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लहसुन एक नगदी फसल है, इसकी खेती पूरे भारतवर्ष में की जाती है, लहसुन का उपयोग मसालों के अतिरिक्त औषधि के रूप में जैसे अपच, फेफड़ो की बीमारियों, रक्तचाप, दमा आदि में होता है, इसके कन्द में अनेक छोटे-छोटे कन्द होते हैं, जो जवा कहलाते हैं और एक सफेद या गुलाबी पतली झीली से लैंकी होती है।
lahsun ki kheti |
लहसुन की खेती मुख्यतः रबी मौसम में होती हैं, क्योंकि अत्यन्त गर्म और लम्बे दिन वाला समय इसके कन्दों की बढ़वार के लिए उपयुक्त नहीं होता है, ऐसी जगह जहाँ न तो बहुत गर्मी हो और न बहुत ठण्डा हो, लहसुन की खेती के लिए उपयुक्त है।
इसकी किस्म को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया गया है, पहले वर्ग के लहसुन में केवल एक गांठ होती है और जवें नहीं होती हैं, इसका प्रयोग केवल औषधि के रूप में होता हैं, दूसरे वर्ग के लहसुन में एक से अधिक जवें होती हैं।
जामुना सफेद (जी-1) - इस किस्म के जवें गत्रा होता है, गांठ का रंग उजला एवं एक गांठ में 28 से 30 जवें होते हैं, यह किस्म 155 से 160 दिन में तैयार हो जाती है, इसकी ऊपज क्षमता 150 से 180 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, यह किस्म परपल ब्लाच रोग से अवरोधी है।
एग्रोफाउण्ड सफेद - इस किस्म के रंग उजला होता है तथा प्रति गांठ 20 से 25 जवें होते हैं, इसकी ऊपज क्षमता 130 से 140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, इस किस्म को तैयार होने में 160 से 165 दिन लगता है, यह किस्म परपल ब्लॉच से अवरोधी है।
पंजाब लहसुन - इसके गांठ तथा जवा उजले रंग का होता है, इसकी ऊपज क्षमता 90 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
लहसुन (56-4) - इसके गांठ लाल रंग का होता है, इसके प्रत्येक गांठ में 25 से 35 जवें होते हैं, यह 150 से 160 दिन में तैयार हो जाती है, जबकि इसकी औसत ऊपज 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
जमुना सफेद-2 (जी. 50) - इसकी ऊपज क्षमता 130 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, इस किस्म को तैयार होने में 160 से 170 दिन का समय लगता है, इसके गांठ में 18 से 20 जवा होते हैं तथा गांठ ठोस और उजले रंग का होता है।
जमुना सफेद-3 (जी-282) - इसके बल्व सफेद बड़े आकार एवं ठोस होते हैं, प्रत्येक जवा 04 से 105 सेमी. मोटाई होता है, एक जवा 25 से 28 ग्राम वजन का होता है, जवा का रंग सफेद तथा गूदा क्रीम रंग का होता है, 15 से 18 जवा प्रति गांठ (शल्क) पाये जाते हैं, यह प्रजाति 140 से 150 दिनों में तैयार हो जाती है, इसकी पैदावार 175 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
एग्रोफाउण्ड पार्ववती - इसके गांठ बड़े आकार तथा क्रिमी उजला रंग का होता है, इसके प्रति गांठ 10 से 16 जवां होता है, इस किस्म को तैयार होने में 160 से 165 दिन का समय लगता है, जबकि इसकी ऊपज क्षमता 175 से 225 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है।
लहसुन की खेती सभी प्रकार के जीवांशयुक्त भूमि में किया जा सकता है, लेकिन अधिक ऊपज के लिये जीवांशयुक्त दोमट भूमि जिसमें जल निकास की व्यवस्था हो सबसे उपयुक्त होता है, भूमि को 4 से 5 बार गहरी जुताई 10 से 15 सेमी कर एवं पाटा लगाकर मिट्टी को भूरभूरी बना लेना चाहिए, आखिरी जुताई से तीन सप्ताह पूर्व कम्पोस्ट या सड़ी गोबर की खाद मिला लें।
