टमाटर की फसल नवंबर में तैयार करें नर्सरी और पाएं भरपूर उत्पादन आलू, प्याज के बाद यदि कोई सब्जी का जिक्र किया जाता है तो वह है टमाटर, टमाटर का प्रयोग एकल व अन्य सब्जियों का जायका बढ़ाने में काफी मददगार होता है, इसके अलावा त्वचा की देखभाल में भी टमाटर भी का प्रयोग किया जाता है, टमाटर में कैरोटीन नामक वर्णक होता है, इसके अलावा इसमें विटामिन, पोटेशियम के अलावा कई प्रकार के खनिज तत्व मौजूद होते हैं, जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं।
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भारत में इसकी खेती राजस्थान, कर्नाटक, बिहार, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल और आंध्रप्रदेश में प्रमुख रूप से की जाती है, आजकल तो बारह महीने बाजार में टमाटर की बिक्री होती है, इस लिहाज से टमाटर की खेती लाभ का सौदा साबित हो रही है, यदि टमाटर की खेती के लिए उन्नत व अधिक पैदावार देने वाली किस्मों का चयन किया जाए, तो इससे काफी मुनाफा कमाया जा सकता है, आइए जानते हैं टमाटर की अधिक पैदावार देने वाली उन्नत किस्मों और इसकी खेती से जुड़ी आवश्यक बातों के बारे में।
टमाटर का वानस्पतिक नाम
टमाटर का पुराना वानस्पतिक नाम लाइकोपोर्सिकान एस्कुलेंटम मिल है, वर्तमान समय में इसे सोलेनम लाइको पोर्सिकान कहते हैं, यहां ये बता देना जरूरी हो जाता है कि टमाटर फल है या सब्जी ? इसको लेकर भी भ्रम की स्थिति है, वनस्पति वैज्ञानिक तौर पर टमाटर फल है, इसका अंडाशय अपने बीज के साथ सपुष्पक पौधा का है, हालांकि, टमाटर में अन्य खाद्य फल की तुलना में काफी कम शक्कर सामग्री है और इसलिए यह उतना मीठा नहीं है, यह पाक उपयोगों के लिए एक सब्जी माना जाता है, वैसे आमतौर पर टमाटर को सब्जी ही माना जाता है।
टमाटर की उन्नत किस्में
टमाटर की देशी किस्में : पूसा शीतल, पूसा-120, पूसा रूबी, पूसा गौरव, अर्का विकास, अर्का सौरभ और सोनाली प्रमुख हैं।
टमाटर की हाइब्रिड किस्में : पूसा हाइब्रिड-1, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा हाईब्रिड-4, रश्मि और अविनाश-2 प्रमुख हैं।
भारत में टमाटर की सबसे ज्यादा पैदावार देने वाली किस्म : अर्का रक्षक भारत में टमाटर की खेती करने वाले किसानों के बीच टमाटर की अर्का रक्षक किस्म काफी लोकप्रिय हो रही है, इसकी वजह ये हैं कि एक तरफ तो इस किस्म से बंपर पैदावार मिलती है, वहीं दूसरी ओर इसमें टमाटर में लगने वाले प्रमुख रोगों से लडऩे की क्षमता अन्य किस्मों से अधिक है, साथ ही अर्का रक्षक का फल काफी आकर्षक और बाजार की मांग के अनुरूप होता है, इसलिए किसानों का रूझान इस किस्म की ओर बढ़ रहा है।
क्या है अर्का रक्षक किस्म की विशेषताएं
यह किस्म भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान बेंगलुरू की ओर से वर्ष 2010 में इजाद की गई थी, संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक और सब्जी फसल डिवीजन के प्रमुख एटी सदाशिव का कहना है कि यह भारत की पहली ऐसी किस्म है, जो त्रिगुणित रोग प्रतिरोधक होती है, इसमें पत्ती मोडक़ विषाणु, जीवाणुविक झुलसा और अगेती अंगमारी जैसे रोगों से लडऩे की क्षमता है, वहीं इसके फल का आकार गोल, बड़े, गहरे लाल और ठोस होता है, वहीं फलों का वजन 90 से 100 ग्राम तक होता है, जो बाजार की मांग के अनुकूल हैं।
