रिजका रबी में उगाई जाने वाली एक बहुवर्षीय फलीदार चारे की सिंचित फसल है, जो कि एक बार बोने पर लगभग तीन से चार वर्ष तक उपज देती है, इसकी जड़े भूमि में अधिक गहराई तक जाती है, इसमें सूखे के साथ ठण्ड एवं गर्मी सहने की क्षमता भी अधिक होती है, इसकी जड़ो में उपस्थित राइजोबियम जीवाणु वायुमण्डलीय नत्रजन का स्थिरीकरण कर भूमि की उर्वरा शक्ति को बढाते हैं।
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rijka ki kheti kaise kare |
रिजका पशु पालन के लिये एक पौष्टिक और लाभदायक चारा है, जिसमें प्रोटीन की मात्रा 15 प्रतिशत अधिक होती है, इसलिए इसको ज्वार, बाजरा, जई, जौ, सरसों, शलजम आदि के साथ मिलाकर जानवरों को खिलाना चाहिये, घास कुल की फसलों के चारे में मिलाकर इसको अच्छा व साईलेज बनाया जाता है।
उपयुक्त जलवायु
रिजका की खेती शुष्क प्रदेशों में, जहाँ सिंचाई के साधन उपलब्ध हों, सरलता से की जा सकती है, 40 इंच से अधिक वर्षा तथा कम ताप का प्रभाव भी यह अच्छी तरह सहन कर सकता है, इसके फूलने फलने के लिए लगभग 27 डिग्री सेल्सियस ताप अधिक उपयुक्त है।
भूमि चयन
रिजका के लिये अच्छे जल निकास वाली, उपजाऊ जल धारण क्षमता युक्त गहरी दोमट मिटटी अच्छी रहती है, इसकी खेती रेतीली दोमट से चिकनी मिट्टी में भी की जा सकती है, यह क्षारीयता (सोडियम) एवं जला क्रान्ति वाली अवस्था को सहन नहीं कर सकती है, कैल्शियम, फॉस्फोरस एवं पोटाश की प्रचुर मात्रा वाली भूमि में रिजका की फसल बहुत अच्छी होती है।
खेत की तैयारी
रिजका की बुवाई के लिये एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करके 3 से 4 बार हैरो चलाकर अथवा देशी हल चला खेत को भुरभुरा और समतल कर लेना चाहिये, आवश्यकतानुसार पाटा भी चलाया जा सकता है, क्यारियां समतल बनायें जिससे कि सिंचाई आसानी से हो सकें, अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 20 से 25 टन प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई के करीब एक माह पूर्व खेत मे डालकर, खेत तैयार करें।
उन्नत किस्में
हमारे देश की परिस्थितियों में आनंद-2, एलएलसी-3 वार्षिक तथा टाइप-9 व आरएल-88 बहुवर्षीय किस्में उपयुक्त है, अन्य किस्में सिरसा-8, सिरसा-9, टाइप-8, इगफी-244, एनडीआरआई सलेक्शन-1 और एलएलसी-5 आदि प्रमुख है।
बीज की मात्रा
रिजका की अकेली फसल के लिये छिटकवां विधि से 20 से 25 किलोग्राम बीज की प्रति हैक्टेयर आवश्यकता होती है, रिजका की बुवाई 20 से 25 सेन्टीमीटर की दूरी की लाइनों में 2 से 3 सेन्टीमीटर की गहराई पर सीड ड्रिल द्वारा भी की जा सकती है, इस विधि में लगभग 15 किलोग्राम बीज की प्रति हैक्टेयर आवश्यकता होती है, शुरू की कटाईयों में अधिक चारा उत्पादन प्राप्त करने के लिये करीब दो किलोग्राम सरसों या 12 किलोग्राम मैथी या 2.5 किलोग्राम चाईनीज कैबेज या जापानी सरसों को रिजका के बीज के साथ मिलाकर बुवाई करनी चाहिये।
बीज उपचार
