आंवला की खेती कैसे करे | amla ki kheti kaise kare

आंवला की खेती कैसे करे

आंवला को बहुत ही गुणकारी फल माना जाता है, आँवले के फलों का खाने में इस्तेमाल मुरब्बा, आचार, सब्जी, जैम और जैली बनाकर कई तरह से किया जाता है, आँवले के फलों का इस्तेमाल खाने के अलावा आयुर्वेदिक औषधियों में भी किया जाता है, इनके अलावा इसके फलों का इस्तेमाल शक्तिवर्धक और सौंदर्य प्रसाधन की वस्तुओं को बनाने में भी किया जाता है | 

आंवला के अंदर कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जो मानव शरीर के लिए बहुत उपयोगी होते हैं, आंवला का पौधा एक बार लगाने के बाद कई सालों तक पैदावार देता है, इसका पौधा झाड़ीनुमा दिखाई देता है, आंवला के पौधे को उष्णकटिबंधीय जलवायु वाली जगहों पर आसानी से उगाया जा सकता है, इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान ६ से ८ के बीच होना चाहिए, भारत में आंवला की खेती व्यापारिक महत्व से बड़े पैमाने पर की जा रही है, अगर आप भी इसकी खेती कर अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं, तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं | 

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उपयुक्त मिट्टी

आंवला की खेती के लिए उचित जल निकास वाली उपजाऊ भूमि की जरूरत होती है, जल भराव वाली भूमि में इसकी खेती नही की जा सकती है, क्योंकि जल भराव की वजह से इसके पौधे जल्द नष्ट हो जाते हैं, इसकी खेती के लिए सामान्य भूमि की जरूरत होती है, लेकिन इसके पौधे क्षारीय भूमि में भी लगाए जा सकते हैं | 

जलवायु और तापमान

आंवला की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु उपयुक्त होती है, इसके पौधों को विकास करने के लिए गर्मी की जरूरत अधिक होती है, गर्मी के मौसम में ही इसके पौधों पर फल बनते हैं, सामान्य सर्दी के मौसम में इसके पौधे आसानी से विकास कर लेते हैं, लेकिन सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसके पौधों के लिए नुकसानदायक होता है, आँवले की खेती समुद्रतल से लगभग १८०० मीटर ऊंचाई वाली जगहों पर की जाती है | 

आंवला के पौधों को शुरुआत में सामान्य तापमान की जरूरत होती है, जबकि इसका पूर्ण विकसित पौधा ० डिग्री से ४५ डिग्री तक किसी भी तापमान को सहन कर सकता है, लेकिन न्यूनतम तापमान अधिक समय तक बने रहने पर पौधों में नुक्सान पहुँचता हैं | 

उन्नत किस्में

आंवला की कई तरह की किस्में मौजूद हैं, जिनको अधिक और जल्दी उत्पादन लेने के लिए सम्पूर्ण भारत में उगाया जाता है :-

फ्रान्सिस

आंवला की इस किस्म के फल देरी से पककर तैयार होते हैं, इस किस्म के वृक्ष की शाखाएं झुकी हुई होती है, इसलिए इस किस्म को हाथी झूल के नाम से भी जाना जाता है, इस किस्म के पौधों पर लगने वाले फलों में ६ से ८ कलियाँ पाई जाती है, इसके पके हुए फलों का रंग पीला दिखाई देता है, इसके फल मध्य नवम्बर के बाद पकना शुरू होते हैं, इसके फलों को अधिक समय तक भंडारित कर नही रखा जा सकता है, इसके फलों का इस्तेमाल मुरब्बा बनाने में नही किया जा सकता है | 

एन.ए. ४ 

आंवला की इस किस्म के वृक्षों पर मादा फूलों की संख्या अधिक पाई जाती है, इस किस्म के फल सामान्य आकार के गोल और पीले होते हैं, जिनके अंदर गुदे की मात्रा अधिक पाई जाती है, इस किस्म के पेड़ों पर फल मध्य नवम्बर के बाद पकने शुरू होते हैं, इसके पूर्ण विकसित एक पौधे की औसतन पैदावार ११० किलो के आसपास पाई जाती है | 

