बरसीम की खेती कैसे करे | barseem ki kheti kaise kare

बरसीम की खेती कैसे करे

पशुओं के लिए बरसीम बहुत ही लोकप्रिय चारा है, क्यूंकि यह अत्यन्त पौष्टिक एवं स्वादिष्ट होता है, इसके अतिरिक्त यह लवणीय एवं क्षारीय भूमि को सुधारने के साथ-साथ भूमि की उर्वरा शक्ति में भी वृद्धि करती है, यह वर्ष के पूरे शीतकालीन समय में और गर्मी के आरम्भ तक हरा चारा उपलब्ध करवाती है, पशुपालन व्यवसाय में पशुओं से अधिक दुग्ध उत्पादन लेने के लिए हरे चारे का विशेष महत्व है, पशुओं के आहार पर लगभग 70 प्रतिशत व्यय होता है और हरा चारा उगाकर इस व्यय को कम करके अधिक लाभ अर्जित किया जा सकता है।


barseem plant images, barseem farming images, barseem cultivation images
barseem ki kheti kaise kare

उपयोगिता 

बरसीम सर्दी के मौसम में पौष्टिक चारे का एक उत्तम स्त्रोत है, इसमें रेशे की मात्रा कम और प्रोटीन की औसत मात्रा 20 से 22 प्रतिशत होती है, इसके चारे की पाचन शीलता 70 से 75 प्रतिशत होती है, इसके अतिरिक्त इसमें कैल्शियम और फॉस्फोरस भी काफी मात्रा में पाये जाते है, जिसके कारण दुधारू पशुओं को अलग से खली-दाना आदि देने की आवश्यकता कम पड़ती है। 

उपयुक्त जलवायु

बरसीम ठंडी जलवायु के अनुकूल है, ऐसी जलवायु सर्दी व वसंत मौसम में उत्तरी भारत में पाई जाती है, जिनको उत्पादक क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, बरसीम की बुवाई तथा विकास के लिए उचित तापमान 25 डिग्री सेल्सियस सर्वोतम होता है। 

भूमि का चयन

बरसीम की अच्छी फसल के लिए सिंचित खेत का चुनाव करें, जिसकी मिट्टी भारी दोमट तथा अधिक जलधारण क्षमता वाली हो और जिसमें जल निकास की अच्छी सुविधा हो, बरसीम क्षारीय भूमि में भी उगाई जा सकती है, लेकिन मिट्टी का पी.एच. मान 8 से कम होना चाहिए, ध्यान रहे अम्लीय भूमि बरसीम के लिए उपयुक्त नहीं होती है। 

खेत की तैयारी

इसकी खेती प्रायः खरीफ फसल के बाद करते है, इसके लिए खेत की एक या दो बार मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करे, ताकि मिट्टी मुलायम हो जाए, इसके बाद तीन या चार हैरो चलाकर खेत में पाटा लगाएँ, ताकि खेत समतल हो जाए एवं सिंचाई में भी सुविधा हो।

उन्नत किस्में

उन्नत किस्में स्थानीय किस्मों की तुलना में अधिक पैदावार देती है, अधिक और शीघ्र चारा प्राप्त करने के लिए बरसीम की कुछ किस्में इस प्रकार है :-

  • वरदान (एस-99-1) - यह किस्म मुख्यतः देश के उत्तरी राज्यों के लिए विकसित की गई है, यह 150 से 160 दिन में फलती है एवं इससे चार-पाँच कटाईयाँ ली जा सकती है, इसकी उपज क्षमता 800 से 1000 क्विंटल प्रति हेक्टयर है। 
  • मेस्कावी - यह ऐसी किस्म है, जो सभी क्षेत्रों में सफलता पूर्वक उगाई जा सकती है, इसके पौधे झाड़ीनुमा और सीधे बढ़ने वाले होते है एवं इसके तने मुलायम होते है, इसकी भी उपज क्षमता 800 से 1000 क्विंटल प्रति हेक्टर है। 
  • पूसा ज्वाइन्ट - इस किस्म की विशेषता है कि इसमें एक ही जगह से चार से पाँच पत्तियाँ निकलती है, इसके फूल बड़े आकार के होते है, यह किस्म अत्यधिक सर्दी व पाले को सहन करने में सक्षम है। 
  • अन्य किस्में - जेबी-1, बीएल-2, बीएटी-678, टी-724 वार्डन, एचएफबी-600, बीएल 1, 10, 22, 30, 42, 92, 180, टाइप-526, 529, 560, 561, टी-674, 678, 730, 780, पूसा गैंट, जेबी-3, 4, एस-99-1, इग्फ्री-एस-99-1, युपिबी-103, 104, 105 और डीप्लोइड और टी-560 आदि प्रमुख है। 

बुआई का समय

इसकी बुआई के लिए सबसे उपयुक्त समय सितम्बर के अन्तिम सप्ताह से अक्टूबर के मध्य तक है, देर से बुआई करने पर फसल में एक या दो कटाई कम मिलती है तथा प्रति कटाई चारे के पैदावार में भी कमी आती है, अतः कृषक बंधु को फसल की बुआई समय पर ही करनी चाहिए। 

