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जामुन का वृक्ष एक सदाबहार वृक्ष है, जो एक बार लगाने के बाद ५० से ६० साल तक पैदावार देता है, जामुन को राजमन, काला जामुन, जमाली और ब्लैकबेरी के नाम से भी जाना जाता हैं, वैसे तो जामुन का सम्पूर्ण वृक्ष उपयोगी होता है, लेकिन खाने के रूप में लोग इसके फलों को खाना ज्यादा पसंद करते हैं, इसके फलों का जैम, जेली, शराब और शरबत बनाने में भी उपयोग लिया जाता है, इसके फल काले रंग के होते हैं, जिनका गुदा गहरे लाल रंग का दिखाई देता है, इसके फल में अम्लीय गुण होता है, जिस कारण इसका स्वाद कसेला होता है, जामुन के अंदर कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जिनके कारण इसका फल मनुष्य के लिए उपयोगी होता है, इसके फलों को खाने से मधुमेह, एनीमिया, दाँत और पेट संबंधित बीमारियों से छुटकारा मिलता है |
जामुन की खेती कैसे करें |
जामुन के वृक्ष को समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले प्रदेशों में आसानी से उगाया जा सकता है, इसका पूर्ण विकसित वृक्ष २० फिट से भी ज्यादा लम्बाई का हो सकता है, जो एक सामान्य वृक्ष की तरह दिखाई देता है, इसकी पत्तियां सफेदे की जैसी ही होती है, जिनकी लम्बाई आधा फिट के आसपास पाई जाती है, इसकी खेती के लिए उपजाऊ भूमि की जरूरत होती है |
जामुन का पेड़ जल भराव या उचित जल निकास वाली दोनों ही तरह की भूमि में लगाया जा सकता है, लेकिन अधिक पैदावार लेने के लिए जल निकास वाली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है, इसके वृक्ष को कठोर और रेतीली भूमि में नही उगाना चाहिए, इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान ५ से ८ के बीच में होना चाहिए |
जामुन के वृक्ष को समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु वाली जगहों पर उगाया जा सकता है, भारत में इसे ठंडे प्रदेशों को छोड़कर कहीं पर भी लगाया जा सकता है, इसके पेड़ पर सर्दी, गर्मी और बरसात का कोई ख़ास असर देखने को नही मिलता है, लेकिन सर्दियों में पड़ने वाला पाला और गर्मियों में अत्यधिक तेज़ गर्मी इसके लिए नुकसानदायक साबित हुई है, इसके फलों को पकने में बारिश का ख़ास योगदान होता है, लेकिन फूल बनने के दौरान होने वाली बारिश इसके लिए नुकसानदायक होती है |
इसके पौधे को अंकुरित होने के लिए २० डिग्री के आसपास तापमान की आवश्यकता होती है, अंकुरित होने के बाद पौधों को विकास करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है |
जामुन की कई किस्में हैं, जिन्हें उनके उत्पादन और फलों की गुणवत्ता के आधार पर तैयार किया गया है |
जामुन की इस किस्म को भारत में अधिक मात्रा में उगाया जाता है, इस किस्म के फल आकर में बड़े, आयताकार और गहरे बैंगनी रंग के होते हैं, इसके फलों में पाई जाने वाली गुठली का आकार छोटा होते हैं, इसके फल पकने के बाद मीठे और रसदार बन जाते हैं |
इस किस्म का निर्माण सेंट्रल फॉर सब-ट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर ऑफ़ लखनऊ, उत्तर प्रदेश द्वारा किया गया है, इस किस्म के फल के अंदर बीज नहीं होते है, इस किस्म के फल सामान्य मोटाई वाले अंडाकार दिखाई देते हैं, जिनका रंग पकने के बाद काला और गहरा नीला दिखाई देते है, इस किस्म के फल रसदार और स्वाद में मीठे होते हैं, इस किस्म के पौधे गुजरात और उत्तर प्रदेश में अधिक उगाये जाते हैं |
जामुन की इस किस्म को पंजाब में अधिक मात्रा में उगाया जाता है, इस किस्म के पौधे बारिश में मौसम में फल देते है, इस किस्म के फलों का रंग गहरा जामुनी या नीला होता है, जिनका आकार अंडाकार होता है, इसकी गुठली बहुत ही छोटी होती है, गुदा रसदार और हलकी खटाई के साथ मीठा होता है |
