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वेटिवर या खस का उद्भव स्थान भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका एवं मलेशिया माना जाता है, खस कड़ी प्रवृत्ति का घास है, जो सूखे की स्थिति एवं जल-जमाव दोनों को बर्दास्त कर लेता है, प्राचीन काल से इसके जड़ों का उपयोग तेल निकालने, चटाइयाँ बनाने एवं औषधीय उपयोग होता रहा है, दक्षिण भारतीय राज्यों में खस के जड़ों की उत्पादन क्षमता ज्यादा है, लेकिन इस निकले तेल की कीमत कम मिलती है।
khas plant |
उत्तर भारत में उगने वाले खस के जड़ों की गुणवत्ता काफी अच्छी होती है तथा कीमत ज्यादा मिलती है, उत्तर भारत से उत्पादित जड़ों से तेल 14 से 18 घंटा में आसवन विधि द्वारा निकाला जा रहा है, उत्तर भारत से उत्पादित तेल की वर्तमान कीमत लगभग 10000/- से 18000/- रूपये प्रति किलोग्राम मिल सकती है।
विश्व बाजार में खस तेल की वर्तमान कीमत लगभग 25000/- रूपये किलोग्राम है, आधुनिक तकनीक से इसकी खेती द्वारा अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है, इस लेख में खस की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करें का उल्लेख किया गया है।
खस गर्म एवं तर जलवायु में अच्छी पनपती है, पहाड़ी इलाकों को छोड़कर अन्य सभी भागों में उपजाया जा सकता है, छायादार स्थानों में जड़ों की वृद्धि अधिक नहीं होती है।
इसकी खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं जैसे ऊसर भूमि, जलमग्न भूमि, क्षारीय मृदाऐं, उबड़-खाबड़, गड्ढेयुक्त क्षेत्र एवं बलुई भूमि में आसानी से उगाया जा सकता है, लेकिन भारी एवं मध्यम श्रेणी की मृदाएं जिसमें पोषक तत्वो की प्रचूर मात्रा हो एवं जलस्तर ऊँचा हो खस की सफलतापूर्वक खेती की जा सकती है, मध्यम विन्यास वाली मृदाओं में जड़ों की अच्छी वृद्धि होती है, किंतु चिकनी मृदाओं में जड़ों की खुदाई कठिन कार्य है, बलुई एवं बलुई दोमट मृदा में जड़ों की खुदाई पर अपेक्षाकृत कम खर्च आता है तथा जड़ें लम्बी गहराई तक जाती है।
खस का पौधा कठोर प्रवृत्ति का होने के कारण मामूली देखभाल एवं मृदा की तैयारी कर लगाया जा सकता है, भूमि में मौसमी खरपतवारों का प्रकोप नहीं हो, इसके लिए खरपतवारों एवं जड़ों के अवशेषों को हटाने हेतु 2 से 3 गहरी जुताई की आवश्यकता होती है।
उत्तर भारत में खस का प्रसारण 6 से 12 माह के मूढ़ों से किया जाना चाहिए, इन मूढों को 30 से 40 सेंटीमीटर ऊपर से काट लिया जाता है, बनाई गई कलमों या स्लिप में 2 से 3 कलमें होना चाहिए, कलमों को बनाने के बाद छाया में रखना चाहिए एवं सूखी पत्तियों को हटा देने से बीमारी फैलने की सम्भावना नहीं रहती हैं, नई प्रजातियाँ विकसित करने के लिए बीज से पौधे तैयार किये जाते हैं।