बीज की मात्रा

बरसीम की बोआई के लिए 25 से 30 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता है, देशी या मेस्कावी किस्म के बीज छोटे होते है, अतः 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है, बड़े एवं मोटे किस्मों जैसे- बीएल-22 या जेबीएच-146 की बोआई के लिए 25 से 30 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है। 

बीजोपचार

बरसीम चारे की भरपूर उपज के लिए बुआई से पूर्व बीज को उपयुक्त राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना आवश्यक है, इसके लिए गर्म पानी में 250 ग्राम गुड़ का 10 प्रतिशत घोल बना लेना चाहिए, फिर घोल को ठंडा करके उसमें कल्चर पाउडर को अच्छी तरह मिलायें, इस मिश्रण को 25 से 30 किलो ग्राम बीज पर छिड़क कर अच्छी तरह मिलाए, बीज को इससे पूर्व 12 से 14 घण्टे तक जल में भिगो कर रखना चाहिए। 

जीवाणु उपचारित बीज को छाया में रख कर सुखाएँ और 24 घण्टे के अन्दर बुआई कर दें, धूप या गर्म वातावरण में उपचारित बीज सुखाने या रखने से जीवाणु मर जाते है, यदि सम्बन्धित कल्चर उपलब्ध न हो पाये, तो जिस खेत में पहले बरसीम बोई गई हो, उस खेत की मिट्टी बीज के वजन के बराबर लेकर उसे बीज के साथ मिलाकर बुआई करें। 

बुआई के समय उच्च कोटि के प्रमाणित बीज उपलब्ध नहीं हो तो स्थानीय बीजों का प्रयोग करना पड़ता हैं, जिसमें कासनी के बीज मिले हो सकते हैं, कासनी के बीजों को अलग करने के लिए 10 प्रतिशत नमकीन पानी के घोल को किसी चौड़े मुंह वाले बर्तन में दो तिहाई भाग तक भर देते है, बुआई से पहले बीजों को इस घोल की सतह पर थोड़ा-थोड़ा डालते है। 

बरसीम का बीज भारी होने के कारण बर्तन की तली में बैठ जाता है, जबकि कासनी के बीज घोल के उपरी सतह पर तैरते रहते है, इनकों सतह से निकाल कर फेंक दे तथा बरसीम के बीजों को निकाल कर स्वच्छ जल से 2 से 3 बार धो दें, ताकि अंकुरण पर नमक का बुरा प्रभाव न पड़े।

बुआई विधि

बरसीम की बुआई प्रायः दो विधियों से की जाती है, जो इस प्रकार है :-
क्यारियों में - जिस खेत में वरसीम की बुआई करना है, उस खेत को अच्छी तरह तैयार करके, उचित आकार की क्यारियाँ बनाकर, इनमें 5 से 7 सेंटीमीटर पानी भर दें तथा पाटा चलाकर बीज छिड़क दें।
छिड़कावा - सूखे खेत में बुआई के लिए खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी तथा मिट्टी भूर-भूरी होना आवश्यक है, इसमें छिटकाव विधि से बुआई के लिए खेत में बीज छिटकर हल्का पाटा चला दें, ध्यान रहे कि बीज एक से डेढ़ सेंटीमीटर से अधिक गहराई पर नहीं जाना चाहिए।
कतारों में - पौधों की उचित वृद्धि के लिए कतारों के मध्य की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर पर्याप्त है, कतारों में बुआई के लिए हल या सीडड्रील द्वारा बीज की बुआई लाइनों में की जाती है। 

खाद और उर्वरक

बरसीम में नत्रजन की मात्रा की आवश्यकता कम पड़ती है, इसलिए सामान्यता: 25 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस और 20 पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से बोते समय खेत में छिड़क कर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए, इसके बाद क्यारीयां बनाकर पानी भरना चाहिए या अन्य विधि से बुवाई करनी चाहिए। 

सिंचाई प्रबंधन

बरसीम की सफल खेती के लिए सिंचाई और जल निकास की समुचित व्यवस्था आवश्यक है, पानी भर कर बुआई करने पर बुआई के चन्द दिन बाद दूसरी हल्की सिंचाई करें, सूखी बुआई में अंकुरण के बाद प्रथम सिंचाई करें, इसके बाद शीत काल में 12 से 15 दिन के अन्तर पर तथा मार्च के बाद तापमान बढ़ने पर सिंचाई 7 से 10 दिन के अन्तर पर करनी चाहिए, हरे चारे के लिए प्रत्येक कटाई के बाद सिंचाई अवश्य करें, जो कि अच्छी वृद्धि एवं अधिक उपज के लिए आवश्यक है। 

