, रोपण के २ माह बाद बचे हुए उर्वरक की मात्रा देने के साथ नालियों को मिट्टी से ऊपर तक पौधों पर मिट्टी चढाकर मेड नाली पद्धति में परिवर्तित कर देना चाहिए, यह विधि रेतीली दोमट और नदी किनारे भूमि के लिए उपयुक्त हैं | 

खाद और उर्वरक

अरबी के लिए भूमि तैयार करते समय १५ से २५ टन प्रति हेक्टेयर सडी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद और आधार उर्वरक को अंतिम जुताई करते समय मिला देना चाहिए, रासायनिक उर्वरक नत्रजन ८० से १०० किलोग्राम, फास्फोरस ६० किलोग्राम और पोटाश ८० से १०० किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग लाभप्रद हैं, नत्रजन तथा पोटाश की पहली मात्रा आधार के रूप में रोपण के पूर्व देना चाहिए, रोपण के एक माह नत्रजन की दूसरी मात्रा का प्रयोग निंदाई-गुड़ाई के साथ करना चाहिए, दो माह पश्चात् नत्रजन की तीसरी तथा पोटाश की दूसरी मात्रा को निंदाई-गुड़ाई के साथ देने के बाद पौधों पर मिट्टी चढा देना चाहिए | 

सिंचाई प्रबंधन

अरबी की पत्तियों का फैलाव ज्यादा होने के कारण वाष्पोत्सर्जन ज्यादा होता हैं, इसलिए प्रति इकाई पानी की आवश्यकता अन्य फसलों से ज्यादा होती हैं, सिंचित अवस्था में रोपी गयी फसल में ७ से १० दिन के अंतराल पर ५ माह तक सिंचाई आवश्यक हैं, वर्षा आधारित फसल में १५ से २० दिन तक वर्षा न हो तो सिंचाई के साधन उपलब्ध होने पर सिंचाई अवश्य करनी चाहिए, परिपक्व होने पर भी अरबी की फसल हरी दिखती हैं, सिर्फ पत्तों का आकार छोटा हो जाता हैं, खुदाई के एक माह पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए, जिससे नये पत्ते नहीं निकलते हैं तथा फसल पूर्णरूपेण परिपक्व हो जाती हैं | 

अंतः सस्य क्रियाएँ

अरबी की अच्छी पैदावार के लिये यह आवश्यक हैं, कि खेत खरपतवारों से मुक्त रहे और मिट्टी सख्त न होने पाये, इसके लिये रोपण के एक माह बाद हल्की निंदाई-गुडाई की आवश्यकता पड़ती हैं, यदि रोपण के बाद पलवार का प्रयोग किया जाये, तो खरपतवारों की रोकथाम अपने आप हो जाती हैं और कंदों का अंकुरण भी अच्छा होता हैं, रोपण के बाद कुल तीन निंदाई-गुडाई ३० से ६० से ९० दिन बाद की आवश्यकता होती हैं, ६० दिन वाली गुडाई के साथ मिट्टी चढ़ाने का कार्य भी करना चाहिए | 

यह ध्यान रखना चाहिए कि कंद हमेशा मिट्टी से ढके रहे, नींदा नियंत्रण के लिए रासायनिक खरपतवारनाशी सिमाजिन या एट्राजिन १.५ से २.० किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से रोपण पूर्व उपयोग किया जा सकता है, अरबी की फसल में प्रति पौधा अधिकतम तीन स्वस्थ पर्णवृन्तों को छोड़ बाकी अन्य निकलने वाले पर्णवृन्तों की कटाई करते रहना चाहिए, इससे कंदों के आकार में वृद्धि होती हैं | 

कीट एवं रोकथाम

तम्बाकू की इल्ली

अरबी फसल को हानि पहुँचाने वाला यह एक प्रमुख कीट हैं, इसकी इल्लियाँ पत्तियों के हरित भाग को चटकर जाती हैं, जिससे पत्तियों की शिराएँ दिखने लगती हैं तथा धीरे-धीरे पूरी पत्ती सूख जाती हैं | 