इस किस्म का निर्माण केन्द्रीय बागवानी प्रयोग केन्द्र गोधरा, गुजरात के द्वारा किया गया है, इस किस्म के फल स्वाद में मीठे होते है, जो खाने के बाद कसेला स्वाद देते है, इसके फलों में गुदे की मात्रा ज्यादा पाई जाती है, इस किस्म के फल बारिश के मौसम में पककर तैयार हो जाते हैं |
इस किस्म के फल आकार में छोटे होते हैं, जिनका रंग गहरा जामुनी होता है, इस किस्म के फलों में गुदे की मात्रा कम पाई जाती है, जो स्वाद में खट्टा होता है, इसके फलों का आकार बेर की तरह गोल होता है, इस किस्म को बहुत कम किसान भाई उगाते है |
इस किस्म के फल सामान्य आकार के होते हैं, जिनका रंग गहरा बेंगानी होता है, इस क़िस्म के पौधे पछेती पैदावार के लिए जाने जाते हैं, जिन पर फल बारिश के मौसम के बाद अगस्त महीने में पककर तैयार होते हैं, इस किस्म के फलों का स्वाद खटाई लिए हुए हल्का मीठा होता है |
इस किस्म का निर्माण सेंट्रल फॉर सब-ट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर ऑफ़ लखनऊ, उत्तर प्रदेश के द्वारा किया गया है, इस किस्म के फल गहरे काले रंग के होते हैं, जो बारिश के मौसम में पककर तैयार हो जाते हैं, इसके फलों में गुठली का आकार छोटा होता है, इसका गुदा मीठा और रसदार होता है |
इनके अलावा और भी कई किस्में हैं, जिनको अलग-अलग प्रदेशों में उगाकर अच्छी पैदावार की जाती हैं, जिनमें नरेंद्र ६, कोंकण भादोली, बादाम, जत्थी और राजेन्द्र १ जैसी कई किस्में शामिल हैं |
जामुन के वृक्ष एक बार लगाने के बाद लगभग ५० साल तक पैदावार देते हैं, इसके पौधे खेत में गड्डे तैयार कर लगाए जाते हैं, गड्डों को तैयार करने से पहले खेत की शुरुआत में गहरी जुताई कर उसे कुछ दिन के लिए खुला छोड़ दें, खेत को खुला छोड़ने के कुछ दिन बाद फिर से खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी में मौजूद ढेलों को नष्ट कर दें, उसके बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल बना ले |
खेत को समतल बनाने के बाद ५ से ७ मीटर की दूरी पर एक मीटर व्यास वाले डेढ़ से दो फिट गहरे गड्डे तैयार कर लें, इन गड्डों में उचित मात्रा में जैविक और रासायनिक खाद को मिट्टी में मिलकर भर दें, खाद और मिट्टी के मिश्रण को गड्डों में भरने के बाद उनकी गहरी सिंचाई कर ढक दें, इन गड्डों को बीज या पौध रोपाई के एक महीने पहले तैयार किया जाता है |
जामुन के पौधे बीज और कलम के माध्यम से तैयार किये जाते हैं, इसके अलावा इसके पौधे सरकार द्वारा रजिस्टर्ड नर्सरी में भी मिल जाते हैं, जहाँ से इनको खरीदकर खेत में लगा सकते हैं, नर्सरी से पौधे खरीदने पर टाइम का सबसे ज्यादा बचाव होता है, क्योंकि कलम और बीज से पौधा तैयार करने में लगभग ३ से ५ महीने का टाइम लग जाता हैं, इस कारण ज्यादातर किसान भाई इन्हें नर्सरी से खरीदकर ही उगाते हैं, नर्सरी में जामुन के पौधे को कलम के माध्यम से तैयार करने के लिए साधारण कलम रोपण, गूटी और ग्राफ्टिं विधि का इस्तेमाल करते हैं |
जामुन के पौधे बीज और कलम दोनों माध्यम से लगाए जा सकते हैं, लेकिन बीज के माध्यम से लगाए गए पौधे फल देने में ज्यादा वक्त लेते हैं, बीज के माध्यम से पौधों को उगाने के लिए एक गड्डे में एक या दो बीज को लगभग ५ सेंटीमीटर की गहराई में लगाना चाहिए, उसके बाद जब पौधा अंकुरित हो जाए तब अच्छे से विकास कर रहे पौधे को रखकर दूसरे पौधे को नष्ट कर देना चाहिए |
इसके बीजों को गड्डों में लगाने से पहले उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए, जबकि पौध के माध्यम से पौधों को लगाने के लिए पहले तैयार किये गए गड्डों में खुरपी की सहायता से एक और छोटा गड्डा तैयार किया जाता है, इस गड्डे में इसकी कलम को लगाया जाता है, इसकी कलम को तैयार किये गए गड्डे में लगाने से पहले उसे बाविस्टिन से उपचारित कर लेना चाहिए, उसके बाद पौधों को तैयार किये गए गड्डों में लगाकर, उसे चारों तरफ से अच्छे से मिट्टी में दबा देना चाहिए |
