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स्ट्रॉबेरी एक बहुत ही नाज़ुक फल होता है, जो की स्वाद में हल्का खट्टा और हल्का मीठा होता है, दिखने में दिल के आकर का होता है और इसका रंग चटक लाल होता है, ये मात्र एक ऐसा फल है, जिसके बीज बाहर की और होते है, आपको जानकर आश्चर्य होगा की स्ट्रॉबेरी की ६०० किस्में इस संसार में मौजूद है, ये सभी अपने स्वाद रंग रूप में एक दूसरे से भिन्न होती है, स्ट्रॉबेरी अपनी एक अलग ही खुशबू के लिए पहचानी जाती है, जिसका फ्लेवर कई सारी आइसक्रीम आदि में किया जाता है, स्ट्रॉबेरी में कई सारे विटामिन और लवण होते है जो स्वास्थ के लिए काफी लाभदायक होते है।
strawberry ki kheti kaise kare |
इसमें काफी मात्रा में विटामिन C एवं विटामिन A और K पाया जाता है, जो रूप निखारने और चेहरे में कील मुँहासे, आँखो की रौशनी चमक के साथ, दाँतों की चमक बढ़ाने का काम आते है, इनके आलवा इसमें कैल्सियम, मैग्नीशियम, फोलिक एसिड, फास्फोरस, पोटेशियम होता है।
भारत में स्ट्रॉबेरी की अधिकतर किस्में बाहर से मंगवाई हुई है, व्यावसायिक रूप से खेती करने के लिए प्रमुख किस्में निम्नलिखित है- ओफ्रा, कमारोसा, चांडलर, स्वीट चार्ली, ब्लेक मोर, एलिस्ता, सिसकेफ़, फेयर फाक्स आदि किस्में है।
वैसे तो इसकी खेती के लिए कोई मिट्टी तय नही है, फिर भी अच्छी उपज लेने के लिए बलुई दोमट मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है, इसकी खेती के लिए ph ५.० से ६.५ तक मान वाली मिट्टी भी उपयुक्त होती है, यह फसल शीतोष्ण जलवायु वाली फसल है, जिसके लिए २० से ३० डिग्री तापमान उपयुक्त रहता है, तापमान बढ़ने पर पौधों में नुकसान होता है और उपज प्रभावित हो जाती है।
सितम्बर के प्रथम सप्ताह में खेत की ३ बार अच्छी जुताई कर ले, फिर उसमे एक हेक्टेयर जमीन में ७५ टन अच्छी सड़ी हुई खाद अच्छे से बिखेर कर मिटटी में मिला दे, साथ में पोटाश और फास्फोरस भी मिट्टी परीक्षण के आधार पर खेत तैयार करते समय मिला दे |
खेत में आवश्यक खाद उर्वरक देने के बाद बेड बनाने के लिए बेड की चौड़ाई २ फिट रखे और बेड से बेड की दूरी डेढ़ फिट रखे, बेड तैयार होने के बाद उस पर ड्रेप एरिगेशन की पाइपलाइन बिछा दे, पौधे लगाने के लिए प्लास्टिक मल्चिंग में २० से ३० सेमी की दूरी पर छेद करे, स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाने का सही समय १० सितम्बर से १५ अक्टूबर तक लगा देना आवश्यक है, यदि तापमान ज्यादा हो तो पौधे सितम्बर लास्ट तक लगा ले।
स्ट्रॉबेरी का पौधा काफी नाज़ुक होता है, इसलिए उसे समय-समय खाद और उर्वरक देना ज़रुरी होता है, जो की आपके खेत के मिट्टी परीक्षण रिपोर्ट को देखकर दे, मल्चिंग होने के बाद तरल खाद टपक सिंचाई के जरिये दे, जिसमे नाइट्रोजन फास्फोरस p२o५ और पोटाश k२o को कृषि वैज्ञानिकों की सलाह ले कर समय-समय पर देते रहें |
पौधे लगाने के बाद तुरंत सिंचाई की जाना चाहिए, समय-समय पर नमी को ध्यान में रखकर सिंचाई करना चाहिए, स्ट्रॉबेरी में फल आने से पहले सूक्ष्म फव्वारे से सिंचाई कर सकते है, फल आने के बाद टपक विधि से ही सिंचाई करे।
कीटों में पतंगे, मक्खियाँ चेफर, स्ट्राबेरी जड़ विविल्स झरबेरी एक प्रकार का कीड़ा, रस भृग, स्ट्रॉबेरी मुकट कीट कण जैसे कीट इसको नुकसान पंहुचा सकते है, इसके लिए नीम की खल पौधों की जड़ों में डाले इसके अलावा पत्तों पर पत्ती स्पाट, ख़स्ता फफूंदी, पत्ता ब्लाइट से प्रभावित हो सकती है, इसके लिए समय-समय पर पोधों के रोगों की पहचान कर विज्ञानिकों की सलाह में कीटनाशक दवाइयों का स्प्रे करे।
पाली हाउस नही होने की अवस्था में किसान भाई स्ट्रॉबेरी को पाले से बचाने के लिए प्लास्टिक लो टनल का उपयोग करे, जिसमे पारदर्शी प्लास्टिक चादर, जो १०० से २०० माइक्रोन की हो उसका उपयोग करना चाहिए |
अलग अलग राज्यों में उद्यानिकी और कृषि विभाग की तरफ से अनुदान भी है, जिसमे प्लास्टिक मल्चिंग और ड्रिप इरीगेशन फुवारा सिंचाई आदि यंत्र पर ४० से ५०% तक अनुदान भी मिल जाता है।
जब फल का रंग सत प्रतिशत असली हो जाये तो तोड़ लेना चाहिए, अगर मार्किट दूरी पर है तो थोड़ा सख्त ही तोडना चाहिए, तुड़वाई अलग-अलग दिनों मैं करनी चाहिए, स्ट्रॉबेरी के फल को नहीं पकड़ना चाहिए, ऊपर से दण्डी पकड़ना चाहिए, औसत फल सात से बारह टन प्रति हेक्टयेर निकलता है।
स्ट्रॉबेरी की पैकिंग प्लास्टिक की प्लेटों में करनी चाहिए, इसको हवादार जगह पर रखना चाहिए, जहां तापमान पांच डिग्री हो, एक दिन के बाद तापमान जीरो डिग्री होना चाहिए।
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