कृष्णा

आंवला की इस किस्म के पौधे जल्दी पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं, इस किस्म के एक पौधे से औसतन पैदावार १२० किलो के आसपास पाई जाती है, इसके फल अक्टूबर माह में दूसरे सप्ताह में पकने शुरू हो जाते हैं, इस किस्म के पौधों पर लगने वाले फल हल्की लालिमा लिए हुए पीले दिखाई देते हैं, जिनकी बाहरी सतह चिकनी होती है, इस किस्म के फलों को कुछ समय तब भंडारित किया जा सकता है | 

चकईया

आंवला की इस किस्म के पौधे अधिक चौड़ाई में फैले होते हैं, इस किस्म के पौधों की प्रत्येक शाखाओं में चार के आस-पास मादा फूल पाए जाते हैं, जिस कारण इस किस्म के पौधे अधिक फलन के लिए जाने जाते हैं, इस किस्म के पौधों पर लगने वाले फलों का भंडारण अधिक समय तक किया जा सकता है, इस कारण इस किस्म के पौधों का व्यापारिक महत्व बहुत अधिक होता है, इसके फलों का इस्तेमाल आचार और मुरब्बा बनाने में अधिक किया जाता है, इस किस्म के फलों के गुदे में रस की मात्रा अधिक होती है | 

एन.ए. ९

आंवला की ये भी एक जल्दी पकने वाली किस्म है, इस किस्म के पौधे अक्टूबर माह से फल देना शुरू कर देते हैं, इसके फलों का आकार बड़ा और छिलका पतला व मुलायम होता है, इसका इस्तेमाल जैम, जैली और कैंडी बनाने में किया जाता है, इसके पूर्ण विकसित एक पौधे से सालाना औसतन ११५ किलो से ज्यादा फल प्राप्त होते हैं, इस किस्म के फल मुरब्बा बनाने के लिए सबसे उपयुक्त होते हैं | 

बनारसी

आंवला की ये एक जल्दी पकने वाली सबसे पुरानी किस्म है, इस किस्म के पौधे सीधे बढ़ने वाले होते हैं, इसका पूर्ण विकसित पौधा सालाना ८० किलो के आस-पास फल देता हैं, इसके फल अंडाकार और चिकनी सतह के होते हैं, जिनका रंग पकने के बाद पीला दिखाई देता है, जिनका इस्तेमाल मुरब्बा बनाने में अधिक होता है | 

नरेन्द्र - १० 

आंवला की इस किस्म के वृक्ष की खेती अगेती फसल के रूप में की जाती है, इस किस्म के फल बड़े आकार वाले रेशे युक्त होते हैं, इसके फल बाहर से खुरदरे दिखाई देते हैं, इसके फलों का गुदा हरा और सफ़ेद रंग का होता है, इसके एक पेड़ का औसतन उत्पादन १०० किलो के आसपास होता है, इसके फलों का इस्तेमाल कई तरह से किया जा सकता है | 

खेत की तैयारी

आंवला का पेड़ एक बार लगाने के बाद कई सालों तक पैदावार देता है, इसलिए इसके पौधों की रोपाई से पहले खेत की अच्छे से तैयारी कर लेनी चाहिए, खेत की तैयारी के दौरान शुरुआत में खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट कर खेत की गहरी जुताई कर दें, उसके बाद कुछ दिनों के लिए खेत को खुला छोड़ दें, ताकि सूर्य की धूप भूमि में अंदर तक चली जाए | 

खेत को खुला छोड़ने के बाद खेत में रोटावेटर चलाकर खेत की जुताई कर दें, इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी दिखाई देने लगती है, उसके बाद खेत में पाटा लगाकर उसे समतल बना ले, समतल बनाए गए खेत में चार मीटर की दूरी रखते हुए लगभग दो फिट चौड़ाई और डेढ़ फिट गहराई के गड्डे पंक्तियों में तैयार कर लें, प्रत्येक पंक्तियों के बीच लगभग ११२ से १५ फिट की दूरी होनी चाहिए, उसके बाद इन गड्डों में उचित मात्रा में जैविक और रासायनिक उर्वरकों को मिट्टी में मिलाकर गड्डों में भर दे, इन गड्डों को पौध रोपाई के एक महीने पहले तैयार कर लें | 