जामुन के पौधे बारिश के मौसम में लगाने चाहिए, इससे पौधा अच्छे से विकास करता है, क्योंकि बारिश के मौसम में पौधे को विकास करने के लिए अनुकूल तापमान मिलता रहता है, जबकि बीज के माध्यम से इसके पौधे तैयार करने के लिए इन्हें बारिश या बारिश के मौसम से पहले उगाया जाता हैं, बारिश के मौसम से पहले इन्हें मध्य फरवरी से मार्च के लास्ट तक उगाया जाता है |
जामुन के पूर्ण रूप से विकसित पेड़ को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नही होती है, लेकिन शुरुआत में इसके पौधों को सिंचाई की आवश्यकता होती है, इसके पौधों या बीज को खेत में तैयार किये गए गड्डों में लगाने के तुरंत बाद उनकी पहली सिंचाई कर देनी चाहिए, उसके बाद गर्मियों के मौसम में पौधों को सप्ताह में एक बार पानी देना चाहिए और सर्दियों के मौसम में १५ दिन के अंतराल में पानी देना उचित होता है |
इसके पौधों को शुरुआत में सर्दियों में पड़ने वाले पाले से बचाकर रखना चाहिए, बारिश के मौसम में इसके पौधे को अधिक बारिश की जरूरत नही होती, जामुन के पेड़ को पूरी तरह से विकसित होने के बाद उसे साल में ५ से ७ बार सिंचाई की जरूरत होती है, जो ज्यादातर फल बनने के दौरान की जाती है |
जामुन के पेड़ों को उर्वरक की सामान्य जरूरत होती है, इसके लिए पौधों को खेत में लगाने से पहले तैयार किये गए गड्डों में १० से १५ किलो पुरानी सड़ी गोबर की खाद को मिट्टी में मिलाकर गड्डों में भर दें, गोबर की खाद की जगह वर्मी कम्पोस्ट खाद का भी इस्तेमाल किया जा सकता है |
जैविक खाद के अलावा रासायनिक खाद के रूप में शुरुआत में प्रत्येक पौधों को १०० ग्राम एन.पी.के. की मात्रा को साल में तीन बार देना चाहिए, लेकिन जब पौधा पूर्ण रूप से विकसित हो जाये, तब जैविक और रासायनिक दोनों खाद की मात्रा को बढ़ा दें, पूर्ण रूप से विकसित वृक्ष को ५० से ६० किलो जैविक और एक किलो रासायनिक खाद की मात्रा साल में चार बार देनी चाहिए |
जामुन के पौधों में खरपतवार नियंत्रण नीलाई गुड़ाई कर करनी चाहिए, इससे पौधों की जड़ों को वायु की उचित मात्रा भी मिलती रहती है, जिससे इसका वृक्ष अच्छे से विकास करता हैं, इसके पौधों की पहली गुड़ाई बीज और पौध रोपण के १८ से २० दिन बाद कर देनी चाहिए, उसके बाद पौधों के पास खरपतवार दिखाई देने पर फिर से गुड़ाई कर दें, जामुन के पौधों को शुरुआत में अच्छे से विकसित होने के लिए सालभर में ७ से १० गुड़ाई और व्यस्क होने के बाद चार से पांच गुड़ाई की जरूरत होती है, इसके अलावा पेड़ों के बीच खाली बची जमीन पर अगर कोई फसल ना उगाई गई हो तो बारिश के बाद खेत सूखने पर हलकी जुताई कर देनी चाहिए, जिससे खाली जमीन में जन्म लेने वाली खरपतवार नष्ट हो जाती हैं |
जामुन के पेड़ों को देखभाल की ख़ास जरूरत होती है, इसके लिए शुरुआत में इसके पौधों पर एक मीटर की ऊंचाई तक कोई भी नई शाखा को ना पनपने दें, इससे पेड़ों का तना अच्छा मजबूत बनता है और पेड़ों का आकार भी अच्छा दिखाई देता है, इसके अलावा हर साल फल तुड़ाई होने के बाद शाखाओं की कटाई करनी चाहिए, इससे पेड़ पर नई शाखाएं बनती है, जिनसे पेड़ों के उत्पादन में वृद्धि देखने को मिलती है, पेड़ों की कटाई के दौरान सूखी हुई शाखाओं को भी काटकर हटा देना चाहिए |
जामुन के पेड़ों को खेत में ५ से ७ मीटर की दूरी पर तैयार किये गए गड्डों में लगाया जाता है और इसके वृक्ष लगभग तीन से पांच साल बाद पैदावार देना शुरू करते हैं, इस दौरान किसान भाई पेड़ों के बीच खाली बची बाकी की भूमि में सब्जी, मसाला और कम समय वाली बागबानी फसलों को उगाकर अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं, जिससे किसान भाइयों को आर्थिक परेशानियों का भी सामना नही करना पड़ता है और पेड़ों पर फल लगने तक पैदावार भी मिलती रहती है |