रोकथाम :- कम संख्या में रहने पर इनको पत्ते समेत निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए, अधिक प्रकोप होने पर क्विनालफॉस २५ ई.सी. २ मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या प्रोफेनोफॉस ३ मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का छिड़काव करना चाहिए | 

माहू एवं थ्रिप्स

एफिड (माहू) एवं थ्रिप्स रस चूसने वाले कीट हैं, यह अरबी फसल की पत्तियों का रस चूस कर नुकसान पहुंचाते है, जिससे पत्तियां पीली पड़ जाती हैं, पत्तियों पर छोटे काले धब्बे दिखाई देते हैं, अधिक प्रकोप होने पर पत्तियां सूख जाती हैं | 

रोकथाम :- क्विनालफॉस या डाइमेथियोट के ०.०५ प्रतिशत घोल का ७ दिन के अंतराल पर दो से तीन छिडकाव कर रस चूसने वाले कीटों को नियंत्रित किया जा सकता हैं | 

रोग एवं रोकथाम

पत्ती अंगमारी

अरबी की फसल का यह मुख्य रोग हैं, यह रोग फाइटोफथोरा कोलाकेसी नामक फफूंदी के कारण होता है, इस रोग में पत्तियाँ, कंदों, पुष्प पुंजो पर रोग के लक्षण दिखाई देते हैं, पत्तियों पर छोटे-छोटे गोल या अण्डाकार भूरे रंग के धब्बे पैदा होते है, जो धीरे-धीरे फैल जाते हैं, बाद में डण्ठल भी रोग ग्रस्त हो जाता हैं और पत्तियाँ गलकर गिरने लगती हैं तथा कंद सिकुड़ कर छोटे हो जाते हैं | 

रोकथाम :- अरबी कंद को बोने से पूर्व रिडोमिल एम.जेड-७२ से उपचारित करें, खड़ी फसल में रोग की प्रारम्भिक अवस्था में रिडोमिल एम.जेड-७२ की २.५ ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिडकाव करें | 

पत्ती धब्बा

इस रोग से पत्तियों पर छोटे-छोटे वृताकार धब्बे बनते हैं, जिनके किनारे पर गहरा बैंगनी और मध्य भाग राख के समान होता हैं, परन्तु रोग की उग्र अवस्था में यह धब्बे मिलकर बडे धब्बे बनते हैं, जिससे पत्तियां सिकुड़ जाती हैं और फलस्वरूप पत्तियां झुलसकर गिर जाती हैं | 

रोकथाम :- रोग की प्रारम्भिक अवस्था में मेंकोजेब ०.३ प्रतिशत का छिडकाव करें और क्लोरोथेलोनिल की ०.२ प्रतिशत मात्रा का छिडकाव करें | 

मोजैक  

इसके प्रकोप से पत्तियाँ तथा पौधे छोटे रह जाते हैं, पत्तियों पर पीली सफेद धारिया पड जाती हैं, प्रभावित पौधों में बहुत ही कम मात्रा में कंद बनते हैं | 

रोकथाम :- इस रोग के प्रबंधन के लिए अरबी का रोग मुक्त फसल से बीज लेना चाहिए, रस चूसने वाले कीट जो की इस रोग को फैलाते हैं, का प्रभावी नियंत्रण करना चाहिए, प्रभावित पौधों को कंद समेत उखाड कर नष्ट करके इस रोग को फैलने से रोका जा सकता हैं | 

कंद का शुष्क सड़न रोग 

यह रोग भण्डारण में अरबी कंदों को क्षति पहुंचाता हैं, संक्रमित कंद भूरे, काले, सूखे, सिकुडे, कम भार वाले होते हैं और कंद के उपरी सतह पर सूखा फफूंद चूर्ण बिखरा रहता हैं, लगभग ६० दिन में संक्रमित कंद पूरी तरह से सड़ जाता है तथा सड़े कंदों से अलग किस्म की बदबू आती हैं | 

रोकथाम :- बीज हेतु प्रयुक्त होने वाले अरबी कंद को ०.१ प्रतिशत मरक्यूरिक क्लोराइड या ०.५ प्रतिशत फार्मेलिन से उपचारित कर भण्डारित करना चाहिए | 