रिजका के बीजों को राइजोबिया कल्चर से उपचारित करना चाहिये, कल्चर उपलब्ध न होने पर गत वर्ष जिस खेत में रिजका बोया गया हो, उस खेत की उपरी पर्त से 4 क्विंटल मिट्टी लेकर प्रति हैक्टेयर की दर से अन्तिम जुताई करते समय खेत में मिला देना चाहिये, एक हैक्टेयर के बीज के उपचार के लिये 250 ग्राम से 300 ग्राम गुड़ का, आवश्यकतानुसार पानी लेकर, गरम करके घोल बनायें तथा घोल के ठण्डा होने पर इसमें 600 ग्राम (तीन पैकेट) शाकाणु संवर्ध मिलायें, इस मिश्रण में एक हैक्टेयर में बोये जाने वाले बीज को इस प्रकार मिलाये कि सभी बीजों पर इसकी परत एकसार चढ जायें, इसके बाद इन बीजों को छाया में सुखा कर शीघ्र बोने के काम में लेवे।
बुवाई का समय
रिजका की बुवाई के लिये अक्टूबर से नवम्बर मध्य तक का समय उपयुक्त है, इसके बीजों का छिलका कठोर होता है, इसलिये बीजों को 6 से 8 घन्टे तक पानी में भिगो कर तथा बाद में कल्चर मिलाकर बुवाई करें, ज्यादातर किसान रिजका की छिटकवां विधि से बुवाई करते हैं, इस विधि में करीब 20 से 25 किलो बीज, प्रति हैक्टेयर की दर से तैयार खेत में छिटक कर कल्टी वेटर या दातंली से हल्का सा मिट्टी में मिलाकर सिंचाई कर दें, गर्मी में पानी की बचत एवं बरसात में उत्तम जल निकास के लिये 30 सेन्टीमीटर उंची मेड़ों पर इसकी बुवाई करें।
उर्वरक प्रयोग
फलीदार फसल होने के कारण रिजका के पौधे की जड़ो में बैक्टीरिया द्वारा नत्रजन का संचय किया जाता है, इसलिये इस फसल को अधिक नत्रजन की आवश्यकता नहीं होती है, परन्तु प्रारम्भिक अवस्था में जड़ गांठ नहीं बनने के कारण नत्रजन संचय नहीं होता है, इसलिये प्रारम्भिक बढवार हेतु फसल को शुरू में नत्रजन की आवश्यकता होती है।
रिजका की फसल के लिये जैविक खाद के अतिरिक्त 20 से 30 किलोग्राम नत्रजन, 100 किलोग्राम फॉसफोरस और 30 किलोग्राम पोटाश की प्रति हैक्टेयर आवश्यकता होती है, बुवाई के समय फॉस्फोरस उर्वरक की पूरी एवं नत्रजन की आधी मात्रा देवें, नत्रजन की शेष आधी मात्रा तीन भागो में बांटकर प्रत्येक दूसरी कटाई के बाद छिटक कर तुरन्त सिंचाई करें।
बहुवर्षीय फसल में प्रति वर्ष अक्टूबर माह में 40 किलो फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से डालना लाभदायक होता है, इसमें भी प्रत्येक दूसरी कटाई के बाद 15 से 20 किलोग्राम नत्रजन प्रति हैक्टेयर सिंचाई के साथ दें।
सिंचाई व जल निकास
रिजका की जड़े अधिक लम्बी होने के कारण गहराई पर उपलब्ध पानी को भी ले सकती है, अतः इसको बरसीम की अपेक्षा सिंचाई की कम आवश्यकता पड़ती है, पौधों के निकल आने पर एक हल्की सिंचाई करें, बुवाई के बाद अगली दो सिंचाईया 5 से 7 दिन के अन्तर पर करें, जिससे सभी बीज उग सकें।
हल्की मिट्टी वाले क्षेत्रों में अगली सिंचाईयां सर्दियों में 10 से 12 दिन के अन्तर पर, बसन्त ऋतु में 7 से 8 दिन व गर्मियों में 5 से 7 दिन के अन्तर पर करें, भारी मिट्टी वाले क्षेत्रों में गीष्म ऋतु में 10 से 15 दिन के अन्तर पर, बसन्त ऋतु में 15 से 20 दिन एवं शरद ऋतु में 20 से 25 दिन के अन्तर पर सिंचाई करनी चाहिये।
वर्षा ऋतु में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, परन्तु आवश्यकता पड़ने पर सिंचाई जरूर करें, रिजका वाले खेत में पानी का निकास अच्छा होना नितान्त आवश्यक है, जिन स्थानों पर जल निकास का ठीक प्रबन्ध नहीं है अथवा पानी का तल काफी उंचा है, वहां वर्षा ऋतु मे रिजका की फसल नष्ट हो सकती है।
खरपतवार नियन्त्रण
बोने से पूर्व या अकुंरण के बाद निराई करके खरपतवार निकाल देना चाहिये, खरपतवारों पर नियन्त्रण पाने के लिये पहली एक दो कटाई जल्दी करें, लेकिन पहली कटाई 50 दिन से पहले न करें, कतारों में बोई गई बहुवर्षीय फसल में वर्षा ऋतु एवं इसके बाद 2 से 3 निराई गुड़ाई करना लाभदायक है, रिजका में अमरबेल मुख्य समस्या है, इसलिये रिजका के बीज अमरबेल के बीजों से मुक्त होने चाहिये, रिजका का प्रमाणित बीज ही बोयें, जिस खेत में अमरबेल का प्रकोप हो उस खेत में रिजका न बोयें।
बीज को बोने से पूर्व 2 प्रतिशत नमक के घोल में डुबोकर पांच मिनट तक हिलाये तथा उपर तैरते बीजों एवं कचरे को निकाल दें, इसके बाद नमक के घोल से निकाल कर बीजों को साफ पानी से तीन चार बार अच्छी तरह से धोकर कल्चर से उपचारित करके बोयें, फिर भी अमरबेल का प्रकोप हो तो प्रभवित पौधे को अमरबेल सहित काटकर नष्ट कर दें।
रिजका की फसल में अमरबेल का नियन्त्रण करने के लिये प्रभावित हिस्से में 0.1 से 0.2 प्रतिशत पैराक्वाट का घोल बनाकर पहली या दूसरी कटाई के तुरन्त बाद छिड़काव करें, एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिये 1000 लीटर घोल की आवश्यकता होगी, इससे सभी खरपतवार नष्ट हो जायेंगें और रिजका पुर्नवृद्वि कर एक साथ अच्छी फसल के रूप में वापस आ जायेगा, इसके बावजूद भी अगर कहीं-कहीं अमरबेल के पौधे फिर से आ जायें, तो उन पर भी पैराक्वाट के घोल का छिड़काव करें, ध्यान रहे कि अमर बेल के कटे हुए टुकड़े दूसरी जगह न फैल जायें।
पौध संरक्षण
रिजका में मृदु रोमिल आसिता रोग का प्रकोप शरद ऋतु में अधिक नमी की अवस्था में होता है, पत्तियां खराब हो जाती है, जैसे ही रोग का आक्रमण होना प्रारम्भ हो 0.2 प्रतिशत मैन्कोजेब के घोल का छिड़काव 10 से 15 दिन के अन्तर पर 2 से 3 बार करें, छिड़काव के बाद फसल को 15 से 20 दिन तक पशुओं को नहीं खिलाना चाहिये।
रिजका में मोयला का प्रकोप मार्च से अप्रैल में होता है, इस कीट की रोकथाम के लिए 1.25 लीटर मैलाथियान 50 ई सी का प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
फसल कटाई
इस फसल से चारा दिसम्बर से जुलाई तक मिलता है, पहली कटाई बुवाई के 55 से 60 दिन बाद तथा अगली कटाईयां पौधे की बढवार के अनुसार 30 से 35 दिन के अन्तर पर करें, अधिक उपज लेने के लिए मार्च के बाद वाली कटाईयां 10 प्रतिशत फूल आने पर ही की जानी चाहिए, कटाई के बाद अच्छी पुनर्वद्वि के लिए कटाई की ऊंचाई 5 सेन्टीमीटर तक रखनी चाहिए, जिससे मुकट भाग पर पाई जाने वाली कलियां भी बिना क्षति के बढ सकें।
पैदावार
रिजका की 7 से 8 कटाईयों से 700 से 900 क्विंटल हरा चारा एवं 140 से 160 क्विंटल सूखा चारा प्रति हैक्टेयर प्राप्त किया जा सकता है।
बीज उत्पादन के लिए फसल को जनवरी के बाद काटना बंद कर दे, रिजका में परागण मधुमक्खियों द्वारा होता है, इसलिए अधिक बीज उत्पादन प्राप्त करने हेतु मधुमक्खी पालने वाले बक्सों की आवश्यकता होती है, बीज मई में तैयार होता है एवं बीज की औसत उपज 3 से 6 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है।
इसका अधिक चारा खिलाने से आफरा हो जाता है, इसलिये पशुओं को पहले थोड़ा-थोड़ा चारा खिलाना चाहिये, खरपतावर नियन्त्रण के लिये पूरा ध्यान रखना चाहिये, बरसात का जल खेत में भरा नहीं रहना चाहिये।
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