सिंचाई की व्यवस्था रहने पर खस की रोपाई अधिक सर्दी को छोड़ कर कभी भी की जा सकती है, उत्तरी भारत में जाड़ों में तापमान काफी गिर जाने के कारण पौधे या कलम सही ढंग से स्थापित नहीं हो पाते हैं, जिन स्थानों में सिंचाई की सही व्यवस्था नहीं है, खस की रोपाई वर्षा ऋतु में की जाती है, अच्छी गुणों से युक्त मृदाओं में कलमों को 60*60 सेंटीमीटर की दूरी पर एवं बेकार पड़ी एवं कमजोर मृदाओं में रोपाई 60*30 सेंटीमीटर पर करना उचित होता है।
मध्यम एवं उच्च उर्वरायुक्त मृदाओं में सामान्यतः खस बिना खाद एवं उर्वरक के उगाया जाता है, कम उर्वरायुक्त जमीन में नाइट्रोजन, फॉसफोरस, पोटास का 60:25:25 की दर से व्यवहार करने से जड़ों की अच्छी ऊपज होती है, नाइट्रोजन का उपयोग खंडित कर करें, खस स्थापन के प्रथम वर्ष में नाइट्रोजन का उपयोग दो बराबर भाग में करें।
खस तीव्र गति से बढ़ने वाला पौधा है, इसलिए खरपतवार को बढ़ने का मौका कम मिलता है, किंतु ऐसे क्षेत्र जहाँ पर खरपतवारों की सघनता है, वहाँ पर फावड़े या वीडर का प्रयोग किया जा सकता है, फसल के पूर्ण विकसित होने पर खरपतवार नियंत्रण की आवश्यकता नहीं रहती है।
खस की रोपाई के तत्काल बाद बेहतर पौध स्थापना हेतु सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है, पौधे एक माह में पूर्णतः स्थापित हो जाते हैं, तब ये पौधे साधारणत: मरते नहीं हैं, जड़ों के बेहतर बढ़वार के लिए शुष्क मौसम में सिंचाई देना लाभकर होता है।
खस बीमारी एवं कीट पतंगों के प्रति काफी सहनशील होते हैं, कभी-कभी पत्तियों पर काले धब्बे कवक कवुलेरिया ट्राईफोलाई के कारण होता है, किंतु हानि नहीं के बराबर होती है, शल्क कीट के प्रकोप पर मेटासिस्टोक्स 0.04 प्रतिशत का व्यवहार किया जाना चाहिए।
सामान्यत: सिमवृद्धि को छोड़कर अन्य प्रभेद 18 से 20 माह में खुदाई योग्य हो जाती हैं, सिमवृद्धि 12 माह में खुदाई योग्य हो सकती है, रोपाई के प्रथम वर्ष में तनों की 30 से 40 सेंटीमीटर ऊपर से पहली कटाई तथा खुदाई पूर्व एक कटाई अवश्य की जानी चाहिए, काटे गये ऊपरी भाग को चारे, ईंधन या झोपड़ियाँ बनाने के काम में लाया जाता है।
पूर्ण विकसित जड़ों की सर्दी के मौसम दिसम्बर से जनवरी माह में खुदाई कि जानी चाहिए, खुदाई के समय जमीन में हल्की नमी रहना आवश्यक है, खुदाई पश्चात् जड़ों से मिट्टी अलग होने के लिए खेत को दो से तीन दिन सूखने देना चाहिए, पूर्ण परिपक्व जड़ों से अच्छी गुणवत्ता का तेल प्राप्त होता हैं, जिसका विशिष्ट घनत्व एवं ऑप्टिकल रोटेशन ज्यादा होती है, आजकल जड़ों की खुदाई पर खर्च कम करने के लिए दो फारा कल्टिवेटर का उपयोग हो रहा है, विशिष्ठ गुणवत्ता के खुदाई यंत्र सीमैप, बाजारों में उपलब्ध हैं।
जड़ों से तेल निकालने में लगने वाला समय क्षेत्र की स्थिति के अनुसार लगता है, इसके आसवन के लिए क्लीभेजर उपकरण के सिद्धान्त पर कोहोबेसन आसवन संयंत्र विकसित की गयी है, जिसके द्वारा खस की अच्छी प्रजाति के आधार पर 1 से 2 प्रतिशत तक एसेन्सियल तेल निकाला गया है, स्टेनलेस स्टील से बने आसवन संयंत्र द्वारा उच्च गुणवत्ता का तेल प्राप्त होता है।
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