एक एकड़ में होती है 500 क्विंटल की पैदावार / टमाटर की उन्नत उत्पादन तकनीक
डॉ सदाशिव के अनुसार टमाटर की इस किस्म में अन्य किस्मों की तुलना में कम लागत आती है, जबकि मुनाफा जबदस्त होता है, इसकी फसल 150 दिन में तैयार हो जाती है, पैदावार के मामले में यह टमाटर की अन्य किस्मों की तुलना में अधिक उत्पादन देने वाली है, इससे प्रति हेक्टेयर 190 टन का उत्पादन लिया जा सकता है, वहीं प्रति एकड़ 45 से 50 टन का उत्पादन होता है, प्रति क्विंटल के हिसाब से उत्पादन देखें, तो एक एकड़ में टमाटर की बुवाई करने पर 500 क्विंटल तक पैदावार मिल सकती है, वहीं अन्य किस्मों से काफी कम पैदावार प्राप्त होती है।
टमाटर की बुवाई का सही समय
- जनवरी में टमाटर के पौधे की रोपाई के लिए किसान नवंबर माह के अंत में टमाटर की नर्सरी तैयार कर सकते हैं, पौधों की रोपाई जनवरी के दूसरे सप्ताह में करना चाहिए।
- यदि आप सितंबर में इसकी रोपाई करना चाहते हैं, तो इसकी नर्सरी जुलाई के अंत में तैयार करें, पौधे की बुवाई अगस्त के अंत या सितंबर के पहले सप्ताह में करें।
- मई में इसकी रोपाई के लिए मार्च और अप्रैल माह में नर्सरी तैयार करें, पौधे की बुवाई अप्रैल और मई माह में करें।
टमाटर के पौधे कैसे तैयार करें
खेत में रोपने से पहले टमाटर के पौधे नर्सरी में तैयार किए जाते हैं, इसके लिए नर्सरी को 90 से 100 सेंटीमीटर चौड़ी और 10 से 15 सेंटीमीटर उठी हुई बनाना चाहिए, इससे नर्सरी में पानी नहीं ठहरता है, वहीं निराई-गुड़ाई भी अच्छी तरह हो जाती है, बीज को नर्सरी में 4 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए, टमाटर के बीजों की बुवाई करने के बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए, बीज की नर्सरी में बुवाई से पहले 2 ग्राम केप्टान से उपचारित करना चाहिए, वहीं खेत में 8 से 10 ग्राम कार्बोफुरान 3 जी प्रति वर्गमीटर के हिसाब से डालना चाहिए, टमाटर के पौधे जब 5 सप्ताह बाद 10 से 15 सेंटीमीटर के हो जाए, तब इन्हें खेत में बोना चाहिए, यदि आप एक एकड़ में टमाटर की खेती करना चाहते हैं, तो इसके लिए टमाटर के 100 ग्राम बीज की आवश्यकता होगी।
टमाटर की फसल में ध्यान रखने वाली बातें
- टमाटर की फसल के लिए काली दोमट मिट्टी, रेतीली दोमट मिट्टी और लाल दोमट मिट्टी में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है, वैसे टमाटर की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे उत्तम मानी जाती है, हल्की मिट्टी में भी टमाटर की खेती अच्छी होती है।
- इसकी अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी का पीएच मान 7 से 8.5 होना चाहिए, क्योंकि इसमें मध्यम अम्लीय और लवणीय मिट्टी को सहन करने की क्षमता होती है।
- विभिन्न कीटों और मृदाजनित रोगों से बचाने के लिए बीज को 3 ग्राम थायरम या 3 ग्राम कार्बेन्डाजिम से उचारित करें।
- यदि आपने टमाटर की फसल गर्मियों के दिनों में लगाई हैं, तो 6 से 7 दिनों के अंतर में सिंचाई करना चाहिए।