फसल की खुदाई

अरबी की वर्षा आधारित फसल १५० से १७५ दिन तथा सिंचित अवस्था की फसल १७५ से २२५ दिनों में तैयार हो जाती हैं, कंद रोपण के ४० से ५० दिन बाद पत्तियां कटाई के योग्य हो जाती है, कंद पैदावार के लिये रोपित फसल की खुदाई आमतौर पर जब पत्तियां छोटी हो जाए तथा पीली पड़कर सूखने लगे तब की जाती हैं, खुदाई उपरान्त अरबी के मात्र कंदों एवं पुत्री कंदिकाओं को अलग करना चाहिए | 

पैदावार

उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से अरबी की खेती करने पर सामान्य अवस्था में अरबी से किस्म के अनुसार वर्षा आधारित फसल के रूप में २० से २५ टन तथा सिंचित अवस्था की फसल में २५ से ३५ टन प्रति हेक्टेयर कंद पैदावार प्राप्त होती हैं, जब लगातार पत्तियों की कटाई की जाती है, तब कंद एवं कंदिकाओं की पैदावार ६ से ९ टन प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है, जबकि एक हेक्टेयर से ८ से ११ टन हरी पत्तियों की पैदावार होती हैं | 

भंडारण 

अरबी मातृकंदों को मात्र १ से २ महीने तक एवं पुत्री कंदिकाओं को ४ से ५ महीने तक सामान्य तापक्रम पर हवादार भण्डार गृह में भण्डारित किया जा सकता हैं, कंद एवं कंदिकाओं का पानी से धुलाई तथा श्रेणीकरण करना आवश्यक हैं, केवल लम्बी अंगुलीकार कंदिकाओं को छाया में सूखाकर बांस की टोकरी या जूट के बोरों में भरकर विक्रय हेतु भेजना चाहिए, ग्रीष्मकालीन अरबी के कंदों का भण्डारण ज्यादा दिन तक नहीं किया जा सकता है, अतः खुदाई उपरांत एक माह के अंदर कंदों का उपयोग कर लेना चाहिए | 

उत्पादकता बढाने हेतु मुख्य बिन्दु

  • अरबी की मेड़नाली विधि से बुआई करना चाहिए, जिसमें तैयार खेत में ६० सेंटीमीटर की दूरी पर मेड़ व नाली का निर्माण किया जाता हैं और १० सेंटीमीटर ऊँची मेड पर ४५ सेंटीमीटर की दूरी पर प्रत्येक कंद बीज को ५ सेंटीमीटर की गहराई में रोपा जाना चाहिए हैं | 
  • अरबी के लिए भूमि तैयार करते समय १५ से २५ टन प्रति हेक्टेयर सडी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद और आधार उर्वरक को अंतिम जुताई करते समय मिला देना चाहिए, रासायनिक उर्वरक नत्रजन ८० से १०० किलोग्राम, फास्फोरस ६० किलोग्राम और पोटाश ८० से १०० किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग लाभप्रद है | 
  • पत्ती अंगमारी अरबी की फसल का यह मुख्य रोग हैं, जिसमें पत्तियां गलकर गिरने लगती हैं और कंद सिकुड कर छोटे हो जाते हैं, अरबी कंद को बोने से पूर्व रिडोमिल एम.जेड-७२ से उपचारित करें, खड़ी फसल में रोग की प्रारम्भिक अवस्था में रिडोमिल एम.जेड-७२ की २.५ ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिडकाव करें | 
  • अरबी की पत्तियों का फैलाव ज्यादा होने के कारण वाष्पोत्सर्जन ज्यादा होता हैं, सिंचित अवस्था में रोपी गयी फसल में ७ से १० दिन के अंतराल पर ५ माह तक सिंचाई आवश्यक हैं, परिपक्व होने पर भी अरबी की फसल हरी दिखती हैं, सिर्फ पत्तों का आकार छोटा हो जाता हैं, खुदाई के एक माह पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए | 

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