पौधे तैयार करना

आंवला के पौधे बीज और कलम दोनों माध्यम से लगाए जाते हैं, लेकिन कलम के माध्यम से लगाना सबसे उपयुक्त होता है, इसके लिए वर्तमान के काफी नर्सरी है, जो इसकी पौध देती हैं, इसके अलावा इसकी पौध वर्तमान में भेट कलम और विरूपित छल्ला विधि के माध्यम से तैयार की जाती है, जिनके बारें में अधिक जानकारी आप हमारे इस आर्टिकल से ले सकते हैं | 

बीज के माध्यम से पौधा तैयार करने के लिए, पहले इसके फलों को सूखा लिया जाता है, फल सूखने के बाद खुद ही फटने शुरू हो जाते हैं, इसके एक फल से लगभग ६ बीज प्राप्त होते हैं, जिन्हें नर्सरी में पॉलीथिन में उर्वरक मिली मिट्टी भरकर लगा देते हैं, बीजों को पॉलीथिन में लगाने से पहले उन्हें लगभग १२ घंटे गोमूत्र या बाविस्टिन के घोल में डुबोकर रखा जाता है, एक एकड़ में पौध रोपाई के लिए लगभग २०० से ३०० ग्राम बीज काफी होते हैं, बीजों को पॉलीथिन में लगाने के बाद जब पौधे अंकुरित हो जाते हैं, तब उन्हें उचित समय पर खेतों में लगाया जाता है | 

पौध रोपाई का तरीका और टाइम

आंवला के पौधों को खेत में तैयार किये गए गड्डों में लगाया जाता हैं, एक महीने पहले तैयार किये गए इन गड्डों में पौध लगाने के लिए पहले गड्डों के बीचों-बीच एक छोटा गड्डा तैयार कर लें, उसके बाद पौधों की पॉलीथिन को हटाकर तैयार किये गए छोटे गड्डों में लगा देते हैं और उसे चरों तरफ से मिट्टी से अच्छे से दबा दें, इसके पौधों की रोपाई के दौरान ध्यान रहे की कभी भी एक किस्म के पौधे खेत में ना लगाए, एक किस्म के पौधों के साथ दूसरी किस्म के पौधों को १:५ के अनुपात में लगाए | 

आंवला के पौधों को खेतों में लगाने का सबसे उपयुक्त टाइम जून माह के बाद सितम्बर माह तक का होता हैं, क्योंकि इस दौरान मौसम सुहाना बना रहता है, जिससे पौधा अच्छे से विकास करता हैं, जहां सिंचाई की व्यवस्था अच्छी हो वहां इसके पौधों को मार्च के महीने में भी लगा सकते हैं, लेकिन इस दौरान पौध लगाने पर उनकी देखभाल करने की ज्यादा आवश्यकता होती है | 

पौधों की सिंचाई

आंवला के पौधों को शुरुआत में सिंचाई की ज्यादा जरूरत शुरुआत में ही होती है, इसके पौधों को खेत में लगाने के तुरंत बाद उनकी पहली सिंचाई कर देनी चाहिए, शुरुआत में इसके पौधों को गर्मी के मौसम में सप्ताह में एक बार और सर्दियों के मौसम में १५ से २० दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए, बारिश के मौसम में इसके पौधों को आवश्यकता के अनुसार पानी देना चाहिए | 

जब पौधा पूर्ण रूप से बड़ा हो जाता है, तब इसे पानी की जरूरत ज्यादा नही होती है, इस दौरान इसके वृक्ष को महीने में एक बार पानी देना चाहिए, लेकिन पेड़ पर फूल खिलने से पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए, क्योंकि इस दौरान सिंचाई करने पर फूल गिरने लगते हैं, जिससे इसके पेड़ पर फल कम लगते हैं | 