कम्पोस्ट या गोबर खाद का प्रयोग रोपाई/बोआई से 15 से 20 दिन पहले डालकर जुताई करना चाहिए, नेत्रजन के मात्रा को तीन बराबर भाग में बाँट कर एक भाग नेत्रजन एवं फास्फोरस, पोटाश तथा जिंक की पूरी मात्रा मिट्टी में अंतिम जुताई या रोपाई/बोआई के दो दिन पहले मिला दें, नेत्रजन की शेष मात्रा उपरिवेशन की जाती है, पहला उपरिवेशन 25 से 30 दिन के बाद खेतों से घास निकालकर सिंचाई करने के बाद एवं दूसरा उपरविशन पहले उपरिवेशन से 30 से 50 दिन के बाद करें।
फलिओ का बोआई 20 सितम्बर से 20 नवम्बर तक करना चाहिए।
लहसुन के कन्दों में कई जवा क्लोब होती है, इन्हीं जवा को गांठों से अलग करके बोआई की जाती है, बोआई के लिए 5 से 7 क्विंटल जवों, पूतियों की आवश्यकता होती है, जिनकी मोटाई 8 से 10 मि. मी. हो वैसे जवों या पूतियों को लगाना चाहिए, बोआई के पूर्व खेत को छोटे क्यारियों में बाँट देते हैं, जवों या पूतियों को क्यारियों में हाथ से या डिबलिंग के द्वारा करते हैं, अच्छी ऊपज प्राप्त करने के लिए जवों या पूतियों को 10 से 15 सेमी. पंक्ति से पंक्ति, 7 से 8 सेमी. जवा से जवा की दूरी तथा 2 से 3 सेमी की गहराई पर बोआई/रोपाई करनी चाहिए, बोआई/रोपाई करते समय यह ध्यान देना आवश्यक है कि कलियों का नुकीला भाग उपर रखी जाये, बोआई के समय खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है।
पहली सिंचाई बोआई के 8 से 10 दिन के बाद करें तथा शेष सिंचाई को 10 से 15 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार करें, खरपतवार को खुरपी की सहायता से निकालते रहना चाहिए, लहसुन के फसल से हमेशा निकाई-गुड़ाई करके खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए।
लहसुन की फसल 130 से 180 दिन में खोदाई के लिये तैयार हो जाती है, जिस समय पौधों की पत्तियाँ पीली पढ़ जाये और सुखने लग जाये, सिंचाई बन्द कर देनी चाहिए, इसके कुछ दिनों बाद लहसुन की खुदाई कर लेनी चाहिए, इसके बाद गाँठों को 3 से 4 दिनों तक छाया में सुखा लेते हैं, फिर 2 से 3 सेमी. छोड़कर पत्तियाँ को केन्द्रों से अलग कर लेते हैं, अच्छी तरह सुख जाने के बाद गांठों को 70 प्रतिशत आद्रता पर 6 से 8 महीनों तक भण्डारित किया जा सकता है, 6 से 8 महीनों के भण्डारण में 15 से 20 प्रतिशत तक नुकसान सुखने से होता है, पत्तियों सहित बण्डल बनाकर रखने से कम हानि होती है।
लहसुन की ऊपज किस्मों एवं फसल की देखरेख पर निर्भर करता है, इसकी औसत ऊपज 100 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
थिप्स - ये कीट आकार में छोटे तथा पत्तियों एवं तनों से रस चुसते हैं, जिससे उन पर उजले धब्बे पड़ जाते हैं, इस कीट से बचाव के लिये मेटासिसटॉक्स 1.5 एम.एल. प्रति लीटर पानी + 0.1 प्रतिशत सेनडोमिट का तीन से चार छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करें।
नील लोहित धब्बे - रोग की प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों पर भूरे धब्बे दिखाई देते हैं, इस रोग से बचाव के लिए इन्डोफिल एम-45 का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से 15 दिन के अन्तर पर दो से तीन छिड़काव करें।
मृदु रोमल फफूंदी - इसमें पत्तियों की सतह पर एवं डंठल पर बैगनी रंग के रोयें उभर आते हैं, इसके रोकथाम के लिए 3 ग्राम जिनेव या इन्डोफिल एम-45 का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तराल पर दो छिड़काव करें।
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