केले की खेती कैसे करे | kele ki kheti kaise kare

केले की खेती कैसे करे 

केला भारत वर्ष का प्राचीनतम स्वादिष्ट पौष्टिक पाचक एवं लोकप्रीय फल है, भारत देश में प्राय: हर गाँव में केले के पेड़ पाए जाते है, इसमे शर्करा एवं खनिज लवण जैसे कैल्सियम तथा फास्फोरस प्रचुर मात्रा में पाए जाता है, फलों का उपयोग पकने पर खाने हेतु कच्चा सब्जी बनाने के आलावा आटा बनाने तथा चिप्स बनाने के काम आते है, इसकी खेती लगभग पूरे भारत वर्ष में की जाती है | 

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केले की खेती कैसे करे

केले की खेती की जलवायु एवं भूमि

गर्मतर एवं सम जलवायु केला की खेती के लिए उत्तम होती है, अधिक वर्षा वाले क्षेत्रो में केला की खेती सफल रहती है, जीवांश युक्त दोमट एवं मटियार दोमट भूमि, जिसमे जल निकास उत्तम हो उपयुक्त मानी जाती है, भूमि का पी एच मान ६ से ७.५ तक इसकी खेती के लिए उपयुक्त होता है | 

केले की प्रजातियाँ

उन्नतशील प्रजातियाँ केले की दो प्रकार की पाई जाती है, फल खाने वाली किस्मो में गूदा मुलायम, मीठा तथा स्टार्च रहित सुवासित होता है, जैसे कि बसराई, ड्वार्फ, हरी छाल, सालभोग, अल्पान, रोवस्ट तथा पुवन इत्यादि प्रजातियाँ है, दूसरा है सब्जी बनाने वाली इन किस्मों में गुदा कडा स्टार्च युक्त तथा फल मोटे होते है, जैसे कोठिया, बत्तीसा, मुनथन एवं कैम्पिरगंज है | 

केले की खेती की तैयारी

केले की खेत की तैयारी समतल खेत को ४ से ५ गहरी जुताई करके भुरभूरा बना लेना चाहिए, मई माह में खेत की तैयारी कर लेनी चाहिए, इसके बाद समतल खेत में लाइनों में गढढे तैयार करके रोपाई की जाती है | 

रोपाई हेतु गढढे की तैयारी

खेत की तैयारी के बाद लाइनों में गढढे किस्मो के आधार पर बनाए जाते है, जैसे हरी छाल के लिए १.५ मीटर लम्बा और १.५ मीटर चौड़ा तथा सब्जी के लिए २ से ३ मीटर की दूरी पर ५० सेंटीमीटर लम्बा, ५० सेंटीमीटर चौड़ा, ५० सेंटीमीटर गहरा गढढे मई के माह में खोदकर डाल दिये जाते है, १५ से २० दिन खुला छोड़ दिया जाता है, जिससे धूप आदि अच्छी तरह लग जाए, इसके बाद २० से २५ किग्रा गोबर की खाद, ५० ई.सी. क्लोरोपाइरीफास ३ मिली एवं ५ लीटर पानी तथा आवश्यकतानुसार ऊपर की मिट्टी के साथ मिलाकर गढढे को भर देना चाहिए, गढ़ढो में पानी लगा देना चाहिए | 

केले के पेड़ो की रोपाई 

पौध रोपण में केले का रोपण पत्तियों द्वारा किया जाता है, तीन माह की तलवार नुमा पत्तियाँ जिनमे घनकन्द पूर्ण विकसित हो का प्रयोग किया जाता है, पत्तियों का रोपण १५ से ३० जून तक किया जाता है, इन पत्तियों की पत्तियां काटकर रोपाई तैयार गढ़ढो में करनी चाहिए, रोपाई के बाद पानी लगाना आवश्यक है | 

केले की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक का प्रयोग 

भूमि के उर्वरता के अनुसार प्रति पौधा ३०० ग्राम नत्रजन १०० ग्राम फास्फोरस तथा ३०० ग्राम पोटाश की आवश्यकता पड़ती है, फास्फोरस की आधी मात्रा पौध रोपण के समय तथा शेष आधी मात्रा रोपाई के बाद देनी चाहिए, नत्रजन की पूरी मात्रा ५ भागो में बाँटकर अगस्त, सितम्बर, अक्टूबर, फरवरी एवं अप्रैल में देनी चाहिए, पोटाश की पूरी मात्रा तीन भागो में बाँटकर सितम्बर, अक्टूबर एवं अप्रैल में देना चाहिए | 

