तम्बाकू की खेती नगदी फसल के रूप में की जाती है, इसकी खेती से किसान भाइयों को कम खर्च में अधिक फायदा होता है, तम्बाकू का उपयोग स्वास्थ के लिए हानिकारक होता है, इसको धीमा जहर भी कहा जाता है, तम्बाकू को सुखाकर इसका इस्तेमाल धुँआ और धुँआ रहित नशे की चीजों में किया जाता है, तम्बाकू से सिगरेट, बीडी, सिगार, पान मसालों, जर्दा और खैनी जैसी और भी बहुत सारी चीजें बनाई जाती है, जिनका वर्तमान में लगातार उपयोग बढ़ रहा है।
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tambaku ki kheti kaise kare |
तम्बाकू की फसल कम मेहनत वाली फसल हैं, इसकी फसल में किसान भाइयों का ज्यादा खर्च भी नही आता और इसको बेचने में भी काफी आसानी होती है, जिस कारण किसान भाई इसे उगाना ज्यादा पसंद करते हैं, भारत में इसकी खेती लगभग सभी जगह पर की जा रही है।
इसकी खेती के लिए लाल दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है, तम्बाकू की खेती के लिए अधिक बारिश की भी जरूरत नही होती है, इसकी पैदावार सर्दियों के मौसम में की जाती है, लेकिन सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसकी खेती के लिए लाभदायक नही होता है।
अगर आप भी तम्बाकू की खेती के द्वारा अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं, तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं।
उपयुक्त भूमि
तम्बाकू की खेती के लिए लाल दोमट और हलकी भुरभुरी मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है, इसकी खेती के लिए मिट्टी में पानी भराव नही होना चाहिए, पानी भराव होने पर इसके पौधे खराब हो जाते हैं, जिससे पैदावार पर फर्क देखने को मिलता है, इसकी खेती के लिए 6 से 8 तक पी.एच. मान उपयुक्त होता है।
जलवायु और तापमान
तम्बाकू की खेती के लिए ठंडी और शुष्क जलवायु की जरूरत होती है, इसकी खेती के लिए अधिकतम 100 सेंटीमीटर बारिश काफी होती है, इसके पौधे को विकास करने के लिए ठंड की ज्यादा जरूरत होती है, जबकि पौधे को पकने के दौरान तेज़ धूप की आवश्यकता होती है, इसकी खेती समुद्र तल से लगभग 1800 मीटर की ऊंचाई पर की जाती है।
इसके पौधे को अंकुरण के लिए 15 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है और विकास करने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की आवश्यकता होती है, लेकिन जब पौधे की पत्तियां पकती हैं, उस टाइम इसे उच्च तापमान और तेज़ धूप की जरूरत होती है।
उन्नत किस्में
तम्बाकू की वर्तमान में कई सारी किस्में हैं, जिन्हें मुख्य रूप से दो प्रजातियों में बांटा गया है, जिन्हें सिगरेट, सिगार और हुक्का तम्बाकू बनाने के लिए इनमें पाई जाने वाली निकोटिन की मात्रा के आधार पर तैयार किया गया है।
निकोटिना टुवैकम
भारत में सबसे ज्यादा इस प्रजाति की किस्मों को उगाया जाता है, इस प्रजाति की किस्मों के पौधे लम्बे और पत्ते चौड़े पाए जाते हैं, इसके पौधों पर आने वाले फूलों का रंग गुलाबी होता है, इसकी उपज भी ज्यादा प्राप्त होती है, इस प्रजाति की किस्मों का सिगरेट, सिगार, हुक्का और बीडी बनाने में ज्यादा उपयोग किया जाता है, जिनमें एमपी 220, टाइप 23, टाइप 49, टाइप 238, पटुवा, फर्रुखाबाद लोकल, मोतीहारी, कलकतिया, पीएन 28, एनपीएस 219, पटियाली, सी 302 लकडा, धनादयी, कनकप्रभा, सीटीआरआई स्पेशल, जीएसएच 3,एनपीएस 2116, चैथन, हरिसन स्पेशल, वर्जिनिया गोल्ड और जैश्री जैसे बहुत सारी किस्में हैं।
निकोटीन रस्टिका
