हल्दी की खेती कैसे करे | haldi ki kheti kaise kare

हल्दी की खेती कैसे करे

हल्दी भारतीय वनस्पति है, दक्षिण एशिया के इस पौधे का वानस्पतिक नाम कुरकुमा लौंगा है तथा यह जिंजीबरेसी कुल का सदस्य है, हल्दी के पौधे ज़मीन के ऊपर हरे-हरे दिखाई देते हैं, हल्दी के पत्ते केले के पत्ते के समान बड़े-बड़े और लंबे होते हैं, इसमें से सुगन्ध आती है, कच्ची हल्दी, अदरक जैसी दिखती है, हल्दी की गांठ छोटी और लालिमा लिए हुए पीले रंग की होती है।

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हल्दी की सबसे ज्यादा खेती आंध्रप्रदेश में होती है, इसके अलावा ओडिशा, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, गुजरात, मेघालय, असम में इसकी खेती की जाती है, अब तो उत्तरप्रदेश के बाराबंकी में भी इसकी खेती होने लगी है, आंध्रप्रदेश देश के हल्दी उत्पादन में करीब ४० फीसदी का योगदान करता है, यहां कुल क्षेत्रफल का ३८ से ५८.५ प्रतिशत उत्पादन होता है।

हल्दी की किस्में

हल्दी की उन्नत किस्मों में पूना, सोनिया, गौतम, रशिम, सुरोमा, रोमा, कृष्णा, गुन्टूर, मेघा, सुकर्ण, सुगंधन और सीओ इत्यादि किस्में शामिल है।

काली हल्दी की खेती

काली हल्दी का पौधा केली के समान होता है, काली हल्दी या नरकचूर एक औषधीय महत्व का पौधा है, जो कि बंगाल में वृहद रूप से उगाया जाता है। 

हल्दी की खेती के लिए भूमि व जलवायु

हल्दी की खेती समुद्र तल से १५०० मीटर तक ऊंचाई वाले विभिन्न ट्रोपिकल क्षेत्रों में की जाती है, सिंचाई आधारित खेती करते समय वहां का तापमान २० से ३५ डिग्री सेन्टीग्रेट और वार्षिक वर्षा १५०० मीटर या अधिक होनी चाहिए, इसकी खेती विभिन्न प्रकार की मिटटी जैसे रेतीली, मटियार, दुमट मिटटी में की जाती है, मिट्टी का पी.एच. मान ४.५ से ७.५ होना चाहिए।

हल्दी की बुवाई का समय

मई महीने के आखिरी सप्ताह में हल्दी की बुवाई करना सही रहता है, इसके अलावा जिन किसानों के पास सिंचाई की सुविधा है, वो अप्रैल के दूसरे पखवाड़े से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक हल्दी को लगा सकते हैं, जिनके पास सिंचाई सुविधा का अभाव है, वे मानसून की बारिश शुरू होते ही हल्दी लगा सकते हैं।

हल्दी के खेत की तैयारी

हल्दी की बुवाई के लिए खेत को अच्छी तरह से तैयार करना जरूरी है, इसके लिए खेत की अच्छी तरह से जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए, चूंकी हल्दी भूमि के नीचे उगती है, इसलिए गहरी जुताई करनी चाहिए, ध्यान रहे मिट्टी में ढेले नहीं होने चाहिए, ढेलों को तोडक़र छोटा-छोटा कर देना चाहिए, खेत को फसल योग्य बनाने के लिए भूमि को चार बार गहराई से जोतना चाहिए।

हल्दी की बुवाई का तरीका

इसकी खेती के लिए जमीन अच्छी तरह से तैयार करने के बाद ५ से ७ मीटर लंबी तथा २ से ३ मीटर चौड़ी क्यारियां बनाकर ३० से ४५ से.मी. कतार से कतार और २० से २५ से.मी. पौधे से पौधे की दूरी रखते हुए चार-पांच से.मी. गहराई पर कंदों को लगाना चाहिए, हल्दी की बुवाई करने के लिए २५०० किलोग्राम / हेक्टेयर प्रकन्द बीज की आवश्यकता होती है।

हल्दी की खेती के लिए खाद एवं उरर्वक

खेत की तैयारी करते समय दुमट मिट्टी में ५०० किलोग्राम / हेक्टेयर की दर से चूने के पानी का घोल डालकर अच्छी तरह जुताई करना चाहिए, इसकेे अलावा इसमें गोबर की खाद का उपयोग करना चाहिए, क्योंकि गोबर की खाद डालने से जमीन अच्छी तरह से भुरभुरी बन जाएगी।