केले की खेती में सिचाई का सही समय 

केले के बाग में नमी बनी रहनी चाहिए, पौध रोपण के बाद सिचाई करना अति आवश्यक है, आवश्यकतानुसार ग्रीष्म ऋतु ७ से १० दिन तथा शीतकाल में १२ से १५ दिन अक्टूबर से फरवरी तक के अन्तराल पर सिचाई करते रहना चाहिए, मार्च से जून तक यदि केले के थालो पर पुवाल गन्ने की पत्ती अथवा पालीथीन आदि के बिछा देने से नमी सुरक्षित रहती है, सिचाई की मात्रा भी आधी रह जाती है, साथ ही फलोत्पादन एवं गुणवत्ता में वृद्धि होती है | 

केला की खेती में निराई गुड़ाई का सही समय 

केले की फसल के खेत को स्वच्छ रखने के लिए आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए, पौधों को हवा एवं धूप आदि अच्छी तरह से निराई गुड़ाई करने पर मिलता रहता है, जिससे फसल अच्छी तरह से चलती है और फल अच्छे आते है | 

केले की खेती में मल्चिंग कब और किस प्रकार करनी चाहिए ?

केले के खेत में पर्याप्त नमी बनी रहनी चाहिए, केले के थाले में पुवाल अथवा गन्ने की पत्ती की ८ से १० सेमी मोटी पर्त बिछा देनी चाहिए, इससे सिचाई कम करनी पड़ती है, खरपतवार भी कम या नहीं उगते है, भूमि की उर्वरता शक्ति बढ़ जाती है, साथ ही साथ उपज भी बढ़ जाती है तथा फूल एवं फल एक साथ आ जाते है | 

केले की कटाई और छटाई कब शुरू करना चाहिए ? 

केले के रोपण के दो माह के अन्दर ही बगल से नई पत्तियाँ निकल आती है, इन पत्तियों को समय-समय पर काटकर निकलते रहना चाहिए, रोपण के दो माह बाद मिट्टी से ३० सेमी व्यास की २५ सेमी ऊँचा चबूतरा नुमा आकृति बना देनी चाहिए, इससे पौधे को सहारा मिल जाता है, साथ ही बांसों को कैची बना कर पौधों को दोनों तरफ से सहारा देना चाहिए, जिससे की पौधे गिर न सके | 

केले की खेती में फसल सुरक्षा हेतु रोगों का नियंत्रण कैसे करते रहना चाहिए ?

केले की फसल में कई रोग कवक एवं विषाणु के द्वारा लगते है, जैसे पर्ण चित्ती या लीफ स्पॉट, गुच्छा शीर्ष या बन्ची टाप, एन्थ्रक्नोज एवं तनागलन हर्टराट आदि लगते है, नियंत्रण के लिए ताम्र युक्त रसायन जैसे कापर आक्सीक्लोराइट ०.३% का छिडकाव करना चाहिए या मोनोक्रोटोफास १.२५ मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ छिडकाव करना चाहिए | 

केले की खेती में किट नियंत्रण 

केले में कई कीट लगते है, जैसे केले का पत्ती बीटिल, तना बीटिल आदि लगते है, नियंत्रण के लिए मिथाइल ओ-डीमेटान २५ ईसी १.२५ मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए, कारबोफ्युरान अथवा फोरेट या थिमेट १० जी दानेदार कीटनाशी प्रति पौधा २५ ग्राम प्रयोग करना चाहिए | 

केला तैयार होने पर उसकी कटाई किस प्रकार करनी चाहिए ?    

केले में फूल निकलने के बाद लगभग २५ से ३० दिन में फलियाँ निकल आती है, पूरी फलियाँ निकलने के बाद घार के अगले भाग से नर फूल काट देना चाहिए और पूरी फलियाँ निकलने के बाद १०० से १४० दिन बाद फल तैयार हो जाते है, जब फलियाँ की चारो घरियाँ तिकोनी न रहकर गोलाई लेकर पीली होने लगे, तो फल पूर्ण विकसित होकर पकने लगते है, इस दशा पर तेज धार वाले चाकू आदि के द्वारा घार को काटकर पौधे से अलग कर लेना चाहिए | 

केला की कटाई करने के बाद जो घार के फल होते है, उनको पकाने की क्या विधि है, किस प्रकार पकाया जाता है ?

केले को पकाने के लिए घार को किसी बन्द कमरे में रखकर, केले की पत्तियों से ढक देते है, एक कोने में उपले अथवा अगीठी जलाकर रख देते है और कमरे को मिट्टी से सील बन्द कर देते है, यह लगभग ४८ से ७२ घण्टे में केला पककर तैयार हो जाता है | 

केला की खेती से प्रति हेक्टेयर कितनी पैदावार यानी की उपज प्राप्त कर सकते है ?

सभी तकनीकी तरीके अपनाने से की गई केले की खेती से ३०० से ४०० कुंटल  प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है |

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