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दलहनी फसलों में उड़द का प्रमुख स्थान है और विश्व स्तर पर उड़द के उत्पादन में भारत अग्रणी देश है, भारत के मैदानी भागों में इसकी खेती मुख्यत: खरीफ सीजन में होती है, परंतु विगत दो दशकों से उड़द की खेती ग्रीष्म ऋतु में भी लोकप्रिय हो रही है, देश में उड़द की खेती महाराष्ट्र, आंधप्रदेश, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडू तथा बिहार में मुख्य रूप से की जाती है, उड़द की दाल में 23 से 27 प्रतिशत तक प्रोटीन पाया जाता है, उड़द मनुष्यों के लिए स्वास्थ्यवर्धक होने के साथ-साथ भूमि को भी पोषक तत्व प्रदान करता है, इसकी फसल को हरी खाद के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
urad ki kheti kaise kare |
उड़द की खेती के लिए नम और गर्म मौसम आवश्यक है, उड़द की फसल की अधिकतर प्रजातियां प्रकाश काल के लिए संवेदी होती है, वृद्धि के समय 25 से 35 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त होता है, हालांकि यह 43 डिग्री सेंटीग्रेट तक का तापमान आसानी से सहन कर सकती है, 700 से 900 मिमी वर्षा वाले क्षेत्रों में उड़द को आसानी से उगाया जाता है, अधिक जल भराव वाले स्थानों पर इसकी खेती उचित नहीं है, फूल अवस्था पर अधिक वर्षा हानिकारक होती है, पकने की अवस्था पर वर्षा होने पर दाना खराब हो जाता है।
उड़द की खेती विभिन्न प्रकार की भूमि में होती है, हल्की रेतीली, दोमट या मध्यम प्रकार की भूमि जिसमें पानी का निकास अच्छा हो, उड़द के लिए अधिक उपयुक्त होती है, पी.एच.मान 7 से 8 के बीच वाली भूमि उड़द के लिए उपजाऊ होती है, अम्लीय व क्षारीय भूमि उपयुक्त नहीं है, वर्षा आरंभ होने के बाद 2 से 3 बार हल चलाकर खेत को समतल करना चाहिए, वर्षा आरंभ होने से पहले बोनी करने से पौधों की बढ़वार अच्छी होती है, साथ ही खेत को समतल करके उसमें जल निकास की उचित व्यवस्था कर देना भी बेहतर है।
दलहनी फसल होने के कारण उड़द को अधिक नत्रजन की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि उड़द की जड़ में उपस्थित राजोबियम जीवाणु मंडल की स्वतंत्र नत्रजन को ग्रहण करते हैं और पौधों को प्रदान करते हैं, पौधे की प्रारंभिक अवस्था में जब तक जड़ों में नत्रजन इकट्ठा करने वाले जीवाणु क्रियाशील हो, तब तक के लिए 15 से 20 किग्रा नत्रजन 40 से 50 किग्रा फास्फोरस तथा 40 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई के समय खेतों में मिला देते हैं, संपूर्ण खाद की मात्रा बुवाई के समय कतारों में बीच के ठीक नीचे डालना चाहिए, दलहनी फसलों में गंधक युक्त उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, अमोनियम सल्फेट, जिप्सम आदि का उपयोग करना चाहिए, विशेषत : गंधक की कमी वाले क्षेत्र में 8 किलोग्राम गंधक प्रति एकड़ गंधक युक्त उर्वरकों के माध्यम से देना चाहिए।
उड़द अकेले बोने पर 15 से 20 किग्रा बीज प्रति हैक्टेयर तथा मिश्रित फसल के रूप में बोने पर 6 से 8 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से लेना चाहिए, बुवाई से पहले बीज को 3 ग्राम थायरम या 2.5 ग्राम डायथेन एम-45 प्रति किलो बीज के मान से उपचारित करना चाहिए, जैविक बीजोपचार के लिए ट्राइकोडर्मा फफूंद नाशक 5 से 6 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपयोग किया जाता है।
मानसून के आगमन पर या जून के अंतिम सप्ताह में पर्याप्त वर्षा होने पर बुवाई करें, बुवाई नाली या तिफन से करें, कतारों की दूरी 30 सेमी तथा पौधों से पौधों की दूरी 10 सेमी रखें तथा बीच 4 से 6 सेमी की गहराई पर बोये, ग्रीष्मकाल में इसकी बुवाई फरवरी के अंत तक या अप्रैल के प्रथम सप्ताह से पहले करनी चाहिए।
उड़द की खेती में सामान्यत: सिंचाई की बहुत अधिक आवश्यकता नहीं होती है, हालंकि वर्षा के अभाव में फलियों के बनते समय सिंचाई करनी चाहिए, इसकी फसल को 3 से 4 बार सिंचाई की जरूरत पड़ती है, पहली सिंचाई पलेवा के रूप में और बाकि की सिंचाई 20 दिन के अंतराल पर होनी चाहिए।
खरपतवार फसलों को अनुमान से ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं, अत: अच्छे उत्पादन के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई कुल्पा व डोरा आदि चलाते हुए अन्य आधुनिक नींदानाशक का समुचित उपयोग करना चाहिए, नींदानाशक वासालिन 800 मिली से 1000 मिली प्रति एकड़ 250 लीटर पानी में घोल बनाकर जमीन बखरने से पूर्व नमी युक्त खेत में छिडक़ने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।
उड़द के दलहनी फसल होने के कारण अच्छे जमाव पैदावार व जड़ों में जीवाणुधारी गांठों की सही बढ़ोत्तरी के लिए राइजोबियम कल्चर से बीजों को उपचारित करना जरूरी होता है, एक पैकेट (200 ग्राम) कल्चर 10 किलोग्राम बीज के लिए सही रहता है, उपचारित करने से पहले आधा लीटर पानी का 50 ग्राम गुड या चीनी के साथ घोल बना लें, उसके बाद कल्चर को मिलाकर घोल तैयार कर लें, अब इस घोल को बीजों में अच्छी तरह से मिलाकर सुखा दें, ऐसा बुवाई से 7 से 8 घंटे पहले करना चाहिए।
वर्षाकालीन उड़द की फसल में खरपतवार का प्रकोप अधिक होता है, जिससे उपज में 40 से 50 प्रतिशत हानि हो सकती है, रासायनिक विधि द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए वासालिन 1 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी के घोल का बुवाई से पूर्व खेत में छिडक़ाव करें, फसल की बुवाई के बाद परंतु बीजों के अंकुरण से पूर्व पेन्डिमिथालीन 1.25 किग्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करके खरपतवार पर नियंत्रण किया जा सकता है, अगर खरपतवार फसल में उग जाते हैं, फसल बुवाई 15 से 20 दिन की अवस्था पर पहली निराई तथा गुड़ाई खुरपी की सहायता से कर देनी चाहिए तथा पुन: खरपतरवार उग जाने पर 15 दिन बाद निराई करनी चाहिए।
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