गाजर की खेती कैसे करे | gajar ki kheti kaise kare

गाजर की खेती कैसे करे

गाजर यह अंबेलिफर कुटुंब की अपियासी की द्विवार्षिक वनस्पति है, इसमें शुरू में टॅप्रूट बढ़ते समय पत्ते फूटते है और वह बढ़ते हैं, इसके जड़ भाग को खाने के उपयोग में लिया जाता है, ये तीन रंगों में उगाई जाती है लाल, काली और नारंगी, अच्छे गुणों वाली मोटी, लंबी, लाल या नारंगी रंग की जड़ों वाली गाजर अच्छी मानी जाती है, गाजर की जड़ में अल्फा और बीटा कॅरोटीन का प्रमाण अधिक होता है और वह विटामिन के और विटामिन बी का अच्छा स्रोत है, इसे कच्चा व पकाकर दोनों तरीके से खाया जाता है।

 

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गाजर में काफी मात्रा में विटामिन व मिनरल पाए जाते हैं, इसका ज्यूस बनाकर पीया जाता है, वहीं सब्जी, सलाद, अचार, हलवा आदि बनाया जाता हैं, नियमित रूप से गाजर खाने से जठर में होने वाला अल्सर और पाचन के विकार दूर होते हैं, इसका सेवन पीलिया की समस्या को दूर करके इम्यूनिटी सिस्टम को मजबूत करने के साथ ही आंखों की रोशनी भी बढ़ाता है, इसके अनेक गुणों के कारण लोग इसे पसंद करते हैं, आइए आज जानते हैं कि हमारे किसान भाई नवंबर के माह में गाजर की कौन-कौन सी किस्मों का चयन करें, ताकि उन्हें भरपूर मुनाफा प्राप्त हो सके।

गाजर की उन्नत किस्में

चैंटनी

यह गाजर की यूरोपियन किस्म है, इस किस्म कि गाजरें मोटी तथा गहरे लाल नारंगी रंग कि होती है, यह किस्म बोने के 75 से 90 दिनों बाद तैयार हो जाती है, इस किस्म का बीज मैदानी क्षेत्रों में तैयार किया जा सकता है, यह प्रति हेक्टेयर 150 क्विंटल तक पैदावार देती है।

नैनटिस

ये भी गाजर की यूरोपियन किस्म है, इस किस्म की विशेषता यह है कि इसका ऊपरी भाग छोटा तथा हरी पत्तियों वाला होता है, इस किस्म कि जड़ें बेलनाकार और नारंगी रंग कि होती है, जिनका अगला सिरा छोटा और पतला होता है, यह एक अच्छी गंध वाली, दानेदार, मुलायल एवं मीठी किस्म है, यह किस्म बीज बोने के 110 से 120 दिनों बाद तैयार हो जाती है, इसका बीज मैदानी भागों में तैयार नहीं किया जा सकता है, यह प्रति हेक्टेयर 200 क्विंटल तक पैदावार दे देती है।

चयन नं 223

यह एशियाई किस्म है, किन्तु यह यूरोपियन किस्म नैनटिस के समान गुणों का प्रदर्शन करती है, यह फसल बोने के 90 दिन बाद तैयार हो जाती है तथा खेत में 90 दिनों तक अच्छी दशा में रहती है, इसकी जड़ें नारंगी रंग की होती है और इनकी लंबाई 15 से 18 सेंटीमीटर और मीठी होती है, इसे देर से भी बोया जा सकता है, यह प्रति हेक्टेयर 200 से 300 क्विंटल तक पैदावार दे देती है।

पूसा रुधिर

यह लंबी और लाल रंग की होती है, इसकी उपज 280 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

पूसा मेघाली

इसकी जड़े गोलाकार, लंबी, नारंगी रंग के गूदे और कैरोटीन की अधिक मात्रा वाली होती है, इसकी अगेती बुवाई अगस्त से सितंबर में की जाती है, इसकी बुवाई अक्टूबर से नवंबर तक कर सकते है, फसल बोने के 100 से 110 दिन में तैयार हो जाती है, इसकी पैदावार 250 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

पूसा जमदग्नि

इस किस्म की जड़ें देश के अलग-अलग भागों में 85 से 130 दिनों में तैयार हो जाती है, हरी पत्तियों वाला उपरी वाला भाग मंझौला होता है, इसका मध्य भाग तथा गुदा केसरिया रंग का होता है, जो उत्तम खुशबू वाला, कोमल और मीठे स्वाद वाला होता है, यह किस्म तेजी से बढ़ोत्तरी करती है तथा अधिक उपज देती है।