उर्वरक की मात्रा

आंवला के पेड़ों को उर्वरक की सामान्य जरूरत होती है, शुरुआत में इसके पौधे की रोपाई से पहले गड्डों की तैयारी के वक्त लगभग ३० किलो पुरानी गोबर की खाद, ५० ग्राम यूरिया, ७० ग्राम डी.ए.पी. और ५० ग्राम एम.ओ.पी. की मात्रा को मिट्टी में मिलाकर गड्डों में भर दें, उसके बाद जब पौधा विकास करने लेगे तब पौधे के विकास के साथ-साथ इस मात्रा को बढ़ाते रहना चाहिए | 

पौधे के विकसित होने के बाद इसके मूल तने से दो से ढाई फिट की दूरी बनाते हुए एक दो फिट चौड़ा और एक से डेढ़ फिट गहरा घेरा बना लें, इस घेरे में लगभग ४० किलो गोबर की खाद, १ किलो नीम की खली, १०० ग्राम यूरिया, १२० ग्राम डी.ए.पी. और १०० ग्राम एम.ओ.पी. की मात्रा को भर दें, उसके बाद इसके पेड़ों की सिंचाई कर दें, आंवला के पूर्ण विकसित वृक्ष को उर्वरक की ये मात्रा मध्य मार्च से पहले दे देनी चाहिए, इससे पेड़ों में फलन अच्छे से होता है | 

खरपतवार नियंत्रण

आंवला के पौधों में खरपतवार नियंत्रण नीलाई गुड़ाई के माध्यम से करना चाहिए, नीलाई गुड़ाई करने से पौधे की जड़ों में वायु का संचार अच्छे से होता है, जिससे पौधा अच्छे से विकास करता हैं, आंवला के पौधों की पहली गुड़ाई बीज और पौध रोपण के लगभग १८ से २० दिन बाद कर देनी चाहिए, उसके बाद जब भी पौधों के पास अधिक खरपतवार नजर आयें, तब उनकी फिर से गुड़ाई कर दें,

आंवला के पौधों को शुरुआत में अच्छे से विकसित होने के लिए ६ से ८ गुड़ाई की जरूरत होती है, जबकि पूर्ण विकसित वृक्ष की साल में चार से पांच गुड़ाई काफी होती है, इसके अलावा इसके पेड़ों के बीच खाली बची जमीन पर अगर किसी भी तरह की फसल नही उगाई गई हो तो बारिश के बाद खेत सूखने पर जुताई कर दे, जिससे खाली जमीन में जन्म लेने वाली सभी तरह की खरपतवार भी नष्ट हो जाती हैं | 

अतिरिक्त कमाई

आंवला के पौधे खेत में लगाने के लगभग तीन से चार साल बाद पैदावार देना शुरू करते हैं, खेत में इसके पौधों को चार से पांच मीटर की दूरी पर तैयार किये गए गड्डों में लगाया जाता है, इसके पौधों के पूर्ण विकसित होने तक किसान भाई पौधों के बीच खाली बची बाकी की भूमि में सब्जी, मसाला, औषधीय और कम समय वाली बागबानी फसलों को उगाकर अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं, जिससे किसान भाइयों को आर्थिक परेशानियों का सामना भी करना नही पड़ेगा, और आंवला के पेड़ों पर फल लगने तक पैदावार भी मिलती रहेगी | 

पेड़ों की देखभाल

आँवले के पौधों की उचित देखभाल करने पर पैदावार अधिक प्राप्त होती है और पौधे रोगमुक्त भी बने रहते हैं, इसके वृक्षों की देखभाल के दौरान इसके पेड़ों की कटाई-छटाई उनकी सुसुप्त अवस्था से पहले मार्च के महीने में कर देनी चाहिए, आंवला के पेड़ों की देखभाल के दौरान इसके फलों की तुड़ाई करने के बाद रोग ग्रस्त शाखाओं की कटाई कर देनी चाहिए, इससे पेड़ों पर नई शाखाएं भी बनती है, और नई शाखाओं के बनने से इसके उत्पादन में भी वृद्धि देखने को मिलती है, इसके अलावा इसके पेड़ों की कटाई-छटाई के दौरान पेड़ों पर नजर आने वाली सूखी हुई शाखाओं को भी काटकर हटा देना चाहिए | 