- यदि आप सर्दियों में टमाटर की फसल लें रहे हो तो 10 से 15 दिन के अंतर में सिंचाई करना पर्याप्त है।
- टमाटर की अच्छी पैदावार के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करना जरूरी है।
टमाटर की खेती का तरीका
खेत को 3 से 4 बार जोतकर अच्छी तरह तैयार कर लें, पहली जुताई जुलाई माह में मिट्टी पलटने वाले हल अथवा देशी हल से करें, खेत की जुताई के बाद समतल करके 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद को समान रूप से खेत में बिखेरकर पुन: अच्छी जुताई कर लें और घास-पात को पूर्णरूप से हटा दें, इसके बाद टमाटर की पौध को 60*45 सेंमी. की दूरी लेते हुए रोपाई करें।
खाद एवं उर्वरक
उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर किया जाना चाहिए, किसी कारण से अगर मिट्टी का जांच संभव न हो तो उस स्थिति में प्रति हेक्टेयर नेत्रजन-100 किलोग्राम, स्फूर-80 किलोग्राम तथा पोटाश-60 किलोग्राम कि दर से डालना चाहिए, एक-तिहाई नेत्रजन, स्फूर और पोटाश की पूरी मात्रा का मिश्रण बनाकर, प्रतिरोपण से पूर्व मिट्टी में बिखेर कर अच्छी तरह मिला देना चाहिए, शेष नेत्रजन को दो बराबर भागों में बांटकर, प्रतिरोपण के 25 से 30 और 45 से 50 दिन बाद उपरिवेशन के रूप में डालकर मिट्टी में मिला देनी चाहिए, जब फूल और फल आने शुरू हो जाए, उस स्थिति में 0.4 से 0.5 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिडक़ाव करना चाहिए, लेकिन सांद्रता पर काफी ध्यान देना चाहिए, अधिक सान्द्र होने पर छिडक़ाव से फसलों की पूरी बर्बादी होने की संभावना रहती है, वहीं हल्की संरचना वाली मृदाओं में फसल के फल फटने की संभावनाएं रहती हैं, प्रतिरोपण के समय 20 से 25 किलोग्राम बोरेक्स प्रति हेक्टेयर की दर से डालकर, मिट्टी में भली भांति मिला देना चाहिए, फलों कि गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए 0.3 प्रतिशत बोरेक्स का घोल फल आने पर 3 से 4 छिडक़ाव करना चाहिए।
पाला व लू से टमाटर की फसल की सुरक्षा
टमाटर की पौध के प्रतिरोपण के तुरंत बाद सिंचाई अवश्य करनी चाहिए, इसके बाद 15 से 20 दिनों के अंतराल में सिंचाई की जा सकती है, टमाटर की फसल को जाड़े में पाला व गर्मी में लू से बचाना बेहद जरूरी होता है, टमाटर की फसल को जाड़े में पाला तथा गर्मी में लू से बचाव के लिए 10 से 12 दिनों के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए, ताकि खेत में नमी बनी रहे, इससे जाड़े में पाला का तथा गर्मी में लू का प्रकोप कम होगा, जिससे टमाटर की फसल को सुरक्षा मिलेगी और उत्पादन पर भी विपरित असर नहीं पड़ेगा।
खरपतवार नियंत्रण
कई खेतों में खरपतवार की समस्या अधिक रहती है, यदि आपके खेत में ऐसी ही समस्या है, तो इसके नियंत्रण के लिए लासो 2 किलोग्राम/हैक्टेयर कि दर से प्रतिरोपण से पूर्व डालना चाहिए, वहीं रोपण के 4 से 5 दिन बाद स्टाम्प 1.0 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से इस्तेमाल किया जा सकता है, इससे ऊपज पर भी कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता है।
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