इस प्रजाति की किस्मों के पौधे छोटे और पत्तियां रुखी और भारी होती हैं, इस प्रजाति की किस्मों में सुगंध ज्यादा आती है, इनका रंग सुखाने के बाद काला दिखाई देने लगता हैं, इस प्रजाति की किस्मों को ठंड की ज्यादा जरूरत होती है, इस प्रजाति की किस्मों का उपयोग खाने और सूंघने में किया जाता हैं, इसके अलावा इनका उपयोग हुक्के में भी कर सकते हैं, जिनमे पीटी 76, हरी बंडी, कोइनी, सुमित्रा, गंडक बहार, पीएन 70, एनपी 35, प्रभात, रंगपुर, ह्यइट वर्ले, भाग्य लक्ष्मी, सोना और डीजी 3 जैसी और भी किस्में शामिल हैं।
खेत की तैयारी
तम्बाकू की खेती के लिए शुरुआत में खेत की दो से तीन जुताई कर उसे खुला छोड़ दें, उसके बाद खेत में उर्वरक उचित मात्रा में डालकर उसकी जुताई कर दें, जुताई करने के बाद खेत में पानी चला दें, इससे खेत में नमी की मात्रा बन जाती है, पानी देने के कुछ दिन बाद जब जमीन उपर से सुखी हुई दिखाई देने लगे और खेत में खरपतवार बहार निकल आयें, तब खेत की जुताई कर उसमें पाटा लगा दें।
पौध तैयार करना
तम्बाकू की खेती के लिए बीज को सीधा खेतों में नही लगाया जाता है, पहले इसके बीज से नर्सरी में पौध तैयार की जाती हैं, नर्सरी में इसकी पौध एक से डेढ़ महीने पहले तैयार की जाती है, उसके बाद उन्हें उखाड़कर खेतों में लगया जाता है।
इसकी पौध तैयार करने के लिए शुरुआत में नर्सरी में दो गुना पांच मीटर की क्यारियां तैयार करें, क्यारी तैयार करने के बाद उनमें पुरानी गोबर की खाद डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें, खाद को मिलाने के बाद क्यारियों में तम्बाकू के बीज को छिडककर उसे भी मिट्टी में मिला दें और उसमें हजारे के माध्यम से पानी दे, बीज रोपाई के बाद क्यारियों को पुलाव से ढक दें और जब बीज अंकुरित हो जाएँ तब पुलाव को हटा दें, पौध बनाने के लिए नर्सरी में बीज की रोपाई के एक से डेढ़ महीने अगस्त से सितम्बर माह तक की जानी चाहिए।
पौध की रोपाई का तरीका और टाइम
तम्बाकू के पौधों की रोपाई प्रजातियों के आधार पर अलग-अलग टाइम पर की जाती है, सूंघने वाली किस्मों को दिसम्बर माह के शुरुआत तक लगा देना चाहिए, जबकि सिगरेट और सिगार बनाई जाने वाली किस्मों को अक्टूबर के बाद दिसम्बर तक कभी भी लगा सकते हैं।
सेंटीमीटर की गहराई में लगाना चाहिए और पौध की रोपाई शाम के वक्त करना सबसे अच्छा होता है, इससे पौधे अधिक मात्रा में अंकुरित होते हैं।
पौधों की सिंचाई
तम्बाकू के पौधों की पहली सिंचाई पौध लगाने के तुरंत बाद कर देनी चाहिए, पहली सिंचाई के बाद इसके पौधों की हर 15 दिन पर हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए, जिससे पौधा अच्छे से विकास करता है, जब इसका पौधा पककर कटाई के लिए तैयार हो जाता है, तब इसकी सिंचाई लगभग 15 से 20 दिन पहले बंद कर देनी चाहिए।
उर्वरक की मात्रा
तम्बाकू के पौधे को उर्वरक की सामान्य आवश्यकता होती है, शुरुआत में खेत की जुताई के वक्त खेत में लगभग 10 गाडी प्रति एकड़ के हिसाब से पुरानी गोबर की खाद डालकर उसे मिट्टी में मिला दें, इसके अलावा रासायनिक खाद के इस्तेमाल के लिए नाइट्रोजन 80 किलो, फॉस्फेट 150 किलो, पोटाश 45 किलो और कैल्शियम 86 किलो को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पलेव करने के बाद खेत की आखिरी जुताई से पहले खेत में छिडक दें।
खरपतवार नियंत्रण
तम्बाकू की खेती में शुरुआत में खरपतवार ना होने पर पौधे अच्छे से विकास करते हैं, इसलिए तम्बाकू की खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए पौध रोपाई के बाद दो से तीन बार नीलाई-गुड़ाई कर देनी चाहिए, इसकी पहली गुड़ाई पौध रोपाई के लगभग 20 से 25 दिन बाद करनी चाहिए, उसके बाद बाकी की गुड़ाई 15 से 20 दिन के अंतराल में कर दें।
पौधे की देखभाल
तम्बाकू की खेती बीज और तम्बाकू प्राप्त करने के लिए की जाती है, इसके लिए पौधे की उचित देखभाल करने की आवश्यकता होती है, तम्बाकू अधिक मात्रा में प्राप्त करने के लिए पौधों पर बनने वाले डोडों (फूल की कलियाँ) को तोड़ देना चाहिए, इससे पौधे में साइड से शाखाएं निकलती है, इन शाखाओं पर भी बनने वाले डोडों को तोड़ देना चाहिए, जिससे पैदावार में वृद्धि देखने को मिलती है, लेकिन अगर इसकी खेती बीज बनाने के लिए की जाये, तो डोडों को नही तोडना चाहिए।