गाजर की खेती में ध्यान रखने वाली बातें / गाजर की बुवाई का समय

  • गाजर की खेती करने वाले किसान भाई गाजर की एशियन किस्मों की बुवाई ही करे। 
  • अगस्त से सितंबर और यूरोपियन किस्मों की बुवाई अक्टूबर से नवंबर तक करें।
  • गाजर की खेती के लिए 12 से 21 डिग्री का तापमान अच्छा रहता है।
  • गाजर की बुवाई के लिए प्रति हैक्टेयर 10 से 12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
  • गाजर की बुवाई के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है, लेकिन आजकल अन्य भूमियों में भी इसकी खेती होने लगी है।
  • भारी भूमियों में या जहां नीचे की भूमि सख्त होती है, ऐसे खेतों में गाजर की फोर्किग (गाठ पंजा) की समस्या आ सकती है।
  • गाजर की बिजाई उचित समय पर करनी चाहिए, समय से पूर्व बिजाई करने पर
  • अंकुरण की समस्या आती है व गाजर की गांठ बन जाती है।  
  • जड़ से कई जड़े निकल जाती है तथा झंडे निकल आते है व गाजर सफेद भी रह सकती है।
  • अच्छी पैदावार व जड़ों की गुणवत्ता के लिए बिजाई हल्की डोलियों पर करनी चाहिए।
  • अत्यधिक पानी देने से गाजर में रेशे बनने लग जाते हैं और गाजर सफेद रह जाती है, जिससे गाजर की गुणवत्ता व उपज प्रभावित होती है।
  • गाजर की आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए, गाजर में देर से पानी देने से
  • गाजर फटने लग जाती है, इससे उनकी गुणवत्ता में कमी आ जाती है।
  • गाजर की देर से खुदाई करने से गाजर की पौष्टिक गुणवत्ता कम हो जाती है। गाजर फीकी और कपासिया हो जाती है तथा भार भी कम हो जाता है, इसलिए पककर तैयार होते ही गाजर की खुदाई शुरू कर देनी चाहिए।

गाजर की खेती के लिए खेत की तैयारी

खेत को बिजाई से पहले भली प्रकार से समतल कर लेना चाहिए, इसके लिए खेत की 2 से 3 गहरी जुताई करनी चाहिए, प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाएं, ताकि ढेले टूट जाएं और मिट्टी अच्छी तरह से भुरभुरी हो जाए, इसके बाद खेत में गोबर की खाद को अच्छी तरह मिला दें।

गाजर बुवाई का तरीका

अच्छी पैदावार व जड़ों की गुणवत्ता के लिए बिजाई हल्की डोलियों पर करनी चाहिए, डोलियों के बीच 30 से 45 सेंटीमीटर की दूरी तथा पौधे से पौधे की दूरी 6 से 8 सेंटीमीटर रखनी चाहिए, डोलियों की चोटी पर 2 से 3 सेंटीमीटर गहरी नाली बनाकर बीज बोना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक की मात्रा

खेत की तैयारी के समय 20 से 25 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हैक्टेयर जुताई करते समय डालनी चाहिए, इसके अलावा 20 किलोग्राम शुद्ध नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस व 20 किलोग्राम पोटाश की मात्रा बिजाई के समय प्रति हैक्टेयर खेत में डालनी चाहिए, 20 किलोग्राम नाइट्रोजन लगभग 3 से 4 सप्ताह बाद खड़ी फसल में लगाकर मिट्टी चढ़ाते समय देनी चाहिए।

कब-कब करें सिंचाई

गाजर की फसल को 5 से 6 बार सिंचाई करने की आवश्यकता होती है, अगर खेत में बिजाई करते समय नमी कम हो तो पहली सिंचाई बिजाई के तुरंत बाद करनी चाहिए, ध्यान रहे पानी की डोलियों से ऊपर न जाए, बल्कि 3/4 भाग तक ही रहें, बाद की आवश्यकतानुसार हर 15 से 20 दिन के अंदर सिंचाई करनी चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के चार सप्ताह बाद 2 से 3 बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए, इसके बाद मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए, यदि खेत में अधिक खरपतवार उगते है तो पेंडीमेथिलीन 30 ई सी 3 किलोग्राम को 900 से 1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई से 48 घंटे के अंदर छिडक़ाव किया जा सकता है।

खुदाई और पैदावार

गाजर की जड़ों की मुलायम अवस्था में खुदाई करनी चाहिए, प्राय: एशियन किस्मों की खुदाई 100 से 130 दिनों में तथा यूरोपियन किस्मों की खुदाई 60 से 70 दिनों में करनी चाहिए, अब बात करें इसकी पैदावार की तो इसकी उन्नत खेती करके करीब 28 से 32 टन प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।


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