खरपतवार नियंत्रण

आरम्भ में बथुवा, खरतुआ, दूब, कृष्णनील, जंगली प्याजी, गजरी, सैजी, कासनी आदि खरपतवार बरसीम की फसल में दिखाई देते है, यदि फसल आरम्भ में खरपतवारों से दब जाती है, तो बढवार नहीं कर पाती है, जिससे उपज भी अच्छी नहीं मिल पाती है, अतः जहाँ तक संभव हो फसल के अंकुरण के बाद निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को निकाल देना चाहिए।
अमरलता (कसकुटा रिफलेक्सा) की संभावना हो तो फसल पर पैराकवट या डायकवट का 0.1 से 0.2 प्रतिशत घोल बना कर पहली या दूसरी कटाई के तुरन्त बाद छिड़काव करें, फसल-चक्र अवश्य अपनायें जिससे खरपतवारों का नियन्त्रण आसानी से किया जा सके, फसल की आरंभिक अवस्था में एक-दो कटाई जल्दी करके भी एक वर्षीय खरपतवारों पर काबू पाया जा सकता है। 

फसल संरक्षण

फसल संरक्षण का प्रयोग प्रायः बीज उत्पादन के लिए करना चाहिए, फसल को हानि पहुँचाने वाले प्रमुख कीटों में सेमीलूपर, थ्रिप्स, एफिड और चने की सूंडी हैं, सेमीलूपर से बचाव के लिए एण्डोसल्फॉन 35 ईसी का छिड़काव करें तथा थ्रिप्स, सुंडी और एफिड के लिए 0.05 प्रतिशत मेथालियॉन का घोल बनाकर प्रयोग किया जा सकता है, किसी भी खरपतवारनाशी या कीट नाशी का प्रयोग किया जा सकता है, किसी भी खरपतवार नाशी या कीट नाशी के प्रयोग के 15 से 20 दिन पश्चात ही बरसीम पशुओं को खिलाएँ। 

कटाई व्यवस्था

प्रथम कटाई बुआई के 50 से 55 दिन के मध्य ली जा सकती है, अन्य कटाईयाँ 30 से 35 दिन के अन्तराल पर लेने से अच्छी उपज प्राप्त होती है, पौधों में अधिक पुर्नवृद्धि और उत्पादन प्राप्त करने के लिए फसल को जमीन की सतह से 5 से 7 सेंटीमीटर की ऊँचाई पर काटना आवश्यक है, बरसीम की फसल से हरा चारा नवम्बर के अन्त से अप्रैल तक मिलता है।
प्रायः यह देखा गया है कि प्रथम कटाई के दौरान कम उपज मिलती है, परन्तु दूसरी और तीसरी कटाई के समय सबसे अधिक उपज मिलती है, फूल आने के बाद बीज वाली फसल में सिंचाई नहीं करें, मई में लू चलने से परागण व निषेचन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। 

पैदावार

उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से खेती करने पर फसल में बीज उत्पादन नहीं किया जाये, तो प्रति हेक्टेयर औसत से अधिक लगभग 1000 क्विंटल हरा चारा प्राप्त होता हैं, बीज के लिए फसल को फरवरी बाद छोड़ दिया जाये, तो 3 से 5 क्विंटल बीज तथा 500 से 600 क्विंटल हरा चारा लिया जा सकता है, बरसीम अधिक खाने से पशुओं में अफरा हो जाता है, इसलिए सूखे चारे के साथ मिलाकर खिलाएँ या पहले सूखा चारा फिर बरसीम खिलाएँ।
  1. barseem ki kheti
  2. barseem ki kheti kaise kare
  3. berseem ki sabji
  4. berseem
  5. berseem in hindi
  6. berseem botanical name
  7. berseem seed rate
  8. berseem botanical name and family
  9. berseem crop
  10. berseem seed in hindi
  11. berseem seed rate per acre
  12. berseem apni kheti
  13. berseem bone ka samay
  14. best berseem seed
  15. berseem ka botanical name
  16. berseem cultivation
  17. berseem cultivation pdf
  18. berseem common name
  19. berseem crop in hindi
  20. berseem clover
  21. berseem cultivation ppt
  22. berseem diseases
  23. berseem family
  24. berseem flower
  25. berseem fodder crop
  26. berseem floral biology
  27. berseem field
  28. berseem flower honey
  29. berseem farming
  30. berseem grass
  31. berseem grass seeds
  32. berseem grass price
  33. berseem grass in english
  34. berseem green fodder
  35. berseem grass in hindi
  36. berseem grass cultivation
  37. berseem ghas
  38. berseem hindi
  39. berseem honey
  40. berseem harvesting
  41. berseem meaning in hindi
  42. berseem in english
  43. berseem images
  44. berseem production
  45. berseem uses
  46. berseem legume
  47. berseem local name
  48. berseem meaning
  49. berseem meaning in telugu
  50. berseem meaning in marathi
  51. berseem mixed cropping
  52. berseem meaning in punjabi
  53. berseem meaning in tamil
  54. berseem meaning in gujarati
  55. berseem nutrition value
  56. berseem nutrition
  57. scientific name of berseem
  58. berseem technical name
  59. berseem origin
  60. berseem plant
  61. berseem price
  62. berseem production per acre
  63. berseem clover qdma
  64. berseem rate today
  65. berseem scientific name

टिप्पणियाँ