पौधों पर लगने वाले रोग और रोकथाम
तम्बाकू के पौधे पर कई तरह के रोग लगते हैं, जो इसकी पत्तियों को नुकसान पहुँचाते हैं, जिसका असर इसकी पैदावार पर पड़ता है :-
पर्ण चित्ती
तम्बाकू के पौधों पर पर्ण चित्ती का रोग ज्यादातर सर्दियों में तेज़ ठंड होने और शीतलहर चलने के कारण लगता है, इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर भूरे रंग की चित्तियाँ दिखाई देने लगती है, जिनके बीच में कुछ दिनों बाद छेद बनने लगते हैं, जिसकी वजह से पैदावार कम होती है, इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर बेनोमिल 50 डब्लू.पी. की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए।
ठोकरा परपोषी
ठोकरा परपोषी एक तरह की खरपतवार होती है, लेकिन ये इसके पौधों को ज्यादा नुकसान पहुँचाती है, इसकी वजह से पौधे का विकास रुक जाता है और पककर तैयार होने पर पौधे का वजन कम हो जाता है, इसकी रोकथाम के लिए ठोकरे के खेत में दिखाई देने पर तुरंत उखाड़कर खेत के बहार दबा दें, ठोकरा सफ़ेद रंग का पौधा होता है, जिस पर नीले रंग के फूल दिखाई देते हैं।
तना छेदक
तम्बाकू के पौधों पर तना छेदक का रोग किट की वजह से फैलता है, इसके किट का लार्वा पौधे के तने को अंदर से खाकर उसे खोखला कर देता है, जिससे पौधे जल्द ही सुखकर नष्ट हो जाता है, इस रोग के लगने पर पौधा शुरुआत में मुरझाने लगता है और पत्तियां पीली दिखाई देने लगती है, इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर प्रोफेनोफॉस या कार्बेनिल का छिडकाव करना चाहिए।
सुंडी रोग
सुंडी को इल्ली और गिडार के नाम से भी जाना जाता है, इस रोग का लार्वा पौधे के कोमल भागों को खाकर पैदावार कम कर देते हैं, इसका रंग लाल, हरा, काला और भी कई तरह का होता है, इसकी लम्बाई लगभग एक सेंटीमीटर के आसपास पाई जाती है, इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर प्रोफेनोफॉस या पायरीफास की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए।
पौधों की कटाई
तम्बाकू के पौधों की कटाई पौधे के हरे रूप में ही की जाती है, इसकी फसल 120 से 130 दिन में पककर तैयार हो जाती है, जिसके बाद जब इसके नीचे के पत्ते सूखने लगे और कठोर हो जाएँ, तब इनकी कटाई कर लेनी चाहिए, इसके पौधों की कटाई जड़ के पास से करनी चाहिए, सूंघने और खाने वाली तम्बाकू के रूप में सिर्फ इसकी पत्तियों का इस्तेमाल होता है, जबकि सिगरेट, हुक्का, बीड़ी और सिगार में इसे डंठल सहित इस्तेमाल किया जाता है।
तम्बाकू तैयार करना
तम्बाकू को सडा गलाकर तैयार किया जाता है, इसके लिए तम्बाकू को काटकर उसे दो से तीन दिन तक खेत में सुखाया जाता है, उसके बाद उन्हें एक जगह एकत्रित कर कुछ दिन के लिए ढक दिया जाता है या मिट्टी में दबा देते हैं, सुखाने के दौरान इसके पौधों को पलटते रहते है, सुखाने के वक्त इसके पौधों में नमी और सफेदी जितनी ज्यादा आती है, तम्बाकू उतनी ही अच्छी बनती है, सुखने के बाद इसके पौधों की कटाई कर तैयार कर लिया जाता है।
पैदावार और लाभ
तम्बाकू की पैदावार को बेचने में ज्यादा परेशानी नही आती है, क्योंकि इसकी फसल खेतों से ही बिक जाती है, जिन्हें बड़े व्यापारी तैयार होने के तुरंत बाद खरीद लेते हैं, तम्बाकू के एक एकड़ खेत की पैदावार को डेढ़ से दो लाख के हिसाब से व्यापारी खरीदते हैं, जिससे किसान भाई तीन से चार महीने में एक एकड़ से एक से डेढ़ लाख तक की शुद्ध कमाई कर लेते हैं।
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