को
lahikikheti
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
चुकंदर मीठी स्वाद वाली एक सब्जी है, अलग-अलग प्रांतों में जिस तरह यह अलग-अलग मौसम में उगाया जाता है, उसी तरह अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है, हिंदी प्रदेशों में इसे चुकंदर के नाम से जाना जाता है, वहीं बांग्ला में इसे बीट गांछा बोला जाता है, गुजराती में सलादा कहा जाता है, तो दक्षिण भारत में बीट समेत अलग-अलग नामों से इसे जाना जाता है, यह भारत में पाई जाने वाली स्वास्थ्यवर्धक सब्जियों में से एक है, फाइबर समेत विटामिन ए और सी से भरपूर चुकंदर में पालक सहित किसी भी अन्य सब्जी की तुलना में अधिक मात्रा में आयरन होता है, चुकंदर एनीमिया, अपच, कब्ज, पित्ताशय विकारों, कैंसर, हृदय रोग, बवासीर और गुर्दे के विकारों के इलाज में फायदेमंद होता है।
chukandar ki kheti |
भारत में इसकी खेती सालभर होती है, लेकिन अलग-अलग प्रांतों की मिट्टी और जलवायु के अनुसार इसकी खेती के समय में थोड़ा बहुत परिवर्तन होता है, चुकंदर स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है, इसलिए बाजार में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है, किसान चुकंदर की खेती व्यावसायिक रूप से बड़े पैमाने पर और सीमित रूप में अपनी थोड़ी बहुत जमीन पर भी कर आय बढ़ा सकते हैं।
चुकंदर ठंडे मौसम में उगने वाली सब्जी है, देश के अधिकांश भागों में अगस्त व सितंबर से इसकी बुवाई शुरू होती है, लेकिन दक्षिण भारत में फरवरी-मार्च से भी बुवाई शुरू होती है, इसके लिए दोमट बलुई मिट्टी अच्छी मानी जाती है, क्षारीय मिट्टी चुकंदर खेती के लिए नुकसानदेह होती है, सब्जी के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए कोई भी इसे अपने किचन गार्डन या गमले में भी उगा सकता है।
चुकंदर की अलग-अलग किस्में हैं, वैसे यह ऊपर से देखने में गाढ़ा बैगनी और भूरे रंग का होता है, काटने पर लाल रंग का तरल पदार्थ निकलता है, अलग-अलग किस्म के चुंकदर को तैयार होने में अलग-अलग समय लगता है, चुकंदर की जो किस्में है, उसमें रोमनस्काया, डेट्राइट डार्क रेड, मिश्र की क्रासबी, क्रिमसन ग्लोब और अर्लीवंडर आदि प्रमुख है, खेत में बोने के बाद 50 से 60 दिनों में चुकंदर तैयार हो जाता है, कुछ विशेष प्रजातियों का चुकंदर 80 दिनों में तैयार होता है।
चुकंदर की खेती समतल और दोमट बलुई मिट्टी में भी की जा सकती है, हालांकि समतल भूमि में इसकी खेती करना आसान है, समतल भूमि में इसकी खेती करने के लिए कुछ दूरी रखते हुए क्यारियों का निर्माण करना पड़ता है, क्यारियों में चुकंदर के बीज की रोपाई पंक्तिबद्ध रूप से की जाती है, प्रत्येक लाइन के बीच लगभग एक फिट की दूरी रखनी चाहिए।
चुकंदर की अलग-अलग किस्मों की प्रति हेक्टेयर औसतन उपज 150 से 300 क्विंटल होती है, किसानों को 20 रूपए से लेकर 50 रूपये प्रति किलो की दर से उनकी उपज की कीमत मिल जाती है, उच्च गुणवत्ता वाले चुकंदर को इससे अधिक दाम पर भी बिक्री की जा सकती है, इस दृष्टि से देखा जाए तो किसान भाई एक हेक्टेयर भूमि में चुकंदर की खेती कर एक बार में दो लाख रुपए से अधिक की आय कर सकते हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें