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राई का दाना छोटा व काला होता है, राई लाल और काले दानों में अक्सर देखने को मिलती है, पर विदेश में सफ़ेद रंगों की राई भी मिलती हैं और राई के दाने सर्सू के दानों से काफी मिलते हैं, पर बस राई के दाने सरसों के दानों में से थोड़ी छोटी होती है, राई की फसल ग्रीष्म ऋतु में पककर तैयार होती है, राई की फसल करने का उपयुक्त समय सितम्बर का अंतिम सप्ताह तथा अक्टूबर में प्रथम सप्ताह है, बुवाई देशी हल के पीछे उथले (3-4 सेंमी गहरे) कूंड़ों में 40 सेंमी की दूरी पर करना चाहिए और बुवाई के बाद बीजों को ढ़कने के लिए हल्का पाटा लगाकर फेर देना चाहिए, असिंचित दशा में बुवाई का उपयुक्त समय है, सितम्बर का द्वितीय सप्ताह से है और राई की बुवाई करने पर महूँ का प्रकोप एवं अन्यक कीटों एवं बीमारियां की सम्भावना अधिक बनी रहती है।
rye ki kheti kaise kare |
अगर उर्वरक प्रयोग मिट्टी परीक्षणों के आधारभूत पर किया जायें, सिंचित क्षेत्रों में नत्रजन 125 किग्रा, फास्फेट 65 किग्रा एवं पोटाश 65 किग्रा प्रीति हेक्टेयर की दर से प्रयोगात्मक करने से अच्छी उपजाऊ फसल प्राप्त होती है और फास्फोरट का प्रयोग सिंगिल सुपर फास्फेटिक के रूपों में अधिकतर लाभदायक होता हैं, क्योंकि इससे और सल्फर की उपलब्धि भी हो जाती है, पर सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोगात्मक न किया जाएं, तो गंधक की उपलबधता को सुनिश्चित करने के लिए 45 किग्रा हेक्टेयर की दर से गंधक का प्रयोग करना चाहिए तथा असिंचित क्षेत्रों में उपयुक्त उर्वरकों की आधी मात्रा बेसल ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग की जाये, यदि डी.ए.पी. का प्रयोग किया जाता है, तो इसके साथ बुवाई के समय 205 किग्रा जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना फसल के लिए लाभदायक होता है।
अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 55 कुन्टल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद्य का प्रयोग करना चाहिए और सिंचित क्षेत्रों में नत्रजन की आधी मात्राओं व फास्फेटिक एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय कूंड़ों में बीज के 1-3 सेमी और यह नीचे नाई या चोंग से दिया जाना चाहिए और नत्रजन की शेष मात्रा पहली सिंचाई बुवाई के 28 से 30 दिनों के बाद टापड्रेसिंग में डाली जाये।
राई बुवाई के 14 से 18 दिन के अन्दर घने पौधों को निकालकर उनकी आपसी दूरी 15 सेमी कर देना आवश्यकतानुसार है, खर-पतवार नष्ट-भ्रष्ट करने के लिए एक निराई-गुड़ाई और सिंचाई के पहले और दूसरी पहली सिंचाई के बाद करनी चाहिए और रसायन के द्वारा खर-पतवार नियंत्रित करनें पर बुवाई से पूर्ण फ्लूक्लोरोलिन 50 ई.सी की 2.4 लीटर प्रति 850 से 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर भली-भांति हैलो को चला कर मिटटी मेंं मिलाकर या पैन्डीमेथलीन 40 ईसी 3.4 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के दो तीन दिन के अन्दर 850 से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
राई की फसल की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए आपको मृदा में पर्याप्त नमी बनाये रखना आवश्यक है और सिंचित अवस्थाओं में दो सिंचाई करें, पहेली सिंचाई फ़ूल आने के पूर्व तथा दूसरी सिंचाई फलियों के लगने के समय कर सकते हैं।
आरा मक्खी :- इस कीटाणुओं की सूड़िया काले रंगों की होती है, जो कि पत्तियों को किनारों से पत्तियों में छेद कर तेजी से खाती है और तीव्र प्रकोपों की दशा में पूरा पौधा पत्ती विहीन हो जाता है।
माहूँ :- इस कीटाणु कीड़ों की शिशु एवं प्रौढ़ पीलापन लिये हुए हरे रंगों के होते हैं, जो कि पौधों के कोमल तना, पत्तियों, फूलों और नये फलि के रस चूसकर उन्हें कमज़ोर कर देते है, जिसको माहूँ मधुस्राव कहा करते है, जिस पर काली फफूँद जैसी उग आती है।
पत्ती सुरंगक कीट :- इस कीट की सूँडी पत्तियों में सुरंग बनाकर हरे भाग खा कर पत्तियों को नष्ट कर देती है और जिसके फलस्वरूप पत्तियों में अनियमित आकार की सफेद रंग की रेखाये बन जाती है।
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