इसके बाद १०० से १२० किलो ग्राम नाइट्रोजन, ६० से ८० किलोग्राम फास्फोरस और ८० से १०० किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर करना चाहिए, जबकि बुवाई के समय २ किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक और जैविक खाद जैसे ओएल केक २ टन प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए, अगर जिंक और आर्गेनिक खाद का उपयोग कर रहे हैं, तो खाद की मात्रा कम कर देना चाहिए, कोयर कम्पोस्ट २.५ टन प्रति हेक्टेयर की दर से खाद जैव उर्वरक तथा एन.पी. के संस्तुत मात्रा की आधी मात्रा के साथ मिलाकर भी दे सकते हैं।

हल्दी की खेती में सिंचाई

हल्दी की फसल को सिंचाई की जल्द आवश्यकता नहीं पड़ती है, यदि गर्मी में इसकी बुवाई की जाती है, तो मानसून आने से पहले इसकी सिंचाई करना जरूरी है, इस दौरान कम से कम चार-पांच सिंचाई की जानी चाहिए, ध्यान रखें सिंचाई के बाद पानी खेत में एक जगह एकत्रित न हो, इसके लिए खेत में जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए, इसके अलावा आवश्यकतानुसार सिंचाई की जानी चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

हल्दी की फसल में खरपतवार का प्रकोप भी होता है, इसलिए बुवाई के ९० दिन बाद इसकी दो-तीन बार निराई की जानी चाहिए, फिर इसके एक महीने बाद निराई का कार्य किया जाना चाहिए, यदि आवश्यक हो तो इससे पहले भी निराई का कार्य किया जा सकता है।

झपनी करना

पौधों को तेज धूप से बचाने के लिए तथा मिट्टी में नमी बनाये रखने के लिए बुवाई के तुरन्त बाद १२ से १५ टन प्रति हेक्टेयर की दर से बड़ को हरे पत्तों से ढकना चाहिए, बुवाई के ४० से ९० दिन बाद घासपात निकालने और उर्वरक डालने के बाद ७.५ टन प्रति हेक्टेयर की दर से दोबारा हरे पत्तों से झपनी करनी चाहिए।

मिश्रित एवं अंतवर्तीय फसल उगाना

हल्दी की फसल के साथ नारियल और सुपारी की खेती की जा सकती है, इसके अलावा मिर्च, कोलोकैसिया, प्याज, बैंगन और अनाज जैसे मक्का तथा रागी आदि के साथ भी मिश्रित फसल के रूप में इसकी खेती की जा सकती है।

खुदाई के कार्य

जब पेड़ की पत्तियां पीली होकर सूखने लगती है तब हल्दी खुदाई की जानी चाहिए, इसकी प्रजातियों के अनुसार बुवाई के ७.९ महीने बाद जनवरी और मार्च के बीच में फसल खुदाई के लिए तैयार हो जाती है, अल्प अवधि प्रजातियां ७ से ८ महीने में मध्य अवधि प्रजातियों ८ से ९ महीने में और दीर्घकालीन प्रजातियों ९ महीने के बाद परिपक्व होती है, खेत को जोतकर प्रकंदों को हाथ से इक्ट्ठा कर बड़ी सावधानी पूर्वक मिट्टी से अलग करते हैं, इन्हें अच्छी तरह से साफ कर एकत्रित करना चाहिए।

प्राप्त उपज

हल्दी की उपज इसकी उन्नत किस्म पर निर्भर करती है, इसकी उन्नत किस्म में करीब ४०० से ५०० क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से प्रकन्द प्राप्त किए जा सकते हैं, इन प्रकन्दों से १५ से २० प्रतिशत तक सूखी हल्दी प्राप्त की जा सकती है।

हल्दी का बाजार भाव 

साबुत हल्दी की पीसाई ८ से १० रुपए किलो होती है और इसके अलावा इसकी पैकिंग और मार्केटिंग के साथ ही विक्रय मूल्य और मुनाफा जोड़ा जाए तो साबुत हल्दी और हल्दी पाउडर में काफी बढ़ा अंतर आ जाता है, अभी इसका बाजार भाव ५८२० रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है।

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