जामुन के वृक्षों पर कई तरह के किट और जीवाणु जनित रोग लग जाते हैं, जिनसे पेड़ों की पैदावार पर फर्क देखने को मिलता है, जिनकी टाइम रहते रोकथाम कर अच्छी पैदावार हासिल की जा सकती है |
पेड़ पर इस रोग के कीट कई पत्तियों को आपस में सफ़ेद रंग के रेशों से जोड़कर एकत्रित कर लेती हैं, जिनके अंदर इसके कीट जन्म लेते हैं, जो फलों के पकने के दौरान उन पर आक्रमण करते हैं, जिससे फल आपस में मिलकर खराब हो जाते हैं, इस रोग की रोकथाम के लिए एकत्रित की हुई पत्तियों को फल लगने से पहले ही तोड़कर जला देना चाहिए, इसके अलावा इस रोग के लगने पर पेड़ों पर इंडोसल्फान या क्लोरपीरिफॉस की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए |
जामुन के पेड़ों पर पत्ती झुलसा का रोग मौसम परिवर्तन के दौरान और तेज़ गर्मी पड़ने पर देखने को मिलता है, इस रोग के लगने पर पेड़ों को पत्तियों पर भूरे पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं और पत्तियां किनारों पर से सुखकर सिकुड़ने लगती है, जिसके कुछ दिनों बाद पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती है, जिसकी वजह से पौधों का विकास रुक जाता है, इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर एम ४५ की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए |
पौधों पर फूल और फल बनने के दौरान ये रोग देखने को मिलता है, जो ज्यादातर पौधों में पोषक तत्व की कमी की वजह से लगता है, इसके अलावा फूल झडन का रोग फूल बनने के दौरान बारिश होने पर भी लग जाता है, इस रोग के लगने पर पैदावार कम प्राप्त होती है, इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर जिब्रेलिक एसिड की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए |
फल छेदक रोग की मुख्य वजह पत्ता जोड़ मकड़ी रोग होता हैं, पत्ता जोड़ मकड़ी के लगने पर एकत्रित हुई पत्तियों में इस रोग का कीट जन्म लेता है, जो फल लगने पर उनके अंदर प्रवेश कर फलों को नुक्सान पहुँचाता है, इस रोग के लगने पर पौधे पर नीम के तेल या नीम के पानी का छिडकाव १० से १२ दिन के अंतराल में दो से तीन बार करना चाहिए |
जामुन के पेड़ों पर सुंडी का आक्रमण पौधों की पत्तियों पर अधिक देखने को मिलता है, इस रोग का लार्वा पौधे की कोमल पत्तियों को खाकर उन्हें नुक्सान पहुँचाता है, इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर डाइमेथोएट या फ्लूबैनडीयामाइड की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए |
जामुन के फल पकने के बाद बैंगनी काले रंग के दिखाई देते हैं, जो फूल खिलने के लगभग डेढ़ महीने बाद पकने शुरू हो जाते हैं, फलों के पकने के दौरान बारिश का होना लाभदायक होता है, क्योंकि बारिश के होने से फल जल्दी और अच्छे से पकते हैं, लेकिन बारिश अधिक तेज़ या तूफ़ान के साथ नही होनी चाहिए, जामुन के फलों को पकने के बाद उन्हें नीचे गिरने से पहले ही तोड़ा जाता है, इसके फलों की तुड़ाई रोज़ की जानी चाहिए, क्योंकि फलों के गिरने पर फल जल्दी ख़राब हो जाते हैं |
इसके फलों की तुड़ाई करने के बाद उन्हें ठंडे पानी से धोना चाहिए, फलों को धोने के बाद उन्हें जालीदार बाँस की टोकरियों में भरकर पैक किया जाता है, फलों को टोकरियों में भरने से पहले खराब दिखाई देने वाले फलों को अलग कर लेना चाहिए |
जामुन के वृक्ष लगभग ८ साल बाद पूर्ण रूप से पैदावार देना शुरू करते हैं, पूर्ण रूप से तैयार होने के बाद एक पौधे से ८० से ९० किलो तक जामुन प्राप्त हो जाती है, जबकि एक एकड़ में इसके लगभग १०० से ज्यादा पेड़ लगाए जा सकते हैं, जिनका कुल उत्पादन १०००० किलो तक प्राप्त हो जाता है, जिसका बाज़ार भाव ८० से १०० रूपये किलो के आसपास पाया जाता हैं, इस हिसाब से किसान भाई एक बार में एक एकड़ से लगभग ८ लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते हैं |
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