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गिलकी एक लतादार सब्जी है, जिसकी खेती मुख्य रूप से नगदी फसल के रूप में होती है, इसका पौधा बेल के रूप में फैलता है, जिस पर पीले रंग के फूल आते हैं, इसके फलों का ज्यादातर उपयोग सब्जी बनाने में होता है, इस हरी सब्जी को खाने से शरीर में लौह तत्व की कमी पूरी होती है, बाजार में इन दिनों नेनुआ की मांग काफी बढ़ जाती है, इसलिए कई किसान इसकी खेती करने की तैयारियों में भी जुटे होंगे, किसान भाइयों को बता दें कि इसकी उन्नत खेती जितनी जलवायु, मिट्टी, बुवाई, सिंचाई, रोग प्रंबध आदि पर निर्भर होती है, साथ ही उन्नत किस्मों पर भी निर्भर होती है, आइए आपको नेनुआ की 4 प्रचलित किस्मों के बारे में बताते हैं।
गिलकी की खेती |
नेनुआ की इन 4 किस्मों को भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (IIVR) द्वारा विकसित किया गया है, जिसमें खनिज तत्वों की भरपूर मात्रा पाई जाती है, किसान बहुत कम लागत में इस किस्म की बुवाई कर सकते हैं, यह उन्हें अन्य किस्मों के मुकाबले लगभग 20 से 25 प्रतिशत अधिक उपज देगी, बता दें कि नेनुआ की रक्षिता और श्रेया किस्म राष्ट्रीय स्तर पर भी उपलब्ध है, तो वहीं सौम्या और ज्योति किस्मों से कई राज्यों के किसान खेती कर रहे हैं।
इन किस्मों में किसी तरह की रोग लगने का खतरा बहुत कम होता है, यह प्रतिकूल परिस्थितियां सहन करने की अधिक क्षमता रखती हैं, इसलिए किसान को इसकी खेती में कीटनाशक की आवश्कयता भी नहीं पड़ती है, इसका रंग और आकार एक बराबर होता है, इसकी वजह से बाजार में इसका मूल्य बहुत अच्छा मिलता है।
इसके नर और मादा फूल को शाम में ही रुई की पतली परत से ढक देना चाहिए, अगली सुबह नर के फूल को तोड़कर मादा फूल में फिर रुई से ढक दें, ध्यान दें कि इसमें मधुमक्खी न घुस पाए, इस तरह लगभग 50 दिन में नेनुआ तैयार हो जाएगा, जिसे सुखाकर बीज निकाल सकते हैं, इस तरह ही इन किस्मों का बीज तैयार किया जाता है।
नेनुआ की ये किस्में कम लागत में बोई जाने वाली हैं, इन प्रचलित किस्मों से अधिक गुणवत्तायुक्त सब्जी का उत्पादन किया जा सकता है, जिससे किसानों की आमदनी भी बढ़ सकती है, बता दें कि इन किस्मों का अधिक मात्रा में बीज उत्पादन कर किसानों को उपलब्ध कराया जा रहा है, किसान इन किस्मों को पाने के लिए स्थानीय कृषि विभाग या निजी कंपनी से संपर्क कर सकते हैं।
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