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

आंवला के पूर्ण विकसित पेड़ों पर प्राय काफी कम ही रोग देखने को मिलते हैं, लेकिन पौधों पर फल लगने के दौरान काफी रोग लग जाते हैं, जो इसके फलों को काफी नुकसान पहुँचाते हैं, जिनकी उचित टाइम रहते देखभाल करना आवश्यक होता है | 

कुंगी रोग

आंवला के पौधों में कुंगी रोग का प्रभाव पौधों की पत्तियों और फलों पर देखने को मिलता है, इस रोग के लगने पर पौधों की पत्तियों और फलों पर लाल रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं, जो धीरे-धीरे पूरे पेड़ पर फैल जाता हैं, जिससे इसके फल ख़राब होने लगते हैं, इस रोग की रोकथाम के लिए इंडोफिल एम-४५ का छिडकाव पेड़ों पर करना चाहिए | 

काला धब्बा रोग

आँवला के फलों पर काले धब्बे का रोग पौधों में बोरोन की कमी के कारण देखने को मिलता है, इस रोग के लगने पर आँवला के फलों पर काले गोल धब्बे दिखाई देने लगते हैं, जिनका आकार समय के साथ बढ़ता जाता हैं, जिससे फलों की पैदावार और गुणवत्ता में कमी देखने को मिलती है, इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर बोरेक्स की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए या बोरेक्स की उचित मात्रा पौधों की जड़ों में देना चाहिए | 

फल फफूंदी

आँवला के पौधों पर लगने वाला फल सडन या फल फफूंदी रोग एक जीवाणु जनित रोग हैं, इस रोग के लगने पर फलों पर फफूंद दिखाई देने लगती है, जिससे फल सड़कर जल्द खराब हो जाता है, इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर एम. ४५, साफ़ और शोर जैसी कीटनाशी दवाइयों का छिडकाव करना चाहिए | 

छालभक्षी कीट रोग

इस रोग के कीट का लार्वा पौधे की शाखाओं के जोड़ में छिद्र बनाकर रहते है, जिससे पौधों की शाखा सुखकर नष्ट हो जाती है, इस रोग के लगने पर पौधों का विकास रुक जाता है, जिससे पौधों पर फल काफी कम मात्रा में आते हैं, इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की शखाओं के जोड़ पर दिखाई देने वाले छिद्रों में डाइक्लोरवास की उचित मात्रा डालकर छेद को चिकनी मिट्टी से बंद कर दें | 

गुठली भेदक

आँवला के पौधों पर लगने वाला ये एक किट जनित रोग हैं, इस रोग के लगने पर फल जल्द खराब होकर गिर जाता है, जिसको फल छेदक के नाम से भी जाना जाता है, इस रोग के कीट का लार्वा फलों में छेद कर फलों की गुठली तक पहुँचता है, इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर कार्बारिल या मोनोक्रोटोफॉस की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए | 

फलों की तुड़ाई और छटाई

आँवले के पौधे खेत में लगाने के लगभग तीन से चार साल बाद पैदावार देना शुरू करते हैं, इसके फल, फूल लगने के लगभग ५ से ६ महीने बाद पककर तैयार हो जाते हैं, इसके फल शुरुआत में हरे दिखाई देते हैं, लेकिन पकने के बाद इनका रंग हल्का पीला दिखाई देने लगता है, इस दौरान इसके फलों की तुड़ाई कर लेनी चाहिए, इसके फलों की तुड़ाई करने के बाद उन्हें ठंडे पानी से धोकर छायादार जगहों में सुखा देना चाहिए, फलों के सुखाने के बाद उनकी छटाई कर बाज़ार में बेचने के लिए भेज देना चाहिए | 

पैदावार और लाभ

आँवला के पूर्ण रूप से तैयार एक वृक्ष से १०० से १२० किलो तक फल प्राप्त हो जाते है, जबकि एक एकड़ में इसके लगभग १५० से १८० पौधे लगाए जा सकते हैं, जिनका कुल उत्पादन २०००० किलो तक प्राप्त हो जाता है, आँवला का बाज़ार भाव १५ रूपये प्रति किलो के आसपास पाया जाता हैं, इस हिसाब से किसान भाई एक बार में एक एकड़ से लगभग दो से तीन लाख तक की कमाई आसानी से कर सकता हैं | 

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