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धान की खेती पूरे विश्व में बड़े पैमाने पर की जाती है और यह पूरे विश्व में पैदा होने वाली प्रमुख फसलों में से एक है, भोजन के रुप में सबसे ज्यादा उपयोग होने वाला चावल इसी से प्राप्त किया जाता है, खाद्य के रूप में अगर बात करें, तो यह सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि अधिकांश देशों में मुख्य खाद्य है, विश्व में इसकी खपत अधिक होने के कारण यह मुख्य फसलों में शुमार है, चावल के उत्पादन में चीन पूरे विश्व में सबसे आगे है और उसके बाद दूसरे नंबर पर भारत है, पूरे विश्व में मक्का के बाद अनाज के रूप में धान ही सबसे ज्यादा उत्पन्न होता है, धान की उपज के लिए १०० से.मी. वर्षा की आवश्यकता होती है।
dhaan ki kheti kaise kare |
भारत में धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश, आन्ध्रप्रदेश, पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु आदि कई ऐसे राज्य हैं, जहां मुख्य रूप से धान की खेती होती है, झारखंड जैसे राज्य के क्षेत्र में धान की खेती ७१ प्रतिशत भूमि पर उगाया जाता है, यहां राज्य की बहुसंख्यक आबादी का प्रमुख चावल है, लेकिन इसके बावजूद धान की उत्पादकता यहां अन्य विकसित राज्यों की तुलना में काफी कम है, धान की खेती के लिए किसानों को कृषि तकनीक का ज्ञान होना आवश्यक है, जिससे वो उत्पादकता बढ़ा सकें, धान की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए सबसे प्रमुख चीज़ यह भी है, कि इसके किस्मों का चुनाव भूमि एवं जलवायु को देखकर उचित तरीके से किया जाए।
गर्मी के समय में धान की खेती के लिए २ से ३ बार जुताई करना चाहिए, साथ ही खेतों की मजबूत मेड़बन्दी भी कर देनी चाहिए, इस प्रक्रिया से खेत में वर्षा का पानी अधिक समय के लिए संचित भी किया जा सकता है, वहीं अगर हरी खाद के रूप में ढैंचा / सनई ली जा रही है, तो इसकी बुवाई के साथ ही फास्फोरस का भी प्रयोग कर लिया जाएगा, धान की बुवाई / रोपाई के लिए एक सप्ताह पूर्व खेत की सिंचाई कर देना चाहिए, वहीं खेत में खरपतवार होने के बाद इसके पश्चात ही बुआई के समय ही खेत में पानी भरकर जुताई कर दें।
धान की सीधी बुआई की अगर बात करें, तो इसमें बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर लगभग ४० से ५० किलोग्राम तक होना चाहिए, इसके साथ ही धान की रोपाई के लिए यह मात्रा लगभग ३० से ३५ किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होना चाहिए, वहीं कई लोग नर्सरी बनाने से पहले बीज का शोधन करते हैं, इसके लिए वो २५ किलोग्राम बीज में ४ ग्राम स्ट्रेपटोसईक्लीन तथा ७५ ग्राम थीरम का प्रयोग करके बीज को शोधिक करके बुआई करते हैं।
धान की सीधी बुवाई किसानों में इन दिनों ज्यादा लोकप्रिय हो रही है और किसान इससे लाभ भी प्राप्त कर रहे हैं, इस विधि में सबसे महत्वपूर्ण यह होता है, की उचित समय पर बुवाई करना, मानसून आने के १० से १२ दिन पूर्व यानि मध्य जून तक बुवाई कर लेनी चाहिए, यह प्रक्रिया उत्तर और पूरे मध्य भारत में होती है, अगर छत्तीसगढ़ जैसे राज्य की बात करें, तो यहां धान की बुवाई खुर्रा विधि से की जाती है, जिसका मतलब है सूखे खेतों में बुवाई।
धान की फसल में उर्वरक की मात्रा का प्रयोग काफी आवश्यक होता है, किसान रोपनी के कार्य के बाद अगर इन चीज़ों का प्रबंधन उचित ढंग से करें, तो पैदावार अच्छे तरीके से किया जा सकता है, किसान धान की खेती के लिए यूरिया का प्रयोग अधिक मात्रा में करते हैं, जिससे उनको नुकसान होता है।
जिसके लिए १०० से १३० k.g. डी.ए.पी, ७० k.g. एम.ओ.पी, ४० k.g. यूरिया एवं २५ k.g. जिंक प्रति हेक्टर की दर से रोपाई के समय प्रयोग करें तथा यूरिया की ६० से ८० किलोग्राम मात्रा रोपनी के ४ से ५ सप्ताह बाद एवं ६० से ८० किलोग्राम मात्र रोपनी के ७ से ८ सप्ताह बाद प्रति हेक्टर खेत में प्रयोग करें।
धान की फसल को फसलों में सबसे अधिक पानी की आवशयकता पड़ती है, फसल को कुछ विशेष अवस्थाओं में रोपाई के बाद एक सप्ताह तक कल्ले फूटने वाली, बाली निकलने, फूल निकलने तथा दाना भरते समय खेत में पानी भरना अति आवश्यक है।
धान की खेती के लिए उसकी किस्मों का चुनाव भी काफी महत्वपूर्ण है, इसकी पूरे किस्मों की जानकारी एक लेख में देना शायद मुमकिन नहीं है, इसलिए इसकी कुछ उन्नत किस्मों का जिक्र इस आर्टिकल में किया गया है, इसकी किस्में ९० से १३० दिनों में तैयार होती हैं।
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